By अभिनय आकाश | Mar 23, 2024
लोकतंत्र के महापर्व यानी चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग की तारीखों के ऐलान के साथ ही आदर्श आचार संहिता भी लागू हो चुका है। राजनीतिक दलों की ओर से प्रचार-प्रसार भी जमकर हो रहा है। रोड शो, जनसभा, रैलियां, जुबानी बयानबाजी का शोर चारो ओर मचा है। लेकिन बीजेपी के लीड कैंपेनर जो वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री भी हैं, मोदी जी वो इस चुनावी रणभेरी में देश से बाहर हैं। कहां- जवाब है दिल्ली से 1900 किलोमीटर दूर पड़ोसी देश भूटान में। कहा जा रहा है कि आचार संहिता के दौरान विदेश यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। वहां उन्हें भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्माति किया गया है। भूटान पहुंचने पर पीएम मोदी का ऐसा ग्रैंड वेलकम हुआ जो इससे पहले शायद ही किसी प्रधानमंत्री का हुआ हो। प्रधानमंत्री के तौर पर पीएम मोदी का ये तीसरा भूटान दौरा है। पहला दौरा 2014 में हुआ था जब पीएम बनने के बाद पहले विदेश दौरे पर वो भूटान गए थे। दूसरा दौरा 2019 और तीसरा पांच साल के अंतराल पर अब हुआ। ये दौरा टाइमिंग के लिहाज से भी खास है। इस वक्त भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर तनाव बना हुआ है। इसकी एक कड़ी भूटान से भी जुड़ी हुई है। इसलिए हमने सोचा कि क्यों न आज भारत-भूटान के संबंधों का एमआरआई स्कैन किया जाए। आपको ये बताया जाए कि महज साढ़े सात लाख की आबादी वाला ये मुल्क भारत के सामरिक हितों के लिए कितना अहम है। इसके साथ ही इसके चीन फैक्टर पर भी विस्तार से बात करेंगे।
भूटान का इतिहास
हिमालय की गोद में बसे छोटे से पर्वतीय देश भूटान जिसका 70 फीसदी इलाका जंगलों से दका है। इसकी आबो-हवा जिसकी वजह से खूब साफ रहा करती है। स्थानीय लोग भूटान को द्रयूक्योल के नाम से भी जानते हैं। इसका मतलब है थंडर ड्रैगन की भूमि। हिमालय की चोटियों से घाटियों में आने वाले जंगली तूफानों का संदर्भ है। इसकी सीमा दो देशों भारत और चीन से लगती है। भारत के चार राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल और सिक्कम की सीमा भूटान से लगती है। भूटान की आबादी लगभग 8 लाख है। 83 फीसदी लोग भूटान को बौद्ध धर्म को मानते हैं और 11 फीसदी हिंदू है। भूटान में इंसानी सभ्यता के निशान लगभग चार हजार बरस पुराने हैं। हालांकि ये सदियों तक अलग थलग रहा। बाहरी दखल का इतिहासिक रिकॉर्ज 747 ई. का है। गुरु पद्मसंभव तिब्बत से भूटान आए। भूटान में उन्हें ईश्वर का दर्जा मिला है। वो अपने साथ बौद्ध धर्म लेकर आए थे। मान्यता है कि पद्मसंभव बाघ पर सवार होकर भूटान पहुंचे थे।
शोषण की कहानी
भूटान पर अपने उत्तरी पड़ोसी से जो दवाव पड़ता है, उसके बारे में भारत को जानकारी है। जोर-जबरदस्ती, परोक्ष धमकियों, पाखंड और क्षेत्रीय विस्तारवाद के आधार पर चल रहे रिश्तों की यह वास्तविकता है। यह बड़े रणनीतिक खेल में कमजोर छोटे देशों के शोषण की वही पुरानी कहानी है। तिब्वत के साथ जो हुआ, उसे लेकर भूटान पूरी तरह सचेत है।
भारत के लिए क्यों अहम है भूटान ?
पिछले कुछ समय से भूटान और चीन अपने बॉर्डर मुद्दे को 3 स्टेप रोड मैप के जरिए सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का मामला भारत के लिए रणनीतिक नजरिए से बेहद अहम है। भूटान और चीन के बीच डोकलाम पर नियंत्रण एक अहम मामला है। डोकलाम पठार भारत और भूटान की सीमा पर है और इस त्रिकोण का जुड़ाव भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर से है। अगर यहां चीन का नियंत्रण होता है तो रणनीतिक तौर पर अहम चिकन नेक कॉरिडोर तक चीन की निगरानी हो जाएगी। लिहाजा 'भारत के लिए यह बेहद अहम है। पिछले साल अप्रैल में विदेश सचिव से डोकलाम को लेकर एक सवाल पूछा गया था जिस पर उन्होंने कहा था कि इस मसले पर भारत और भूटान इस मामले पर संपर्क में बने हुए है।
भूटान का भरोसा जीता
भारत ने इसमें अपनी भूमिका भी निभाई है। उसने सहयोगी के रूप में इसके लिए माकूल माहौल मुहैया कराया है। इससे भूटान को ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं के साथ अपनी प्रतिभा और कंफर्ट लेवल हासिल करने के लिए समय मिला है। भारत ने नए भूटान की वास्तविकता और उसके लोकतांत्रिक संवैधानिक राजतंत्र में परिवर्तन को स्वीकार करते हुए 1949 की संधि पर फिर से वातचीत की। इसने भूटान में भरोसा जगाया कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को भारत के साथ जोड़े रखे और इन त्रिगेट करे।
कई करार, रेल कनेक्टिविटी पर MOU
पीएम मोदी और भूटान के पीएम शेरिंग टोवगे के वीच रिन्यूएबल एनर्जी, एग्रीकल्चर, यूथ एक्सचेंज, पर्यावरण और टूरिजम जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग को लेकर सहमति बनी। साथ ही ट्रेड, डिजिटल कनेक्टिविटी, स्पेस और यूथ कनेक्ट के मामलों को लेकर करार हुए। दोनों देशों के साझा वयान के मुताविक, दोनों पक्ष भारत और भूटान के बीच रेल कनेक्टिविटी को लेकर सहमत हैं और MOU पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। भारत और भूटान के बीच कोकराझार-गेलेफू रेल और वनारहाट- समत्से रेल पर काम होना है।
चीन फैक्टर
भूटान में चीन की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए चिंता का विषय है। नई दिल्ली अपने दोनों पड़ोसियों के बीच सीमा निर्धारण को लेकर होने वाली बातचीत पर करीब से नजर रख रही है। पिछली भूटानी सरकार के तहत चीन के साथ थिम्पू की सीमा चर्चा में काफी प्रगति देखी गई, जिससे भारत सतर्क हो गया। नई दिल्ली चिंतित है कि थिम्पू और बीजिंग के बीच एक समझौते में उत्तर में विवादित क्षेत्रों के लिए भारत, भूटान और चीन के बीच त्रिकोणीय जंक्शन के करीब स्थित डोकलाम की अदला-बदली शामिल हो सकती है। भारत डोकलाम पठार को भूटान का निर्विवाद क्षेत्र मानता है, जबकि बीजिंग इसे अपनी चुम्बी घाटी का विस्तार मानता है, जो सिक्किम और भूटान के बीच स्थित है। यह पठार रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है, जो भारतीय मुख्य भूमि को पूर्वोत्तर से जोड़ता है। यह गलियारा भारत को तिब्बत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से भी जोड़ता है। पिछले साल, भूटान और चीन ने दोनों देशों के बीच सीमा के "परिसीमन और सीमांकन" पर एक संयुक्त तकनीकी टीम के लिए "सहयोग समझौते" पर हस्ताक्षर किए थे। चीन और भूटान के बीच किसी भी सौदे का भारत पर सुरक्षा संबंधी प्रभाव पड़ेगा। चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए भी उत्सुक है। इस पृष्ठभूमि के बीच, दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच बैक-टू-बैक यात्राएं भूटान और भारत के बीच मजबूत संबंधों का संकेत देती हैं।