घोषणाओं में नहीं खेत में छिपा है किसानों की समस्याओं का हल

By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Apr 01, 2019

पिछले दो तीन सालों से देश का किसान फिर चर्चाओं में आ गया है। चर्चा इस मायने में कि किसानों की मजबूरी को सीढ़ी बनाकर देश के करीब−करीब सभी राजनीतिक दल अपनी चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत लगा रहे हैं। किसानों की बदहाली और खेती किसानी से होने वाली आय को लेकर आज सभी राजनीतिक दल चिंतित है। लगभग सभी दल और किसानों से जुड़े संगठन किसानों की ऋण माफी की बात तो करते ही हैं तो कोई कृषि उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने, कोई अनुदान बढ़ाने या कोई किसानों को दूसरी रियायते देने पर जोर दे रहे हैं। मजे की बात यह है कि अब तो निरमा की साफ धुलाई के विज्ञापन की तर्ज पर राजनीतिक दल एक दूसरे की ऋण माफी या दूसरी घोषणाओं पर तंज कसते हुए अपनी योजनाओं को अधिक किसान हितेषी बताने की जुगत में भी लगे हैं। मजे की बात यह भी है कि ऋण माफी या दूसरी इसी तरह की घोषणाएं किसानों की तात्कालिक समस्या को तो हल कर देगी पर दीर्घकालीन कृषि विकास में कितनी कारगर होगी यह भविष्य के गर्व में छिपा है। राजनीतिक दलों की भी यह मजबूरी है। चुनावी वैतरणी किसी वैशाखी के सहारे ही पार की जा सकती है। फिर किसान देश का सबसे बड़ा वोट बैंक जो है और अब यह भी लगने लगा है कि तात्कालिक लाभकारी कार्यक्रमों के माध्यम से चुनावी नैया पार की जा सकती है।

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आजादी के बाद देश में कृषि विज्ञानियों ने अपने शोध व अध्ययन के माध्यम से तेजी से कृषि उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम किया है। अधिक उपज देने वाली व देश के प्रदेश विशेष की भोगोलिक स्थिति के अनुसार जल्दी तैयार होने वाली किस्मों का विकास हुआ है। रोग प्रतिरोधक क्षमता व उर्वरा शक्ति बढ़ाने की दिशा में नए नए प्रयोग हुए हैं। खेती किसानी को आसान बनाने के लिए एक से एक कृषि उपकरण बाजार में आए हैं। इस सबके बावजूद हमारी खेती किसानी दिशाहीन रही है और इसका कारण रहा है बिना आगे पीछे सोचे अंधाधुंध प्रयोग। आज रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित हुई है तो कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से खाद्य सामग्री तक दूषित होने लगी है। गांवों में ट्रैक्टरों की पहुंच अधिकांश किसानों तक हो गई है। हांलाकि इस सबके पीछे सरकार की आसान ऋण योजनाएं और कृषि वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम है। पर इतना सबकुछ होने के बाद किसानों की आत्महत्या या किसानों की बदहाली आज भी मुद्दा बना हुआ है तो यह अपने आप में गंभीर हो जाता है। किसानों की बदहाली के इन्हीं कारणों का हल ढूंढते एकला चालो रे की तर्ज पर देश के कोने कोने के प्रगतिशील किसान अपनी सीमित संसाधनों से विकास की नई इबारत लिखने में लगे हैं तो दूसरी और देश के इने गुने किसान हितेषी चिंतक इन प्रगतिशील किसानों को उपयुक्त मंच दिलाने के लिए प्रयासरत है। इन गुदड़ी के लाल किसानों को सामने लाकर दूसरे किसानों को इनसे प्रेरणा लेने के लिए उत्साहित प्रोत्साहित करने में लगे हैं। 

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पिछले कई दशकों से खेतों के वैज्ञानिकों की आवाज बने जाने माने कृषि लेखक डॉ महेन्द्र मधुप की अन्नदाताओं को समर्पित चौथी पुस्तक सामने आई है जिसमें अपने बलबूते पर खेती किसानी को आसान व लाभदायी बनाने में जुटे किसानों को पहचान दिलाने का सार्थक प्रयास किया गया है। डॉ. महेन्द्र मधुप ने अपनी चौथी पुस्तक अन्वेषक किसान में देश के अलग अलग कोनों में तपस्यारत किसानों की शौर्य गाथा को इस पुस्तक में पिरोया है। इससे पहले की तीन पुस्तकों में भी डॉ. मधुप में खेत खलिहान से लेकर अपने बलबूते पर खेती को आसान बनाने में जुटे किसानों की गाथा को उजागर किया है। कश्मीर का किसान जहां कहता है कि समस्या का समाधान गोली नहीं कृषि को सरल बनाने में छिपा है तो कोई सरकारी सहायता की जगह प्रोत्साहन की बात करते हैं। आज कृषि विज्ञानी रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशियों के दुष्प्रभाव से चिंतित है और यही कारण है कि सभी लोग ओरगनिक खेती को श्रेयष्कर मानने लगे हैं। नार्थ इस्ट को तो ओरगनिक खेती का केन्द्र ही बनाया जा रहा है। इसी तरह से देश के कई हिस्सों में ओरगनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के रुप में काम होने लगा है। 

 

परंपरागत खेती को प्रोत्साहित किया जाने लगा है। पशुधन को खेती का सहायक व आय बढ़ाने का माध्यम बनाया जाने लगा है। हमारी पुरातन कृषि व्यवस्था में खेती और पशुपालन एक दूसरे के पूरक रहे हैं। आज एक बार फिर पशुपालन को बढ़ावा देने की बात की जा रही है। सवाल साफ साफ यह है कि किसानों की आय बढ़ाने के साथ ही उनके जीवन स्तर में किस तरह से सुधार लाया जाए कि वे भी विकास की मुख्य धारा का हिस्सा बन सके। डॉ. मधुप ने अन्वेषक किसान के माध्यम से देश के विभिन्न प्रांतों में एकल प्रयासों से खेती की नई इबारत लिखते अन्नदाताओं को आगे लाने का सार्थक प्रयास किया है। इस दिशा में सरकार, गैरसरकारी संगठनों और खेती से जुड़े विशेषज्ञों को एक साथ आगे आना होगा जिससे खेत को प्रयोगशाला बनाकर प्रयोगधर्मी किसानों की मेहनत का लाभ दूसरे किसानों तक पहुंच सके। सरकारों को भी ऐसे किसानों के खेत को ही उन्नत या प्रयोगशील खेती दिखाने का माध्यम बनाने आगे आना होगा ताकि इनके अनुभवों का लाभ लिया जा सके। निश्चित रुप से महेन्द्र मधुप द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयास एक मिसाल बनने के साथ ही किसानों की समस्याओं का हल खोजने में सार्थक संदेश हो सकता है। यह किसान धरातलीय परिणाम प्राप्त करने वाले हैं और निश्चित रुप से इनके प्रयास एकल होते हुए भी क्षेत्र के किसानों को नई दिशा देने वाले होंगे। इसका लाभ लिया जाना चाहिए। ऋण माफी या इस तरह की दूसरे कार्यक्रमों के साथ ही ऐसे खेतों के विज्ञानी किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है तो लगभग नहीं के बराबर राशि से सरकार अच्छे और सार्थक परिणाम प्राप्त कर सकती है। मधुप जैसे प्रयासों को आगे लाने में मीडिया को भी आगे आना होगा।

 

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

 

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