By डॉ. रमेश ठाकुर | Aug 03, 2022
'हर हर शंभू’ गाने पर बिना साज-संगीत के ढोल बजा हुआ है और वो भी बिना ढोलक के। जिसे बजाने वाले भी वही पुराने धर्म के ठेकेदार ही हैं। उनके निशाने पर इस बार एक साधारण मुस्लिम गायक महिला है जिन्होंने कांवड़ियों के सम्मान में शिव का गाना ‘हर हर शंभू’ गाकर बैठे बिठाए आफत मोल ले ली है। महिला का नाम फरमानी नाज है, जो एक यूटूबर सिंगर हैं जिनकी आवाज के लाखों-करोड़ों फैन्स हैं। पर, मुस्लिम उलेमा फरमानी नाज पर भड़के हुए हैं। उनका कसूर मात्र इतना है कि उन्होंने दूसरे धर्म के भगवान पर गाना क्यों गाया? उलेमाओं की बड़ी फौज इस समय उनके पीछे पड़ी हुई है, लेकिन फरमानी नाज भी डटी हुई हैं, किसी से डर नहीं रहीं, बल्कि डर कर मुकाबला कर रही हैं। क्या है पूरा मामला, और क्यों पीछे पड़े हैं उनके मुल्ला-मौलाना? जैसी तमाम बातों को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने उनसे विस्तार से बात की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से।
प्रश्नः ऐसा क्या हुआ जिससे मुल्ला-मौलाओं की फौज आपके पीछे पड़ गई?
उत्तर- सिर्फ गाना गाया है जो मेरा पेशा है और शौक भी। इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर देंगे उलेमा इसका जरा भी इल्म नहीं था मुझे। मेरी आड़ लेकर अपने को समाज में चमकाना चाहते हैं ये लोग। किस धर्म की किताब में लिखा है कि एक गायक सिर्फ अपने धर्म के लिए ही गाए। अगर मुझे दिखा दें, तो जैसा ये लोग गाने को कहेंगे मैं गाउंगी। पर, ऐसा कहीं लिखा नहीं है। कलाकार परिंदों की तरह होते हैं, उन्हें जात, धर्म, पंथ, समुदाय से मतलब नहीं होता। कलाकार आजाद पक्षियों की तरह होते हैं जिन्हें किसी सरहद की दीवारें भी नहीं रोक पातीं, फिर ये मुल्ला-मौलाना की औकात ही क्या जो मेरी गायकी पर फतवा निकाल सकें, मैं नहीं डरती इनसे।
प्रश्नः अंत तक लड़ने और मुकाबला करने का मन बनाया हुआ है?
उत्तर- इसमें मुकाबले की कोई बात ही नहीं? मैं अपने हक के लिए लड़ रही हूं। जब मैं भूखी रहती थी, मांगने की नौबत थी, पति छोड़कर चला गया था, बिना बताए, बिना सूचना के दूसरी औरत से शादी कर ली थी, तब ये मौलाना कहां चले गए थे, तब मैं खुद इनके पास गई थी अपनी वाजिब समस्या लेकर, लेकिन समाधान तो दूर इन्होंने मेरी बात तक नहीं सुनी? आज मुझे मजहब का ज्ञान देने में लगे हैं। मैं खबरदार करना चाहती हूं, ऐसे लोगों को मेरे कॅरियर में रोड़ा ना डालें। मुझे आजादी से जीने दें, मुझे मेरा दायरा और सीमा पता है।
प्रश्नः कब से गाती हैं आप?
उत्तर- बचपन से गाने का शौक था। गांव की मंडली, चौपालों, शादी-ब्याहों आदि से गाने की शुरुआत हुई, बसों-रेलगाड़ियों में भी गाया। प्रोफेशनल के तौर पर स्थापित होने के लिए मेरे पास संसाधन नहीं थे। मेरा भाई भी मेरे साथ गाता है। हमारे पास सिर्फ एक ढोलक है जिसे हमारे साथी भूरा भाई बजाते हैं। तीन लोग मिलकर ही हम अभी तक गाते-बजाते आए हैं। अब जाकर एक स्टूडियो बनाया है, जहां गाना रिकॉर्ड करते हैं। कुछ एलबम भी बनाई हैं। गायन को लेकर अब ऑफर भी मिलने लगे हैं।
प्रश्नः गायकी किन विधाओं में है आपकी?
उत्तर- सभी किस्म की विधाओं में मैं गाती हूं। कव्वाली, गजल, कजरी, भजन आदि। कहीं से सीखा नहीं है और ना ही किसी से प्रशिक्षण लिया। बस कुदरती है। गांव वाले भी एतराज करते थे। कहते थे ये काम चौका-चूल्हा करने वाली औरतों के लिए नहीं है। बड़े लोगों का शौक है, तरह-तरह की बातें करते थे। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते मैंने अभी तक क्या-क्या सहा है जिंदगी में। लोगों की गालियां खाईं, ताने सुने, मेरे मासूम बीमार बेटे को भी लोग बुरा-भला कहने से नहीं चूकते थे। पड़ोसी अपने बच्चे तक उनके पास खेलने के लिए नहीं भेजते थे।
प्रश्नः इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया है, आपको डर नहीं लगता?
उत्तर- किस बात का डर। मैंने कोई गुनाह थोड़ी ना किया है। आज महिलाएं सशक्त हुई हैं, माहौल मिल रहा है। अपने पैरों पर खड़ी होकर अपना कॅरियर बना रही हैं। खासकर मुस्लिम कट्टरपंथियों को यही बुरा लग रहा है। देखिए, मैं अपने हुनर के बल पर आगे बढ़ रही हूं। कभी किसी धर्म का अपमान कभी नहीं किया और ना ऐसी मंशा रही। जिंदगी दुखों के साए में बीती है। शादी के कुछ वर्ष बाद पति ने छोड़ दिया फिर ससुराल वालों ने छोड़ा। पति ने बिना तलाक दिए दूसरी शादी कर ली। इस पर कभी किसी ने मेरा दुख नहीं समझा, उल्टा मुझे ही कसूरवार समझा। आज मैं कामयाब हो रही हूं, तब भी उन्हें बर्दाश्त नहीं होता।
प्रश्नः इंडियन आइडल में भी आप प्रस्तुति दे चुकी हैं?
उत्तर- सच बताऊं तो असली पहचान तो वहीं से मिली थी। वरना मुझे कोई जानता तक नहीं था। अपने गृह जिले मुजफ्फरनगर के आसपास तक ही पहचान सीमित थी। आज मेरे यूट्यूब पर लाखों की संख्या में फैन हैं। प्रशंसक मेरे गाए सभी गानों को पसंद करते हैं। फरमाइश भी करते हैं। ऊपर वाले से दुआ करूंगी, अल्लाह ताला मुझे इस विवाद से जल्दी निजात दिलवाए।
-जैसा बातचीत में रमेश ठाकुर से कहा।