By नीरज कुमार दुबे | Jul 20, 2019
नरेंद्र मोदी सरकार ने शनिवार को दो राज्यपालों का तबादला कर दिया जबकि कुछ राज्यों में नये राज्यपाल नियुक्त किए। आइए जानते हैं इन नये राज्यपालों के बारे में और यह भी जानते हैं कि जिन राज्यों का राज्यपाल इन्हें बनाया गया है वहां इनके समक्ष क्या बड़ी चुनौतियां रहने वाली हैं।
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आनंदीबेन पटेल- गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री और वर्तमान में मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल अब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनायी गयी हैं। कुछ समय पहले तक उनके पास छत्तीसगढ़ की राज्यपाल का भी अतिरिक्त प्रभार था। हाल ही में पूर्व राज्यसभा सांसद अनुसुइया उइके को छत्तीसगढ़ का राज्यपाल बना दिया गया था। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल के रूप में जहां आनंदीबेन पटेल को कांग्रेस सरकारों के साथ कामकाज करना था वहीं अब उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार होने से उनके लिए स्थितियां थोड़ी सहज होंगी लेकिन चुनौतियां पहले से ज्यादा होंगी। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर अकसर सवाल उठते रहते हैं साथ ही यह वह प्रदेश है जहां सपा, बसपा तथा अन्य कई क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में देखना होगा कि राज्यपाल राम नाईक की तरह क्या आनंदीबेन पटेल भी सबको साथ लेकर चल पाती हैं और सबसे जरूरी बात...क्या वह आम लोगों से सहज रूप से मिलने वाली राज्यपाल बन पाती हैं? गौरतलब है कि राम नाईक ने अपने पांच साल के कार्यकाल में राजभवन में बड़ी संख्या में आम लोगों से मुलाकात कर नया रिकॉर्ड भी बनाया। बहरहाल, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में रहीं आनंदीबेन पटेल प्रधानमंत्री के विश्वस्त नेताओं में शुमार हैं देखना होगा कि उत्तर प्रदेश में उनका कार्यकाल कैसा रहता है।
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लालजी टंडन- उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और बिहार के निवर्तमान राज्यपाल लालजी टंडन अब मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनाये गये हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे लालजी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीबी रहे हैं और लखनऊ से जब अटलजी सांसद हुआ करते थे तो लालजी टंडन ही उनके सांसद प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे। 2009 में लालजी टंडन लखनऊ के सांसद भी रह चुके हैं। अपनी सीट राजनाथ सिंह के लिए खाली करने का ईनाम लालजी टंडन को मिला था और उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया गया था। बिहार में एनडीए की सरकार है जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं अब मध्य प्रदेश में आने पर लालजी टंडन का वास्ता कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से होगा। वहां कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था इसलिए कमलनाथ कुछ निर्दलीय और सपा, बसपा विधायकों के समर्थन से सरकार चला रहे हैं। ऐसे में लालजी टंडन की भूमिका राज्यपाल के रूप में वहां महत्वपूर्ण हो जायेगी।
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फागु चौहान- नाम सुन कर शायद आपको लग रहा होगा कि यह नाम पहले कभी सुना नहीं। आप जानना चाहते होंगे कि कौन हैं फागु चौहान जिन्हें बिहार के राज्यपाल जैसा बड़ा पद दे दिया गया है। आपको बता दें कि फागु चौहान एकमात्र ऐसे शख्स हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा क्षेत्र से सर्वाधिक बार यानि 6 बार विधानसभा चुनाव जीता है। वह वर्तमान में भी घोसी विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य हैं। घोसी विधानसभा सीट मउ जिले में पड़ती है। फागु चौहान राजनीतिज्ञ के साथ-साथ व्यवसायी भी हैं और उनकी ट्रांसफॉर्मर फैक्ट्री तथा कोल्ड स्टोरेज भी हैं। मोदी सरकार पूर्वांचल को काफी तवज्जो देती है। हाल ही में उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाये गये स्वतंत्र देव सिंह पूर्वांचल से हैं और अब फागु चौहान को राज्यपाल बनाकर एक बार फिर पूर्वांचल को महत्व दिया गया है। फागु चौहान वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन हैं और दर्जा प्राप्त कैबिनेट मंत्री हैं। वह दो बार बसपा से विधायक रहे और एक बार मायावती के मंत्रिमंडल तथा एक बार भाजपा की सरकार के दौरान रामप्रकाश गुप्ता के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे।
जगदीप धनखड़- देश के जानेमाने वकील और जनता दल के पूर्व सांसद जगदीप धनखड़ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनाये गये हैं। वह केशरी नाथ त्रिपाठी का स्थान लेंगे जिनका कार्यकाल पूरा हो रहा है। जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं इसके अलावा वह राजस्थान के झुंझुंनूं से लोकसभा के लिए निर्वाचित हो चुके हैं। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने झुंझुंनूं से अपना प्रत्याशी उतारने की बजाय गठबंधन के तहत जनता दल प्रत्याशी जगदीप धनखड़ का समर्थन किया था। लेकिन जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये और अजमेर से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें वहां हार का मुँह देखना पड़ा। धनखड़ किशनगढ़ क्षेत्र से राजस्थान विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। जाटों को ओबीसी दर्जा दिलाने के लिए धनखड़ ने काफी प्रयास किये। वह विभिन्न सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं। पश्चिम बंगाल में उनके सामने कानून का शासन बनाये रखने की बड़ी चुनौती होगी क्योंकि यही वह राज्य है जहां देश में सर्वाधिक राजनीतिक हिंसा होती है। साथ ही भाजपा सरकार ने धनखड़ को राज्यपाल बनाकर जाट समुदाय को भी लुभाने का प्रयास किया है।
आर.एन. रवि- नगा वार्ता के पूर्व वार्ताकार आर.एन. रवि को नगालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। संयुक्त खुफिया समिति के अध्यक्ष रहे आर.एन. रवि देश के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) भी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की टीम में जो तीन डिप्टी एनएसए हैं उनमें से एक आर.एन. रवि हैं। आर.एन. रवि केरल कैडर के 1976 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी हैं। उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आईएम) के साथ केंद्र सरकार की जो वार्ता चल रही है उसमें आर.एन. रवि सरकार की ओर से वार्ताकार भी हैं। नगालैंड का राज्यपाल बनाकर उनके काम को आसान भी किया गया है साथ ही यह नगालैंड के लिए भी अच्छा रहेगा कि राज्य के संवेदनशील मुद्दों से हर तरह से वाकिफ और उन्हें सुलझाने का माद्दा रखने वाला व्यक्ति अब वहां का राज्यपाल है।
रमेश बैस- लोकसभा चुनावों में जब भाजपा ने छत्तीसगढ़ के सभी सिटिंग सांसदों का टिकट काटने का निर्णय किया तो सर्वाधिक झटका रायपुर के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश बैस को लगा था क्योंकि रायपुर उनका गढ़ा था और वहां से वह अपना टिकट कटने की कभी उम्मीद नहीं कर सकते थे। रमेश बैस ने सात बार रायपुर का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया है, यहां से वह सिर्फ एक बार 1991 का लोकसभा चुनाव हारे थे। इसके अलावा रमेश बैस संयुक्त मध्य प्रदेश में विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं, बैस रायपुर नगर निगम के भी सदस्य रहे हैं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में जब टिकट नहीं मिला तो रमेश बैस ने पार्टी के निर्णय को स्वीकार किया और भाजपा उम्मीदवार की जीत के लिए मेहनत की और अब उन्हें ईनाम के रूप में त्रिपुरा के राज्यपाल का पद मिला है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्यमंत्री रहे रमेश बैस के लिए त्रिपुरा में भाजपा सरकार के साथ काम करना आसान होगा।
-नीरज कुमार दुबे