चेहरे की पहचान संबंधी तकनीक के तहत निगरानी के लिए शारीरिक विशेषताओं का किया जाता है उपयोग

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jan 20, 2024

अमेरिकी नागरिक अमारा मजीद पर 2019 में श्रीलंका की पुलिस ने आतंकवाद का आरोप लगाया गया था। रॉबर्ट विलियम्स को 2020 में घड़ियां चुराने के आरोप में डेट्रॉइट में उनके घर के बाहर गिरफ्तार किया गया था और 18 घंटे तक जेल में रखा गया था। रैंडल रीड ने कथित तौर पर चोरी के क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने के लिए 2022 में छह दिन जेल में बिताये थे। इन तीनों मामलों में, अधिकारियों ने उन लोगों को पकड़ा था जो इनमें संलिप्त नहीं थे। इन तीनों मामलों में, चेहरे की पहचान तकनीक से ही यह पता चला था वे दोषी नहीं थे। कई अमेरिकी राज्यों में कानून प्रवर्तन अधिकारियों को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि उन्होंने संदिग्धों की पहचान करने के लिए चेहरे की पहचान संबंधी तकनीक का इस्तेमाल किया है। चेहरे की पहचान संबंधी तकनीक बायोमेट्रिक निगरानी का नवीनतम संस्करण है जिसके तहत व्यक्तियों की पहचान करने के लिए शारीरिक विशेषताओं का इस्तेमाल किया जाता है।

मेरी किताब “डू आई नो यू? फ्रॉम फेस ब्लाइंडनेस टू सुपर रिकॉग्निशन’’ में मैंने बताया है कि चेहरे की निगरानी की कहानी न केवल कंप्यूटिंग के इतिहास में बल्कि चिकित्सा, नस्ल, मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान और स्वास्थ्य मानविकी के इतिहास में निहित है। बेहतर निर्णय लें - पता करें कि विशेषज्ञ क्या सोचते हैं। जैसे-जैसे चेहरे की पहचान संबंधी तकनीक की सटीकता और गति में सुधार होता है, निगरानी के साधन के रूप में इसकी प्रभावशीलता और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है। सटीकता में सुधार होता है, लेकिन पूर्वाग्रह बने रहते हैं। निगरानी तंत्र इस विचार पर आधारित है कि लोगों पर नजर रखने और उनकी गतिविधियों को गोपनीयता और सुरक्षा के बीच सीमित और नियंत्रित करने की आवश्यकता है। निगरानी तंत्र को हमेशा उन लोगों की पहचान करने के लिए तैयार किया गया है जिन पर सत्ता में मौजूद लोग करीबी नजर रखना चाहते हैं। इसके अलावा, अमारा मजीद, रॉबर्ट विलियम्स और रैंडल रीड के मामले विसंगतियां नहीं हैं।

वर्ष 2019 तक, चेहरे की पहचान तकनीक ने श्वेत लोगों की तुलना में 100 गुना अधिक दर से अश्वेत और एशियाई लोगों की गलत पहचान की। लंबे इतिहास में नवीनतम तकनीक ‘फेस रिकग्निशन’ सॉफ्टवेयर ट्रैकिंग की वैश्विक प्रणालियों की सबसे नवीनतम अभिव्यक्ति है। इस छद्म विज्ञान को 18वीं सदी के अंत में शरीर विज्ञान की प्राचीन प्रथा के तहत औपचारिक रूप दिया गया था। प्रारंभिक प्रणालीगत अनुप्रयोगों में एंथ्रोपोमेट्री (शरीर माप), फिंगरप्रिंटिंग और आईरिस या रेटिना स्कैन शामिल थे। इन सभी से चेहरे की पहचान संबंधी तकनीक में मदद मिली। चेहरे की पहचान संबंधी तकनीक ने मानव बायोमेट्रिक निगरानी पर गुप्त रूप से जाने का एक तरीका प्रदान किया। सीमा पर निगरानी के उद्देश्यों के लिए चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर के शुरुआती शोध को सीआईए द्वारा वित्त पोषित किया गया था। इसने चेहरे की पहचान के लिए एक मानकीकृत ढांचा विकसित करने की कोशिश की जिसमें किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं, आंख, नाक, मुंह और बालों के बीच की दूरी का विश्लेषण करना शामिल है।

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