By नीरज कुमार दुबे | May 29, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष पूरा हो रहा है और इस दौरान सरकार के कामकाज की समीक्षा स्वाभाविक बात है। खासतौर पर प्रधानमंत्री ने जिन मंत्रालयों में विशेष प्रयोग किये हैं वहाँ यह देखना आवश्यक हो जाता है कि जिन उद्देश्यों के साथ वह प्रयोग किये गये थे वह कितने सफल रहे। पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत हासिल कर भाजपा सत्ता में आई तो प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश मंत्री के रूप में तत्कालीन विदेश सचिव रहे एस. जयशंकर को चुना। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य कारणों का हवाल देते हुए सरकार में शामिल होने से इंकार कर दिया था जिसके बाद प्रधानमंत्री ने जयशंकर को विदेश मंत्रालय की कमान सौंपी। भारतीय विदेश सेवा से जुड़े रहे जयशंकर ऐसे पहले अधिकारी रहे जो सक्रिय राजनीति में आये और सीधे कैबिनेट मंत्री बन गये। मृदुभाषी और सौम्य स्वभाव वाले जयशंकर अमेरिका और चीन समेत कई देशों में भारत के राजदूत रह चुके हैं और विदेश सचिव के पद पर काम करने के उनके अनुभव को देखते हुए उनका चयन किया गया। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की बारीकियों को समझने वाले जयशंकर ने विदेश मंत्री का पद संभालते ही भारतीय विदेश नीति को नयी दिशा दी। जयशंकर की इस बात की भी तारीफ करनी होगी कि एक साल में वह किसी भी विवाद में नहीं पड़े और सकारात्मक राजनीति को लेकर ही आगे बढ़े। संसद में भी उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा है और अब लोगों को यह बात भलीभाँति समझ में आ गयी होगी कि क्यों प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें विदेश मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी थी।
सबसे बड़ा बदलाव क्या है?
वैसे तो 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से ही भारतीय विदेश नीति में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वह है सक्रिय कूटनीति। भारत के प्रधानमंत्री सहित अन्य नेताओं के लगातार विदेशों के दौरे और विदेशी नेताओं के साथ लगातार बातचीत भारत की सक्रिय कूटनीति का हिस्सा हैं। वैसे भी भारत की राष्ट्रीय, आर्थिक और सामाजिक प्रगति का अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से गहरा संबंध है और इस दिशा में किये गये प्रयासों के परिणाम हाल के वर्षों में देखने को मिले भी हैं। विदेश मंत्री बनने के बाद जयशंकर जिन कामों में तेजी लाये उनमें दुनिया के विभिन्न देशों की नवीनतम तकनीक, दुनिया में हो रहे अच्छे कार्यों और वैश्विक संसाधनों का भारत के हित के लिए इस्तेमाल करने के लिए दनादन समझौते करना शामिल हैं। मोदी सरकार ने विभिन्न देशों के बीच आपसी सहयोग को अपनी विदेश नीति का प्रमुख अंग बना दिया है।
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मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में नेबरहुड फर्स्ट यानि पड़ोसी पहले की नीति पर अमल शुरू किया और विश्व कल्याण की भावना से ऐसे आगे बढ़ी कि कोरोना संकट के इस दौर में दुनिया के विभिन्न देशों की हर प्रकार से मदद की है। दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने अपना पहला विदेश दौरा मालदीव का किया और उसके बाद वह श्रीलंका और भूटान भी गये। विदेश मंत्री बनते ही जयशंकर ने भी पहले भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल और फिर म्यांमार, श्रीलंका और अफगानिस्तान का दौरा कर संबंधों को नया आयाम दिया। पाकिस्तान जरूर दूसरे कार्यकाल में भी मोदी सरकार के लिए जब-तब परेशानी खड़ी करता रहता है लेकिन उसका इलाज भी समय-समय पर किया जाता है जिससे वह कुछ दिन चुप होकर बैठ जाता है।
जयशंकर ने मनवाया अपना लोहा
जयशंकर की काबिलियत उस समय देश ने देखी जब भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों का रूप दे दिया तो पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भ्रामक बातें फैलाने लगा और मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने लगा। उस समय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विभिन्न देशों का दौरा कर वहां की सरकारों को भारत के पक्ष से अवगत कराया और देश में भी विभिन्न देशों के राजदूतों को ऐसे समझाया कि दुनिया के एकाध देश को छोड़कर कोई भी देश भारत सरकार के फैसले के विरोध में खड़ा नहीं हुआ और लगभग पूरे विश्व समुदाय ने यही कहा कि अनुच्छेद 370 हटाना भारत का आंतरिक मुद्दा है। मोदी सरकार की विदेश नीति की प्रखरता देखिये कि जो देश 370 पर भारत के रुख से सहमत नहीं हुए उन्हें वैसी ही प्रतिक्रिया भी दी गयी। मसलन तुर्की के राष्ट्रपति ने 370 हटाने का विरोध किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तुर्की की यात्रा को तत्काल रद्द कर दिया। मलेशिया ने भी इस मुद्दे पर आंख दिखाई तो भारत ने मलेशिया से आयात होने वाले खाद्यान्न तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल ने भी 370 हटाने की आलोचना की थी इसीलिये जब विदेश मंत्री जयशंकर अमेरिका यात्रा पर गये तो उन्होंने जयपाल से मुलाकात के कार्यक्रम को ही रद्द कर दिया। भारतीय कूटनीति की सफलता देखिये कि इस मुद्दे पर इस्लामी देशों ने भी पाकिस्तान का साथ नहीं दिया और इस मुद्दे पर वह अलग-थलग पड़ गया था। ऐसे ही जब भारत ने नागरिकता संशोधन कानून बनाया तो उसके विरोध में दुनियाभर में दुष्प्रचार किया गया लेकिन मोदी सरकार और खासकर विदेश मंत्रालय दुनिया को यह बात समझाने में सफल रहे कि इस कानून का किसी भी भारतीय से लेना-देना ही नहीं है और इसका सीधा प्रभाव पाकिस्तान में प्रताड़ित किये जा रहे अल्पसंख्यकों से जुड़ा हुआ है।
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भारत-अमेरिका संबंध
अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में भी एक नयी ऊँचाई देखने को मिली है। छह महीने के अंदर दो बार भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ऐतिहासिक मुलाकातें हुईं। अमेरिका में हाउडी मोदी कार्यक्रम में ट्रंप और मोदी ने एक साथ 50 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ को संबोधित कर नया इतिहास रचा तो अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति की अगवानी में जुटी लाखों की भीड़ से ट्रंप ऐसे गदगद हुए कि उन्हें यह मुलाकात आजन्म याद रहेगी और अमेरिका-भारत के रिश्तों के इतिहास में भी एक यादगार अवसर के रूप में दर्ज रहेगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा का ख्याल
मोदी सरकार की विदेश नीति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसने राष्ट्रीय सुरक्षा को विदेश नीति से जोड़ कर इसका स्वरूप व्यापक कर दिया है। इसके साथ ही वैश्विक मुद्दों पर नीति तय करने में अब सिर्फ बड़ी शक्तियां ही निर्धारण शक्ति नहीं रह गयी हैं, ऐसे मुद्दों पर भारत की राय ली जा रही है और इस राय को महत्व दिया जा रहा है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो वैश्विक मुद्दों को तय करने में भारत की भूमिका अब बहुत बढ़ गयी है। जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय व्यापार आदि मुद्दों पर भारत का पक्ष दुनिया अब गंभीरता के साथ सुनती है।
सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास
यह मोदी सरकार की विदेश नीति का ही परिणाम है कि एक ओर हम इजराइल तथा फिलस्तीन के साथ एक ही समय में बेहतरीन संबंध रखते हैं तो दूसरी ओर हम अमेरिका-ईरान और अमेरिका-रूस के साथ भी अच्छे संबंध रखते हैं। महाशक्तियों के साथ अपने संबंधों को भारत ऐसे संतुलित कर के चल रहा है कि अंतरराष्ट्रीय राजनय में भारतीय नीति पर अध्ययन किये जाने लगे हैं। यहाँ तक कि चीन जिसके साथ संबंधों में लगातार तनाव रहता है उसके साथ भी भारत संवाद के माध्यम से समस्या का हल निकाल लेता है लेकिन चीन को यह बात अच्छी तरह से समझा दी गयी है कि यह नया भारत है और अब 1962 वाली स्थिति नहीं है। डोकलाम के बाद लद्दाख प्रकरण में जिस तरह से भारत के अपने रुख पर अड़े रहने के बाद चीन के तेवर ढीले पड़े उससे बीजिंग को आगे के लिए संकेत मिल गये हैं। यही नहीं नेपाल को भी बहुत शांति के साथ समझा दिया गया है कि चीन की शह पर चल कर अपना ही नुकसान मत करो। मोदी सरकार ने रायसीना संवाद नाम का जो वार्षिक कार्यक्रम शुरू किया है उसने भी अन्य देशों के साथ संबंधों को नयी दिशा प्रदान की है और विभिन्न देशों को खुल कर अपने मन की बात कहने का मंच प्रदान किया है।
मजबूत नेता, मजबूत नेतृत्व
कहते हैं नेता और नेतृत्व की सही परख चुनौतीपूर्ण समय में ही होती है। कोरोना महामारी से जब दुनिया जूझ रही है ऐसे में मोदी सरकार ने विश्व कल्याण के लिए जो कदम उठाये हैं उसकी पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। यही नहीं कई हालिया सर्वेक्षणों में तो प्रधानमंत्री मोदी सबसे ज्यादा मत पाने वाले ग्लोबल लीडर के रूप में उभरे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति से लेकर दुनिया के विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ कर चुके हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो यहाँ तक कह दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी हनुमानजी की तरह सबको संजीवनी बूटी दे रहे हैं। यही नहीं जब कोरोना संकट शुरू ही हुआ था तब प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर सार्क देशों के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद हुआ और एक फंड की स्थापना की गयी ताकि इस महामारी से निपटा जा सके। इसमें सर्वाधिक योगदान भारत ने ही किया। इसके अलावा प्रधानमंत्री जहां देश में इस महामारी से निपटने के उपायों को लेकर पूरी तरह सक्रिय हैं वहीं वैश्विक स्तर पर भी वह लगभग रोजाना विश्व के अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों से बातचीत कर उनकी मुश्किलों को जानते हैं और भारत की ओर से हर संभव मदद मुहैया कराते हैं। पूरी दुनिया देख रही है कि जब किसी देश के पास अपनी चुनौतियों से ही निपटने की फुर्सत नहीं है ऐसे संकट के समय में भारत की सरकार उन्हें सहयोग कर रही है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी की ही पहल पर जी-20, आसियान जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों की ऑनलाइन बैठकें आयोजित कर कोविड-19 से लड़ाई में एक दूसरे की मदद की रूपरेखा बनाई गयी।
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यही नहीं चीन में जब कोरोना वायरस का प्रकोप फैला तो भारत सरकार ने बिना देरी किये वुहान से हजारों भारतीयों को सुरक्षित निकाला। इसके अलावा वंदे भारत मिशन के तहत विदेशों में फँसे हजारों भारतीयों को वायु मार्ग और जल मार्ग से निकालने का काम भी निरंतर जारी है। इसके अलावा विदेश स्थित भारतीय मिशन इस बात के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं कि वहां रह रहे भारतीयों के हित सुरक्षित रहें और उनके रोजगार संबंधी दिक्कतों को भी दूर किया जा सके। अमेरिका में एच1बी वीजा मुद्दे को लगातार अमेरिकी प्रशासन के समक्ष उठा कर हजारों अनिवासी भारतीयों के हितों की रक्षा की जा रही है। यही नहीं विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर रोजाना अपने विदेशी समकक्षों से द्विपक्षीय मुद्दों तथा परस्पर सहयोग के अन्य मुद्दों पर सँवाद बनाये हुए हैं जिससे लॉकडाउन के दौरान भी भारतीय विदेश नीति तेज गति से कार्य कर रही है।
बहरहाल, मोदी कार्यकाल 2 का पहला वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर यही कहा जा सकता है कि भारतीय विदेश नीति राष्ट्रीय हितों को साधने में अब पहले से ज्यादा सफल नजर आ रही है और भारत का बढ़ता कद दुनिया के सामने यह स्वतः ही स्पष्ट कर चुका है कि भारत किसी की कठपुतली नहीं है और यह अपने फैसले राष्ट्रीय हितों को देखकर ही लेगा। मोदी सरकार के रुख को देखकर यही लगता है कि भले विश्व का कोई भी देश भारत के बारे में अपनी जो भी राय व्यक्त करे, भारत सरकार उस राय के प्रति अपनी राय जताने में देर नहीं करती। जहाँ तक विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ओर से पुरानी परम्परा को जीवित रखे जाने की बात है तो यह अच्छा है कि वह दिवंगत केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की उस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं जिसमें ट्वीट के माध्यम से लोग अपनी शिकायतें भेजा करते हैं और उनका तत्काल हल निकाल दिया जाता है।
-नीरज कुमार दुबे