चुनाव आयोग की इस गलती पर कई जानकार सवाल उठा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि चुनाव के अंतिम आंकड़े अभी तक सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए हैं और चुनावों के तुरंत बाद चुनाव आयोग ने क्यों कहा कि वीवीपीएटी मिलान में कोई अंतर नहीं मिला था। बता दें कि चुनाव के तुरंत बाद आयोग ने दावा किया था कि किसी भी वीवीपैट के मिलान में अंतर नहीं मिला। चुनाव आयोग ने जिन 8 ईवीएम में पड़े वोट और वीवीपीएटी मशीनों की पर्चियों की गिनती में अंतर पाया है, वह देश के उन 20,687 पोलिंग स्टेशन्स के हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक वोटों का फिजिकल वेरिफिकेशन कराने की बाध्यता थी। चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार, यह प्रथम दृष्टया मानवीय भूल का मामला है। राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और आंध्र प्रदेश के 8 वीवीपैट के मिलान में अंतर आया है।
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अधिकारियों का कहना कि करीब 50 वोटों का मिलान नहीं हो पाया था और यह आम चुनाव परिणामों को प्रभावित नहीं करता था। इन 8 में से ज्यादातर मशीनों में मतों का अंतर सिर्फ एक या दो वोट ही पाया गया है। सिर्फ एक मामले में यह अंतर 34 वोटों का पाया गया है और इसके पीछे भी वजह ये बताई जा रही है कि हो सकता है कि पोलिंग स्टाफ ने औपचारिक वोटिंग शुरू होने के पहले पोलिंग एजेंट्स के लिए करवाए जाने वाले मॉक पोल की पर्चियां वीवीपीएटी से हटाना भूल गए हों। गौरतलब है कि 1961 के चुनाव संचालन अधिनियम के नियम 56डी (4) (बी) के तहत अगर ईवीएम के वोटों और वीवीपीएटी की पर्चियों में मिलान नहीं होता है, तो जो वीवीपीएटी की गिनती होती है, वही मान्य होता है।
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क्या है वीवीपैट ?
वोटर जब ईवीएम के जरिए वोट करता है तो वीवीपैट यानी 'वोटर वैरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल' पर उस उम्मीदवार का नाम और पार्टी का चुनाव चिन्ह एक पर्ची पर प्रिंट हो जाता है। ये पर्ची 7 सेकंड तक वोटर को वीवीपैट पर दिखाई देती है। इसके बाद मशीन में ही सुरक्षित जमा हो जाती है।
वैसे तो आयोग इसे मानवीय भूल का मामला बता रहा है लेकिन उसकी तरफ से चुनाव बाद कोई भी अंतर नहीं होने के किए गए दावे ने विपक्ष को एक बार फिर से चुनाव आयोग पर सवाल उठाने का अवसर दे दिया है।