आज भी बैंकिंग उद्योग में बरकरार हैं यह चुनौतियां

By दीपक गिरकर | Mar 04, 2022

भारतीय बैंक बढ़ती लागत तथा घटते मार्जिन के कारण कम लाभप्रदता की समस्या से ग्रस्त है। अंतराष्ट्रीय मानकों की तुलना में भारतीय बैंकों का पूंजी आधार भी कम है। कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक मंदी ने बैंकिंग उद्योग के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी की हैं जिसकी वजह से बैंकों की आय में कमी आई हैं, दबावग्रस्त आस्तियों में वृद्धि हुई हैं, डिजिटल संचालन के लिए लागत में वृद्धि हुई हैं। केंद्र सरकार ने सरकारी बैंकों को सन 2015-16 में करीब 20,000 करोड़ रुपये की राशि उन्हें हस्तांतरित की, 2017-18 में 90,000 करोड़ रुपये, 2018-19 में 100,000 करोड़ रुपये और 2019-20 में 70,000 करोड़ रुपये की राशि उन्हें हस्तांतरित की। दिसंबर तिमाही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध मुनाफा 17,729 करोड़ रुपये रहा है। यह अब तक का सर्वाधिक मुनाफा है। निजी बैंकों को भी शामिल कर लें तो बैंकिंग उद्योग का शुद्ध मुनाफा 44,733 करोड़ रुपये रहा। कुल मिलाकर सालाना आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध मुनाफा 138.5 प्रतिशल उछल गया है जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध मुनाफे में 64 प्रतिशत से अधिक तेजी देखी गई है। आखिर बैंकों का शुद्ध मुनाफा बढऩे की वजह क्या है? बैंकों के मुनाफे में तेजी की सबसे बड़ी वजह शुद्ध ब्याज आय में इज़ाफ़े के साथ फंसे ऋण के लिए प्रावधान और आपात स्थिति के लिए रखी गई रकम में कमी से शुद्ध मुनाफे में वृद्धि हुई है। शुद्ध ब्याज आय में इसीलिए वृद्धि हुई है कि जिन स्टैण्डर्ड ऋण खातों में ब्याज की वसूली 90 दिन बीत जाने के बाद भी नहीं हुई है, वह ब्याज की राशि भी इस आय में शामिल है। आजकल बैंकों में विंडो ड्रेसिंग का काम बहुत अधिक हो रहा है। सार्वजनिक बैंकों में एनपीए पर प्रावधान और आपात रकम में 34.5 प्रतिशत की कमी हुई है जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों में 42.5 प्रतिशत कमी आई है।

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़े बताते हैं कि 31 मार्च, 2021 तक बैंकों की 8.34 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति एनपीए थी। दिसंबर 2021 में आई आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रपट बताती है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैरनिष्पादित परिसंपत्तियों (जीएनपीए) का अनुपात सितंबर 2022 तक बढ़ कर 8.1 फीसद हो जाएगा, जो सितंबर 2021 में 6.9 फीसद था। तनावपूर्ण परिस्थिति में यह 9.5 फीसद तक भी जा सकता है। यह चिंताजनक है। गैर निष्पादित परिसंपत्तियां बढ़ने का सबसे बड़ा कारण धोखाधड़ी हैं. नित नई धोखाधड़ी हो रही है और गुणवत्ता वाले नये ऋणों का संवितरण नहीं हो रहा हैं। हर्षद मेहता से प्रारंभ हुई आर्थिक धोखाधड़ी के बाद से बैंकों में गैर-पेशेवाराना सुरक्षा प्रबंध अपनाए जाने के कारण निरंतर जारी है। विनसम ग्रुप, जो डायमंड के कारोबार में था, ने 6800 करोड़ रूपये की बैंक धोखाधड़ी की थी। शराब माफ़िया विजय माल्या ने 9 हज़ार करोड़ रूपये डकारे और ललित मोदी ने मनी लांड्रिंग के ज़रिए 2200 करोड़ रूपये, जतिन मेहता ने 6712 करोड़ रूपये और संदेसरा बंधुओं ने 5700 करोड़ रूपये का चूना लगाया। हीरा कारोबारी नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और उनके सहयोगियों ने पंजाब नेशनल बैंक के साथ 14000 करोड़ रूपये का घोटाला किया था। अब तक बैंक धोखाधड़ी के मामले में विजय माल्या और नीरव मोदी का नाम ही सबसे ऊपर चल रहा था। सरकार का पूरा फोकस भी इन्हीं दोनों पर था, लेकिन अब एक नया घोटाला सामने आया और माल्या-मोदी को कहीं पीछे छोड़ दिया। यह घोटाला किया है सूरत बेस्ड कंपनी एबीजी शिपयार्ड कंपनी ने। यह बैंक फ्रॉड करीब 23 हजार करोड़ का है यानी विजय माल्या 9 हजार करोड़ और नीरव मोदी 14 हजार करोड़, दोनों की कुल धोखाधड़ी के बराबर। सीबीआई ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए कंपनी के पूर्व अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ऋषि कमलेश अग्रवाल समेत आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड ने देश की अलग-अलग 28 बैंकों से कारोबार के नाम पर 2012 से 2017 के बीच कुल 28,842 करोड़ रुपये का ऋण लिया था। बैंकों में बढ़ते धोखाधड़ी के मामले निश्चित रूप से बैंकिंग व्यवस्था की कमज़ोरी को उजागर कर रहे हैं। उद्योगपतियों के आगे लाल कालीन बिछाने की सरकारी प्रवृत्ति से ही एक के बाद एक बैंक घोटाले हुए हैं। सभी कर्मचारियों-अधिकारियों को समझना होगा कि वे सिर्फ़ अपने संस्थान की नौकरी कर रहे हैं। अत: कर्मचारियों-अधिकारियों को अपने संस्थान के ही प्रति जवाबदार होना चाहिए। कई बैंक जोखिम प्रबंधन ढांचा तैयार किए बिना खुदरा ऋण आवंटित कर रहे हैं जबकि कुछ बैंक जोखिमों का सही आकलन किए बिना कंपनियों को ऋण दे रहे हैं। कुछ बैंकों में संचालन व्यवस्था भी एक समस्या रही है मगर यह एक अलग मसला है। सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंक ऐसे राइट-ऑफ का सहारा लेकर अपना सकल एनपीए कम करने में सफल रहे हैं। खासकर इनमें वे बैंक शामिल हैं जिनका आकार विलय के बाद बढ़ गया है। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र के बैंकों ने परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों को फंसे ऋण बेचकर सकल एनपीए में कमी ला पाए हैं। 


कर्ज़ अदा न करने पर बैंक कर्ज़दारों के साथ समझौता करके औने-पौने में ऋण को सेटल कर देते हैं। मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लिमिटेड, इलेक्ट्रोस्टील स्टील, आलोक इंडस्ट्रीज़, एमटेक आटो, ज्योति स्ट्रक्चर, भूषण स्टील कुछ ऐसे उदाहरण है जिनके लोन सेटलमेंट से बैंकों को 78 हज़ार करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान हुआ हैं। आलोक इंडस्ट्रीज़ में 29500 करोड़ रूपये से अधिक की बकाया राशि थी। इस ऋण खाते में सिर्फ 5000 करोड़ रूपये में समझौता किया गया। इस प्रकरण में हेयर कट की राशि कुल बकाया कर्ज़ की 83 फीसदी थी। एमटेक आटो में 12327 करोड़ रूपये से अधिक की बकाया राशि थी। इस ऋण खाते में हेयर कट की राशि कुल बकाया कर्ज़ की 75 फीसदी थी। मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लिमिटेड में दस हज़ार करोड़ रूपये से अधिक की बकाया राशि थी। इस ऋण खाते में हेयर कट की राशि कुल बकाया कर्ज़ की 72 फीसदी थी। ऋण समझौतों में कम राशि वसूल करके अधिक राशि बट्टे खाते में डालकर इसे अनुत्पादक आस्तियों की वसूली में बहुत बड़ी सफलता के रूप में प्रचार-प्रसार किया जाता है। बैंक के पास ऋणी की बंधक संपत्तियों का वसूली योग्य मूल्य कुल बकाया राशि से बहुत अधिक होने के बाद भी बैंक ऋण समझौतों में हेयरकट के बाद चूककर्ता ऋणी से बहुत कम राशि की वसूली करके उन्हें ऋण मुक्त कर रहे हैं।

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रिजर्व बैंक एक नियामक के तौर पर अपने ही दिशा निर्देशों को लागू करा पाने में सफल नहीं हो पाया है। यह चिंता की बात है। हमें अपने नियामकों को सशक्त करने के बारे में विचार करना होगा। दोषपूर्ण बैंकिंग नियमन से बैंक वर्ष 2015 तक गैर निष्पादित आस्तियों को कम दिखाती रही और नियामक संस्था इनकी इस गतिविधि पर नियंत्रण नहीं कर सकी थी। बाजार नियामक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने फर्जी कंपनियों पर बहुत पहले ही शिकंजा कसना था। सेबी ने मुखौटा कंपनियों का पता लगाकर उनका पंजीयकरण रद्द करने की प्रक्रिया में काफ़ी देरी की है। इस नियामक संस्था को यह काम बहुत पहले कर देना था। बैंकों की नई चुनौतियों से निपटने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति और चयन व्यवस्था में बदलाव किये जाने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत कार्यकारी निदेशकों, बोर्ड के सदस्यों से लेकर अध्यक्ष तक सबके संदर्भ में बदलाव किये जाने की आवश्यकता है।


- दीपक गिरकर

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