पर्यावरण संरक्षण स्वस्थ जीवन के लिए बेहद आवश्यक

By दीपक कुमार त्यागी | Jun 05, 2020

5 जून के दिन को हर साल 'विश्व पर्यावरण दिवस' के रूप में पूरी दुनिया में व्याप्त तरह-तरह के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारगर प्रयासों पर मंथन करके, भविष्य में पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण करने के लिए बेहद आवश्यक कदमों पर अमल करने के उद्देश्य से उसकी रूपरेखा बनाने के लिए नीतिनिर्माताओं के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने के लिए सम्पूर्ण विश्व में आम जनमानस के द्वारा हर वर्ष मनाया जाता है। वैसे भी जब इस दिवस को शुरुआत में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासंघ ने पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति वैश्विक स्तर पर सभी देशों के आम जनमानस में राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के उद्देश्य से वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। उसके बाद ही विश्व में 5 जून 1974 को पहला 'विश्व पर्यावरण दिवस' मनाया गया था। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि फिर भी आज विश्व के अधिकांश देशों में बढ़ता प्रदूषण वर्तमान समय की एक सबसे ज्यादा बेहद गंभीर ज्वंलत समस्या बन गया है। कही ना कही विश्व में हर तरफ छिड़ी विकास की अंधाधुंध अव्यवस्थित दौड़ ने जगह-जगह प्रदूषण फैलाने में अपना योगदान देकर हमारी भूमि, जल व वायु को प्रदूषित करके हर तरफ आवोहवा को खराब करने का काम किया है। आज हमारे देश भारत में भी हर तरह का प्रदूषण अपने चरम स्तर पर है, हालांकि देश में पिछले कुछ माह के लॉकडाउन के चलते हर तरफ सभी कुछ बंद होने के कारण पर्यावरण को पुनर्जीवित होने के लिए भरपूर अवसर मिल गया है, जिसके चलते देश में आजकल सभी प्रकार के प्रदूषण से लोगों को काफी राहत मिली है, लेकिन महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न यह है कि देश में पर्यावरण की यह स्थिति लगातार किस प्रकार बनी रहे, अब तो चलो कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए देश में हुए लॉकडाउन से पर्यावरण को संजीवनी मिल गयी, लेकिन लॉकडाउन खुलने के पश्चात भविष्य में यह स्थिति किस प्रकार बरकरार रखें यह चुनौती व जिम्मेदारी देश के हर व्यक्ति को समझनी होगी।

 

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आज हम लोग जिस तरह से बहुत तेजी के साथ अव्यवस्थित ढंग से दुष्प्रभाव के बारे में बिना सोचे समझे आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल कर रहे है वह उचित नहीं है। हमारे देश में किसी भी प्रकार से प्रकृति व पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाकर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन ना करना आज एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। सभी पक्षों के द्वारा कानून पर्यावरण के सरंक्षण पर होने वाले खर्चों में चोरी छिपे कटौती करके, अत्याधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रदूषण नियंत्रण के नियम कानूनों की अनदेखी करने वाली सोच प्रदूषण कम करने में बहुत बड़ी बाधक है। आज हमारे देश के सारे सिस्टम की सोच देश में स्थापित उधोगों के लिए अपने देश के प्राकृतिक संसाधनों का बहुत ज्यादा दोहन करने की हो गयी है, जिसके चलते हम स्वयं भूमि, जल व वायु को प्रदूषित करके देश को जल्द से जल्द विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों की श्रेणी में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। आज और भविष्य में यह स्थिति हम सभी के स्वास्थ्य व पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद घातक है और इस समस्या से हमारे देश के नीतिनिर्माता ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के पर्यावरण प्रेमी भी अवगत और चिंतित है। आज खुद मानव जनित घातक प्रदूषण के चलते मनुष्य व जीव जंतु जिस तरह के प्रदूषित वातावरण में रह रहे है, अगर स्थिति को यही पर समय रहते तत्काल नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले समय में अब तरह-तरह की समस्याओं के चलते स्थिति दिन-ब-दिन बहुत तेजी से खराब होती जायेगी। यह हालात बरकरार रहे तो देश में बहुत सारी जगहों पर पीने योग्य पानी, सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु व केमिकल रहित मिट्टी बीते दिनों की बात हो सकती है। देश में हर तरफ प्रदूषण की भयावह हालात होने के बाद आज भी हमारे देश में बार-बार पर्यावरण संरक्षण को लेकर के नियम कायदा-कानूनों के सही ढंग से अनुपालन के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय से बेहद तल्ख टिप्पणी आती है, हमारे देश के सिस्टम को प्रदूषण व पर्यावरण से जुड़े बेहद  गंभीर मसलों पर एनजीटी जैसी महत्वपूर्ण शीर्ष संस्था आयेदिन फटकार लगाती रहती है, लेकिन उसके बाद भी पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद आवश्यक प्रभावी कदम कागजों की बंद फाईल से निकल कर धरातल पर न जाने क्यों व किसके दवाब में आसानी से कार्यान्वित नहीं हो पाते हैं। सरकार की बात करें तो देश में बेहद तेजी के साथ बढ़ते प्रदूषण के स्तर के बाद भी पर्यावरण संरक्षण के बेहद ज्वलंत मसले पर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार की रोजमर्रा की कार्यप्रणाली में प्रदूषण नियंत्रण धरातल पर प्राथमिकता में बिल्कुल भी नजर नहीं आता है। आज हम सभी देशवासियों को समय रहते यह समझना होगा कि पर्यावरण संरक्षण सिर्फ 'विश्व पर्यावरण दिवस' पर भाषण देकर, फिल्म देखकर, किताब पढ़कर या लेख लिखकर नहीं हो सकता, बल्कि हर भारतवासियों को अपनी प्यारी धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी दिल व दिमाग दोनों से समझनी होगी, तभी भविष्य में धरातल पर प्रदूषण नियंत्रण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे। लेकिन बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि चंद लोगों को छोड़कर हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण के मसले पर किसी भी पक्ष में कोई गंभीरता नजर नहीं आती है। लेकिन देश में इसकी आड़ में बहुत लम्बे समय से सरकारी फंड की जबरदस्त बंदरबांट जरूर जारी है। हर वर्ष करोड़ों वृक्ष लगा दिये जाते है जो सिवाय कागजों के कहीं नजर नहीं आते हैं। देश में पर्यावरण संरक्षण के बेहद ज्वंलत मसले पर सुप्रीम कोर्ट की तय गाइडलाइंस व एनजीटी के निर्णयों पर अमल की स्थिति को देखकर लगता है कि कही ना कही हमारे देश के सिस्टम की भयंकर इरादतन लापरवाही के चलते सर्वोच्च संस्थाएं अब पर्यावरण संरक्षण के अपने निर्णयों पर अमल कराने में अपने आपको असहाय लाचार महसूस कर रही है।

 

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कोरोना संक्रमण से बचने के लिए देश में किये गये लॉकडाउन के बाद आया 'विश्व पर्यावरण दिवस' इस बार हम सभी लोगों को एक बेहद महत्वपूर्ण सबक देता है कि देश में हर तरफ फैले बेहिसाब घातक प्रदूषण के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस तरह से देश में कल-कारखाने व अन्य सभी कुछ कार्य बंद होने के चलते जल, वायु व भूमि प्रदूषण में चंद दिनों में ही भारी कमी आयी है, उसने सभी विशेषज्ञों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है। आज जो नदियां करोड़ों रुपये सालाना स्वच्छता पर खर्च करने के बाद भी साफ नहीं हो पा रही थी।


वह सभी लॉकडाउन में सब कुछ बंद होने के चलते स्वतः साफ हो गयी हैं। लॉकडाउन की वजह से साफ हुए नदी, जल स्रोत, स्वच्छ वायु, साफ नीले तारे टिमटिमाता आसमान, स्वछंद घूमते जीव-जंतु आदि हम सभी को एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश देते है कि यह सब घातक प्रदूषण मानव के द्वारा स्वयं पैदा किया गया है। इसलिए प्रकृति का हम सभी लोगों के लिए बिल्कुल स्पष्ट संदेश है कि देश में भूमि, जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण कम करने की जिम्मेदारी हमारी खुद की है, आज से ही हम सभी लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जीवनदायिनी प्रकृति के साथ तालमेल बना कर चलना होगा, भविष्य में हमको प्राकृतिक संसाधनों का सोच-समझकर और बेहद संभलकर उपयोग करना होगा, तब ही आने वाले समय में देश में पर्यावरण का संरक्षण ठीक से होगा और हम सभी लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को प्रकृति पूर्ण कर पाएगी। आज हमको ध्यान रखना होगा कि प्रदूषण का बढ़ते स्तर का ज्वंलत मुद्दा, आने वाले समय में देशों में सीमा, जाति और अमीर-गरीब की दीवारों को समाप्त करने वाला यह ऐसा मुद्दा होगा जिस पर पूरी दुनिया के लोगों को जीवन को सुरक्षित बचायें रखने के लिए हर हाल में एक होना होगा। आज हमको अपने सेवा भाव, दृढसंकल्प व दृढ इच्छाशक्ति के बलबूते देश में पर्यावरण संरक्षण को भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से बाहर लाकर, हर भारतवासी को प्रकृति व पर्यावरण के प्रति अपनी बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को समय रहते दिल व दिमाग दोनों से समझना होगा, तभी भविष्य में प्रदूषण कम होगा और धरातल पर पर्यावरण संरक्षण के कुछ ठोस प्रभाव नजर आ सकेंगे।


दीपक कुमार त्यागी

स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व रचनाकार


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