लद्दाख के पार्षद कोंचोक स्टैनज़िन का दावा, चीनी मौजूदगी के कारण नहीं चरा पा रहे मवेशी, ग्रामीणों को ही रही दिक्कत

By अनुराग गुप्ता | Sep 24, 2021

लद्दाख। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर भारत और चीन के बीच तनातनी का माहौल है। ऐसे में पहले की स्थिति को बहाल करने के लिए दोनों देशों के बीच में सैन्य स्तर की वार्ता चल रही है। इसी बीच लद्दाख के चुशुल गांव के एक पार्षद का बयान सामने आया। जिसमें उन्होंने कहा कि गोगरा क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति की वजह से ग्रामीणों को समस्या हो रही है। 

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अंग्रेजी समाचार वेबसाइट 'द हिंदू' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक चुशुल गांव के पार्षद कोंचोक स्टैनज़िन ने दावा किया कि पूर्वी लद्दाख के गोगरा क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति की वजह से ग्रामीणों के लिए समस्या पैदा हो रही है। दरअसल, ग्रामीण लोग चराई के लिए इस्तेमाल होने वाली भूमि तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।

नहीं चरा पा रहे मवेशी

कोंचोक स्टैनज़िन ने कहा कि भारतीय सेना योरगो, लुकुंग और फोबरांग के ग्रामीणों को किउ ला दर्रे तक नहीं जाने दे रही है, जहां पर वह लोग पहले अपने मवेशियों को चराने के लिए जाते थे।

चुशुल गांव के पार्षद ने कहा कि कुछ वक्त पहले ग्रामीणों के एक समूह किउ ला दर्रे की तरफ जा रहे थे, जिन्हें सेना ने जाने से रोक दिया था। ऊपरी इलाकों में एक बंकर हुआ करता था, लेकिन अब वह नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें डर है कि चीनी हमारे क्षेत्र में घुसपैठ कर रहे हैं। पहले कभी भी यह विवादित क्षेत्र नहीं रहा है। 

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रिपोर्ट के मुताबिक सेना के अधिकारियों ने इस विषय पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। लेकिन 2 अप्रैल को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने पार्षद से कहा था कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए मवेशी चराने वालों को कुछ वक्त के लिए इसे रोकना होगा।

भारत और चीन के बीच गतिरोध बना हुआ है। गोगरा में भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। आपको बता दें कि भारत-चीन के बीच की सीमा परिभाषित नहीं है। ऐसे में लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक हजारों किमी फैली हुई सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा के तौर पर जाना जाता है। 

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गलवान में शहीद हुए थे 20 जवान

पिछले साल 15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सेना के बीच में हिंसक झड़प हुई थी। जिसमें भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। हालांकि इसमें चीन के सैनिक भी मारे गए थे। इसके बाद विवाद को समाप्त करने के लिए कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ता हो चुकी है। वहीं 31 जुलाई को हुई सैन्य स्तर की वार्ता में दोनों देश गोगरा से अपनी सेनाएं हटाने पर राजी हो गए थे।

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