किसी ज़माने में फिल्मों में फ्लैश बैक में फ्लैश बैक दिखाते थे। निर्देशन उत्कृष्ट न हो तो बातें, घटनाएं और कहानी कई बार समझ नहीं आती थी। ऐसा लगता था ख़्वाब में ख़्वाब देख रहे हैं। पिछले दिनों एक विशाल व्यक्तित्व ने फरमाया कि समाज से हीनभाव और सामाजिक अहंकार समाप्त होने चाहिए। यह दोनों विकृतियां समाज के साथ देश को भी तोड़ने का प्रयास करती हैं। समाज के विकार खत्म होने चाहिए। यह ठीक वैसा ही होगा कि ख़्वाब में ख़्वाब देखो और असलीयत में वही रहो, जैसे हो। वैसे हीन भाव और अहंकार समाप्त होना गज़ब रहेगा। अगर समाज से हीनभाव और सामाजिक अहंकार जैसी ठोस चीज़ें चली गई तो लगेगा नए ख़्वाब देखने का मौसम आ गया है।
‘चाहिए’ शब्द, बहुत खतरनाक, डराने वाला शब्द है। इसमें ढेरों अपेक्षाएं छिपी हुई हैं जिन्हें पूरा करना ख़्वाब में भी मुश्किल है। जातिवाद, विषमता और अस्पर्श्यता की जड़ें समंदर से भी गहरी हैं। यह हमारी ज़िंदगी का नज़रिया है। हमारे कटु अनुभव हैं। हमारे खून की हर कोशिका में है। इन विषयों पर चर्चाएं बहुत गंभीरता से होती हैं ठीक जैसे जल संरक्षण, वन संरक्षण या पर्यावरण सरंक्षण पर शोरदार ज़ोरदार निबंध लिखे जा रहे हैं। क्या हीन भाव खत्म करने का तरीका होगा, जिसके पास अच्छी भावनाओं, अच्छे चरित्र की कमी है वह संकल्प लेकर समझने लग जाए कि उसकी भावनाएं अच्छी हैं, उसके पास सुचरित्र है।
जिसके पास सामान्य या उच्च भाव नाम की वस्तु नहीं है, सरकार उसे अपनी सामाजिक योजना के तहत मुफ्त में यह वस्तु दे। जैसे पुलिस अमुक व्यक्ति को लिखकर दे सकती है कि वह चरित्रवान है। ऐसा प्रमाण पत्र कोई और विभाग नहीं दे सकता। हीन भावना दुर्भावना की तरह होती है। यह कमज़ोर इम्युनिटी वालों की कम्युनिटी की मानिंद है। जिस तरह समाज को कमज़ोर इम्युनिटी वालों की ज़्यादा ज़रूरत नहीं है फिर भी सामाजिक बाध्यताओं के कारण उन्हें जीवित रखा जाता है उसी प्रकार हीन भावना को खत्म करने के लिए वैक्सीन इजाद करनी चाहिए। इंजेक्शन लगा और हीन भावना फुर्र। सदभाव का इंजेक्शन लेकर भी महसूस किया जा सकता है कि हीन भाव कुछ कम हो गया है। वह बात दीगर है कि बहुत लोग चाहते हैं कि उन्हें जाति, सम्प्रदाय, गोत्र से जाना जाए। इसलिए पहचान, पहचान से लड़ रही है। प्रतीकों के झंडे बुलंद किए जा रहे हैं।
सामाजिक अहंकार, हीन भाव का अवैध अभिभावक है। शक्ति का चरित्र ही ऐसा होता है। चारित्रिक विशेषताएं हज़ारों साल में स्थापित होती हैं। वह शक्ति का अहंकार बनाकर उसके वितरण का प्रबंधन करती है। वह दूसरों के लिए डर उगाती हैं। डर को होली के हानिकारक रंग की तरह प्रयोग किया जाता है। इसे ‘इवेंट मैनेजमेंट’ की तरह करना उसका नैतिक अधिकार माना जाता है। अहंकार संचयन के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। यह वास्तविकता के सिद्धांत पर आधारित होता है। इसमें व्यवहारिक सामाजिकता व संस्कृति का घालमेल होता है। इसे स्वीकार करना ही पड़ता है। यह कभी खत्म नहीं हो पाता। एक ही उपाय, हीनभाव और सामाजिक अहंकार को लम्बे सशक्त ख़्वाब में पूरी तरह से खत्म कर सकते हैं।
- संतोष उत्सुक