By अभिनय आकाश | Aug 02, 2022
चीन ताइवान से 267 गुणा बड़ा देश है। जिसके बाद ताइवान से 10 गुणा बड़ी सेना है। चीन का एयरफोर्स ताइवान से पांच गुणा बड़ा है। चीन के पास 18 गुणा ज्यादा सबमरीन है। लेकिन इस सब के बाद भी चीन ने ताइवान पर हमला नहीं किया। अमेरिकी सभा की स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा को लेकर तनाव इस वक्त अपने चरम पर है। चीन ने धमकी दी है कि अगर नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की तो उसकी सेना चुप नहीं बैठेगी और कार्रवाई करेगी। इससे पहले अमेरिका ने अपने दो एयरक्राफ्ट कैरियर, दर्जनों युद्धपोत और 3 सबमरीन को ताइवान की सीमा के बेहद करीब भेजा। लेकिन तमाम किंतु परंतु के बीच नैन्सी पेलोसी का विमान कुछ ही घंटों में ताइपे द्वीप पर टच डाउन करने वाला है। पेलोसी की यात्रा पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वाशिंगटन को 'बहुत गंभीर परिणाम' की चेतावनी दी है। दूसरी ओर अमेरिका ने कहा कि वह 'चीन की धमकियों से नहीं डरेगा'।
राष्ट्रपति दफ्तर की वेबसाइट पर साइबर अटैक
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की यात्रा से पहले एक विदेशी साइबर हमले की चपेट में आ गई है। इसकी वजह से ताइवान के राष्ट्रपति दफ्तर की वेबसाइट डाउन हो गई। इस पर 502 server error दिखाई दे रहा है। हालांकि वेबसाइट जल्द ही नॉर्मल हो गई।
अमेरिका की बड़ी तैयारी
तनाव के बीच साउथ चाइना सी में इमरजेंसी अलर्ट जारी किया गया है। नैन्सी पेलोसी के दौरे को लेकर ताइवान भी पूरी तरह से अलर्ट है। ताइवानी सेना के जवानों की छुट्टी रद्द कर दी गई है। किसी भी किस्म के संभावित हमले के लिए वो पूरी तरह से अलर्ट है। नैन्सी के ताइवान दौरे को लेकर अमेरिका की भी बड़ी तैयारी है। अमेरिका का बड़ा डिप्लायमेंट देखने को मिल रहा है। अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियर ताइवान के पास ही तैनात है।
चीन क्या धमकी दे रहा है
नैन्सी पेलोसी के एयरक्राफ्ट पर हमला कर सकता है। लेकिन इस बात की संभावना बेहद कम नजर आती है।
सैन्य कार्रवाई की धमकी दे रहा है।
ताइवान के पास सैन्य जमावड़ा को बढ़ा देगा। ऐसा ही कुछ एयर स्पेस और साउथ चाइना सी में देखने को भी मिल रहा है।
नैन्सी पेलोसी के ताइवान से जाने के बाद जवाबी प्रतिक्रिया चीन की तरफ से की जाएगी। इस बात की संभावना भी है।
पेलोसी के ताइवान छोड़ने के बाद गैर सैन्य कार्रवाई से इतर आर्थिक भी की जा सकती है।
चीन और ताइवान विवाद का इतिहास
चीन के साथ ताइवान का पहला संपर्क साल 1683 में हुआ था जब ताइवान, क्विंग राजवंश के नियंत्रण में आया था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इसकी भूमिका पहले चीन-जापान युद्ध (1894-95) में सामने आई, जिसमें जापान ने क्विंग राजवंश को हराया था और ताइवान को अपना पहला उपनिवेश बनाया। इस पराजय के बाद चीन कई छोटे छोटे भागों में टूटने लगा। उस दौर में चीन के बड़े नेता सुन् यात-सेन हुआ करते थे जो सभी भागों को जोड़कर पूरे चाइना को एक देश बनाना चाहते थे। चीन को एक करने के लिए सुन् यात-सेन ने 1912 में कुओ मिंगतांग पार्टी का गठन किया और रिपब्लिक ऑफ चाइना वाले अपने अभियान में वो काफी हद तक सफल भी हुए। लेकिन 1925 सुन् यात-सेन की मौत हो गई। उनकी मृत्यु के बाद कुओ मिंगतांग पार्टी दो भागों में बंट गई एक बनी नेशनलिस्ट पार्टी और दूसरी कम्युनिस्ट। नेशनलिस्ट पार्टी जनता को ज्यादा अधिकार देने की पक्षधर थी। जबकि कम्युनिस्ट का मानना था कि सरकार तय करेगी की कैसे शासन करना है। नेशनलिस्ट पार्टी पूरी तरह से उदारवादी परिकल्पना पर आधारित था जबकि उसके वनस्पद कम्युनिस्ट वन मैन शो यानी पूरी तरह से डिक्टेटरशिप पर आश्रित था। यहीं से चीन के अंदर महायुद्ध की शुरुआत होती है। 1927 में शंघाई शहर में नेशनलिस्ट पार्टी के लोगों ने कम्युनिस्ट पार्टी के लाखों लोगों का नरसंहार कर दिया, इसे शंघाई नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इसने ही गृह युद्ध का रूप ले लिया। ये गृह युद्ध 1927 से लेकर 1950 तक चला।
सैन्य ताक़त में चीन के सामने बहुत छोटा है ताइवान
चीन के पास हर तरह के सैनिकों को मिला लें तो वहां 20.35 लाख सक्रिय सैनिक हैं। वहीं, ताइवान में केवल 1.63 लाख सक्रिय सैनिक हैं। चीन की वायुसेना में क़रीब चार लाख लोग हैं, लेकिन ताइवान में केवल 35 हज़ार कार्मिक हैं। चीन का अपनी सेना पर सालाना ख़र्च दुनिया में अमेरिका को छोड़कर सबसे ज़्यादा है।
चीन | सैन्य क्षमता | ताइवान |
20 लाख | सक्रिय सैनिक | 1.7 लाख |
5.10 लाख | रिजर्व सैनिक | 15 लाख |
1200 | फाइटर प्लेन | 288 |
912 | हेलीकॉप्टर | 208 |
281 | अटैक हेलीकॉप्टर | 91 |
5250 | टैंक | 1110 |
35000 | बख्तरबंद गाड़ियां | 3472 |
4120 | स्वचलित तोपखाना | 257 |
79 | सबमरीन | 4 |
507 | एयरपोर्ट | 37 |
क्या अमेरिका से टक्कर लेगा चीन?
अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पास किया, जो ताइवान को समर्थन देने की गारंटी था। यह एक्ट यह भी कहता था कि अमेरिका को हर हाल में ताइवान की मदद करनी चाहिए ताकि वह अपनी सुरक्षा कर सके। इसी वजह से अमेरिका आज भी ताइवान को अपने हथियारों की बिक्री करता है। साल 1996 में जब ताइवान की खाड़ी में तनाव पैदा हुआ था तो अमेरिका ने लड़ाकू विमानों के दो समूह ताइवान के लिए भेजे थे। ये इसलिए था कि चीन की ओर से ताइवान को निशाना बनाकर हो रही कार्रवाई को रोका जा सके। ऐसे में चीन कभी भी ऐसी लड़ाई में नहीं उतरेगा, जिसमें वो जीत नहीं सकता। अमेरिका के साथ जंग लड़ने की बजाय चीन पेलोसी पर कुछ प्रतिबंध लगा सकता है। चीन ताइवान के साथ न तो अभी और न ही भविष्य में कोई जंग करेगा, क्योंकि वो सीधे अमेरिका से टक्कर मानी जाएगी।