By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 01, 2022
उज्जैन। उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मन्दिर के शीर्ष शिखर पर नागचंद्रेश्वर मन्दिर के पट वर्ष में एक बार चौबीस घंटे के लिये सिर्फ नागपंचमी के दिन खुलते हैं। 01 अगस्त, 2022 सोमवार की मध्यरात्रि विशेष पूजा अर्चना के साथ आम भक्तों के लिये मन्दिर के पट खुल जायेंगे और भगवान नागचंद्रेश्वर महादेव के लगातार चौबीस घंटे दर्शन होंगे। मन्दिर के पट 02 अगस्त, 2022 मंगलवार की रात्रि 12 बजे बन्द होंगे। इस दौरान लाखों श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करेंगे। इसे देखते हुए प्रशासन ने व्यापक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की हैं।
श्री नागचन्द्रेश्वर भगवान की होगी त्रिकाल पूजा
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक श्री गणेश कुमार धाकड़ ने बताया कि नागपंचमी पर्व पर भगवान श्री नागचन्द्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी, जिसमें 01 अगस्त रात्रि 12 बजे पट खुलने के पश्चात श्री पंचायती महा निर्वाणी अखाड़े के महंत श्री विनित गिरी जी महाराज द्वारा भगवान श्री नागचंद्रेश्वर का पूजन किया जावेगा। शासकीय पूजन 02 अगस्त दोपहर 12 बजे होगा। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा 02 अगस्त को श्री महाकालेश्वर भगवान की सायं आरती के पश्चात मंदिर के पुजारी एवं पुरोहितों द्वारा पूजन-आरती की जायेगी।
नागपंचमी पर्व पर लाखों श्रद्धालु लेंगे दर्शन-लाभ
नागपंचमी पर्व पर श्री महाकालेश्वर मन्दिर परिसर में महाकाल मन्दिर के शीर्ष शिखर पर स्थित श्री नागचंद्रेश्वर भगवान के पूजन-अर्चन के लिये लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचेंगे। हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर स्थित हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष शिखर पर स्थित है। श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11 वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है। प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। माना जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में श्री शिवजी, माँ पार्वती श्रीगणेश जी के साथ सप्तमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं साथ में दोनो के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित है। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।