By प्रेस विज्ञप्ति | Jul 26, 2022
संयुक्त राष्ट्र संघ मे 1985 से ILO मे और बाद मे 28 जुलाई 2000 को United Nations Permanent Forum on Indigenous Issues (UNPFII) का गठन हुआ जो इस फ़ोरम के माध्यम से दुनियाँभर के मूल निवासियों के हितों की रक्षा के लिये प्रयास कर रहा है। यह मंच मूल निवासियों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास, संस्क्रति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर कार्य कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 13 सितम्बर, 2007 को मूल निवासियों के अधिकारों का एक घोषणापत्र (declaration) स्वीकार किया जिसके पक्ष पक्ष मे विश्व के 144 देशों ने वोट दिया, 11 देश अनुपस्थित रहे और 4 देशों ने इसके विरोध मे वोट दिया; ये चार देश थे आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका। इन चार देशों ने भी चार वर्ष बाद वर्ष 2011 मे इसे मंज़ूरी दे दी थी।
भारत के प्रतिनिधि ने इस घोषणापत्र के पक्ष मे वोट देते हुए इस विषय पर भारत की स्थिति को उसी समय साफ़ कर दिया :-
अजय मल्होत्रा ने कहा कि उनके देश (भारत) ने स्वदेशी लोगों के अधिकारों के प्रचार और संरक्षण का लगातार समर्थन किया है। यह तथ्य कि कार्य समूह आम सहमति तक पहुंचने में असमर्थ रहा है, केवल इसमें शामिल मुद्दों की अत्यधिक जटिलता को दर्शाता है। जबकि घोषणा में यह परिभाषित नहीं किया गया था कि स्वदेशी लोगों का गठन क्या है, स्वदेशी अधिकारों का मुद्दा स्वतंत्र देशों में लोगों से संबंधित है, जिन्हें देश में रहने वाली आबादी, या देश के भौगोलिक क्षेत्र से उनके वंश के कारण स्वदेशी माना जाता था। विजय या उपनिवेशीकरण या वर्तमान राज्य की सीमाओं की स्थापना का समय और जिन्होंने अपनी कानूनी स्थिति के बावजूद, अपने कुछ या सभी सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संस्थानों को बनाए रखा।
आत्मनिर्णय के अधिकार के संदर्भ में, यह उनकी समझ थी कि आत्मनिर्णय का अधिकार केवल विदेशी प्रभुत्व के तहत लोगों पर लागू होता है और यह अवधारणा संप्रभु स्वतंत्र राज्यों या लोगों के एक वर्ग या राष्ट्र पर लागू नहीं होती है, जो राष्ट्रीय अखंडता का सार था। घोषणा में स्पष्ट किया गया कि स्वदेशी लोगों द्वारा अपने आंतरिक और स्थानीय मामलों से संबंधित मामलों में स्वायत्तता या स्वशासन के अधिकार के साथ-साथ उनके स्वायत्त कार्यों के वित्तपोषण के साधनों और तरीकों के संदर्भ में आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रयोग किया जाएगा। इसके अलावा, अनुच्छेद 46 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि घोषणा में कुछ भी किसी भी राज्य, लोगों, समूह या व्यक्ति के लिए किसी भी गतिविधि में शामिल होने या चार्टर के विपरीत कोई कार्य करने के अधिकार के रूप में व्याख्या नहीं की जा सकती है। इसी आधार पर भारत ने घोषणापत्र को अपनाने के पक्ष में मतदान किया था।
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मूल निवासी कौन हैं?
प्रश्न उठता है कि मूल निवासी कौन हैं, उपरोक्त चार देशों ने इसका विरोध क्यों किया और भारत को इसके पक्ष मे वोट देते समय ही अपनी स्थिति क्यों साफ़ करनी पड़ी? UNO ने इसको कहीं परिभाषित नहीं किया. यहाँ मूल निवास (Indigenous People या Natives) से तात्पर्य है जिन देशों पर बाहरी, विदेशी औपनिवेशिक ताक़तों ने क़ब्ज़ा कर लिया वहाँ के मूल निवासी। इन औपनिवेशिक ताकतों में डच (नीदरलैण्ड), इंग्लैंड (UK या ब्रिटेन), पुर्तगाल, स्पेन और फ़्रांस प्रमुख हैं। विरोध में वोट देनेवाले उपरोक्त चारों देशों मे भी इन्हीं विदेशी-औपनिवेशिक आक्रामकों के प्रवासी गोरे लोग अधिक संख्या में बसे हुए हैं और उन्हें डर था कि यदि वे इस घोषणा के पक्ष मे वोट देते हैं तो उन्हें मूल निवासियों को वह सारी ज़मीन - जायदाद लौटानी पड़ेगी जो सैंकड़ों साल पहले उनका भीषण नरसंहार कर हड़पली गई थी।
भारत की स्थिति:
अपने देश भारत मे तो ऐसी स्थिति कभी नही थी। यहाँ के नगर-ग्राम-वनवासी सबने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई मे मिलकर भाग लिया था। इस अर्थ में यहाँ रहने वाले सभी नागरिक यहाँ के मूलनिवासी हैं, कोई बाहर से नहीं आया, देशज लोगों द्वारा किसी का नरसंहार नही हुआ। इसी ऐतिहासिक तथ्य के आधार पर भारतीय राजनयिक अजय मल्होत्रा ने संयुक्त राष्ट्र संघ मे भारत की स्थिति साफ़ करते हुए घोषणापत्र के पक्ष मे वोट दिया था। इस विषय पर भारत सरकार का प्रारंभ से यही स्टेंड व नीति है और यही देश के हित मे भी है। इस घोषणापत्र के महिनों पहले 4-8 जून 2006 तक टोरंटो के एक वैश्विक मंच पर दिये गये अपने भाषण मे देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई. के. शभरवाल ने भी भारत के संदर्भ मे इसकी विवेचना करते हुए यही निष्कर्ष रखा था।
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विश्व मूल निवासी दशक व वर्ष:
प्रथम अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी दशक 1995-2004 व द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी दशक 2005-14 मनाया गया था। 2022-32 का दशक अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासियों की भाषा रूप में मनाया जाना तय हुआ है। 2005 से प्रति वर्ष 9 अगस्त को विश्व मूलनिवासी दिवस मनाना शुरू हुआ। प्रतिवर्ष एक थीम-विषय तय कर उस विषय पर इस एक वर्ष मे मूल निवासियों के विकास पर विशेष ध्यान देना - यह हेतु होता है। वर्ष 2022 के मूल निवासी वर्ष का विषय है "परम्परागत ज्ञान के संरक्षण व प्रसार मे मूल निवासी महिलाओं की भूमिका"। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि 9 अगस्त वह तारिख है जिस दिन कोलम्बस अमेरिकी तट पर पहुँचा था, और उसी दिन से अमेरिका के रेड इंडियंस-वहां के मूल निवासियों के ग़ुलाम बनने की शुरुआत हो गई थी। इसीलिये न्यूयार्क जैसे बड़े महानगर व कई देश इस 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस नही मनाकर 12 अक्टूबर को मनाते हैं। फिर हम क्यों 9 अगस्त को मनाएँ?
भारत मे मूल निवासी आंदोलन एक वैश्विक षड्यंत्र :
वामसेफ, चर्च व अर्बन नक्सल मिलकर इस आंदोलन को हवा दे रहे हैं। वे मूलनिवासियों में दलित, मुस्लिम व आदिवासियों ऐसे सब को एक मानते हुए - उन्हें संगठित कर अपना कुत्सित एजेंडा पूरा करना चाहते हैं। पहचान की भूख सब को है, अनुसूचित जाति के लोगों के लिये तो बाबा साहेब अम्बेडकर एक आयकोन बन गये - वे उनके नाम से एकत्र हो जाते हैं। पर जनजाति समाज के सम्मुख ऐसा कोई आयकोन नही होने से समाज का पढ़ा लिखा वर्ग भी अपनी पहचान बनाने और जातिगत गौरव की सहज-स्वाभाविक भूख को पूरा करने के लिये कोई अनजाने में तो कोई भ्रमित होकर उनके साथ जुड जाता है। इसी जातिगत पहचान को पूरा करने के चलते, अनजाने मे या राजनीतिक हानि-लाभ का विचार कर हमारे लोग भी उनके साथ लग जाते हैं।
जनजाति गौरव दिवस - 15 नवम्बर
परंतु गत वर्ष भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिन 15 नवम्बर को प्रति वर्ष जनजाति गौरव दिवस के रूप मे मनाने की घोषणा भारत सरकार ने करदी है - प्रधानमंत्री जी की इस ऐतिहासिक पहल से जनजाति समुदायों को अपनी पहचान व स्वाभिमान प्रकट करने का बेहतर विकल्प मिल गया है, एक जनजाति आयकॉन मिल गया है. इसलिये हमे पूरी आन-बान-शान से किसी त्योहार की तरह 15 नवम्बर को जनजाति गौरव दिवस मनाना चाहिये। 9 अगस्त का आयोजन कई मायनों मे, मूल निवासियों पर भारत सरकार के स्टेंड के विरुद्ध चला जाता है और समाज व राष्ट्र विरोधी ताक़तें इसका दुरुपयोग कर रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणापत्र यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं:- https://www.un.org/esa/socdev/unpfii/documents/DRIPS_en.pdf
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