शंघाई सहयोग संगठन के पहले सैन्य चिकित्सा सम्मेलन को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मौजूदा समय में वास्तविक खतरा जैव आतंकवाद है। उन्होंने एससीओ देशों के सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (एएफएमएस) से आग्रह किया कि युद्ध क्षेत्र में सैनिकों के लिए उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के रास्ते तलाशें।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा जैविक आतंकवाद का जिक्र किए जाने के बाद लोगों के मन में इसके बारे में जानने की जिज्ञासा उठी। तो चलिए इसके बारे में हम आपको कुछ तथ्य बताते हैं।
इन्हें हम सामूहिक विनाश के हथियार का एक हिस्सा मान सकते हैं। सामूहिक विनाश के हथियार यानी कि वो हथियार जो पूरे शहर या कहें देश को मिटा दें। इसे हम तीन भागों में बांटते हैं-
आज के समय में जब किन्हीं दो देशों के बीच तनातनी का माहौल होता है तो हम अक्सर उनके द्वारा की जा रही बयानबाजी को सुनते हैं। इन बयानबाजी में अपने-अपने देशों को प्रतिनिधित्व करने वाले लोग तो कई बार ज्यादा गुस्सैल रवैया दिखाकर परमाणु हमले की धमकी तक दे डालते हैं लेकिन उन्हें शायद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी में हुई बमबारी की घटना याद नहीं है। अगर नहीं है तो एक बार जरूर विचार करें कि किस तरह से वहां के लोगों ने प्रलय को देखा है और आज तक उस हमले का दर्द झेल रहे हैं।
अब हम रासायनिक हथियारों की बात कर लेते हैं। यह हथियार मानवनिर्मित रसायन से बनाए जाते हैं। इन्हें उन घातक रसायनों से बनाया जाता है जो मौत का कारण बनते हैं। लेकिन इन हथियारों से किसी ढांचे को नष्ट नहीं किया जा सकता बल्कि इनका इस्तेमाल जीवन को नष्ट करने के लिए किया जाता है। इन्हें आईईडी, मोर्टार, मिसाइल में इस्तेमाल किया जाता है और जब इनका विस्फोट होता है तो जहरीले रसायन हवा में फैल जाते हैं। रसायनिक हथियारों में मस्टर्ड गैस, सरीन, क्लोरीन, हाइड्रोजन साइनाइड और टीयर गैस शामिल हैं।
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अब बात जैविक हथियारों की
आतंकवाद को बढ़ाने के लिए अब उच्च तकनीकि का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसी क्रम में जैव आतंकवाद की अवधारणा सामने आई। इन्हें हम जैविक हथियार के तौर पर भी समझ सकते हैं।
वह हथियार जो मनुष्यों, जानवरों और पौधों और जैविक एजेंटों जैसे बैक्टीरिया, वायरस, रैकेट्सिया, जैविक ऊतक विषाक्त पदार्थों के साथ बीमारियों को मारते हैं। सूक्ष्म जीव विज्ञान, आनुवंशिकी, जैव रसायन आदि में अग्रिम जीवाणु हथियारों को आगे बढ़ाया गया।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जैव आतंकवाद को ‘संक्रामक रोग’ बताया और इस खतरे से निपटने के लिए ताकत बढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया। सिंह ने कहा कि इस खतरे से निपटने के लिए सशस्त्र बलों और इसकी चिकित्सा सेवाओं को आगे रहना होगा।
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राजनाथ सिंह ने युद्ध की वर्तमान चुनौतियां पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि इन चुनौतियों का पता लगाने, मानवीय सहिष्णुता को परिभाषित करने में सशस्त्र बलों की चिकित्सा सेवाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं और इस तरह के वातावरण का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत असर को कम करने की रणनीति सुझा सकती हैं।
उन्होंने कहा, ‘परमाणु, रसायन और जैविक युद्ध का खतरा स्थिति को और विकराल बनाएगा। सशस्त्र बलों के चिकित्साकर्मी इन खतरनाक चुनौतियों से निपटने के लिए संभवत: अद्भुत तरीके से सक्षम हैं।’ जैव आतंकवाद एक तरह का जैव हथियार ही है।
जैव हथियार के इस्तेमाल से तो पूरा का पूरा इलाका काल का ग्रास बन जाता है। बम और मिसाइल के हमले से तो लोग एक बार मरेंगे या बच जाएंगे लेकिन जैव हथियारों से बचना नामुमकिन है। इस हमले का असर आस-पास के एरिया में भी पड़ता है और यह पूरे इलाके को बीमार कर सकता है। इसकी वजह से तो स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भी धीरे-धीरे दम तोड़ देती हैं।
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हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इसमें मौजूद बैक्टीरिया या वायरस हवा, पानी, खाने के साथ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियों का रूप ले लेते हैं।
इनका इस्तेमाल न ही हो तो बेहतर है लेकिन ऐसा कुछ होता है तो फिर क्या होगा। इसीलिए रक्षामंत्री ने इस खतरे से निपटने के लिए ताकत बढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि चिकित्सा सेवाओं को आगे रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ेगी।
इस तरह के हथियार उत्पादन की बात करें तो रूस, अमेरिका, चीन, जापान और फ्रांस ने इन्हें बना ही लिया था लेकिन अब उत्तर कोरिया इस तरह के हथियारों का उत्पादन कर रहा है।