By अनन्या मिश्रा | May 02, 2023
भारतीय फिल्म निर्देशक, लेखक, प्रकाशक, चित्रकार, सुलेखक, संगीत कंपोजर, ग्राफ़िक डिज़ाइनर के तौर पर सत्यजीत रे ने अपनी पहचान बनाई थी। सत्यजीत को 20वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फिल्म निर्देशकों में गिना जाता है। सत्यजीत रे ऐसे भारतीय फिल्मकार हैं, जिन्होंने पश्चिम के भी फिल्म निर्देशकों को प्रभावित किया है। सत्यजीत ने पिक्चर फिल्म, डॉक्यूमेंट्री व लघु फिल्मों समेत 36 फिल्मों का निर्देशन किया था। 36 में से 32 फिल्मों ने राष्ट्रीय पुरुस्कार जीते थे। इसके अलावा सत्यजीत को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के 6 पुरुस्कार मिले थे। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 2 मई को सत्यजीत रे का जन्म हुआ था।
जन्म और शिक्षा
2 मई, 1921 को कोलकाता में सत्यजीत रे का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम सुकुमार राय था। इसके अलावा इनको शॉत्तोजित रॉय के नाम से जाना जाता था। सत्यजीत के पिता का सुकुमार राय था और उनकी मां का नाम सुप्रभा राय था। जब वह 2 साल के थे, तो उनके पिता का निधन हो गया था। इसलिए इनकी मां ने उनका पालन-पोषण अपने भाई के घर पर किया था। सुप्रभा राय एक मंझी हुई गायक थीं। कलकत्ता के बल्लीगुंग गवर्नमेंट हाई स्कूल से शुरूआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से इकनोमिक में बी.ए किया।
सत्यजीत को कला के क्षेत्र में काफी रुचि थी। लेकिन उनकी मां चाहती थीं कि वह रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती यूनिवर्सिटी अपनी पढ़ाई करें। हालांकि सत्यजीत कभी कलकत्ता छोड़कर नहीं जाना चाहते थे। हालांकि मां का मन रखने के लिए सत्यजीत शान्तिनिकेतन गए। जहां पर उनकी कला की काफी प्रशंसा हुई। यहां पर उन्होंने प्रसिद्ध पेंटर नंदलाल बोस और बेनोड़े बहरी मुखर्जी से काफी कुछ सीखा। इसके बाद सत्यजीत रे ने मुखर्जी पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द इनर ऑय’ बनाई।
करियर की शुरूआत
कोलकाता वापस आकर साल 1943 में सत्यजीर रे ने बतौर ग्राफिक्स डिजाइनर अपने करियर की शुरुआत की। बता दें कि उन्होंने जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ जैसी कई फेमस किताबों के कवर को डिजाइन करने का काम किया। सत्यजीत को यहां पर डिजाइन में क्रिएटिविटी करने की पूरी छूट थी। हालांकि उस समय किसी को क्या पता था कि यह डिजाइनर एक दिन बतौर फिल्मकार पूरी दुनिया में भारत का परचम लहराएगा।
इसी दौरान बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास ‘पाथेर पांचाली’ के बाल संस्करण पर भी सत्यजीत ने काम करना शुरू कर दिया। इसका नाम था आम आटिर भेंपू यानी की आम की गुठली की सीटी। इससे वह इतना अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म इसी पर बनाने का फैसला किया।
बेच दिए थे पत्नी के गहने
सत्यजीत रे ने एक नौसिखिया टीम लेकर साल 1952 में फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी। लेकिन नए फिल्मकार पर कोई भी दांव लगाने को तैयार नहीं था। इसलिए सत्यजीत के पास जितने भी पैसे थे, उन्होंने सब इस फिल्म में लगा डाले। फिल्म को लेकर उनके सिर पर इस कदर जुनून सवार था कि इसके लिए उन्होंने पत्नी के गहने तक बेच दिए थे। हालांकि पैसे खत्म होने के बाद शूटिंग को रोकना पड़ा। सत्यजीत ने जिन लोगों से मदद लेने का प्रयास किया, वह फिल्म में अपने हिसाब से कुछ बदलाव चाहते थे। यह बात सत्यजीत को कतई मंजूर नहीं थी। अंत में पश्चिम बंगाल सरकार ने सत्यजीत रे की मदद की। वहीं साल 1955 में उनकी पहली फिल्म 'पाथेर पांचाली' पर्दे पर आई।
खुद चलकर आया था ऑस्कर
ऑस्कर सिने जगत का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड है। सत्यजीत के काम को देखते हुए ऑस्कर उनके पास खुद चलकर आया था। बता दें कि साल 1992 में जब सत्यजीत रे को ऑस्कर देने का ऐलान किया गया तो उस दौरान वह बहुत बीमार चल रहे थे। जिसकी वजह से सत्यजीत अवॉर्ड लेने खुद नहीं जा सकते थे। इसलिए पदाधिकारियों ने फैसला किया कि ऑस्कर को सत्यजीत रे के पास पहुंचाया जाएगा। जिसके बाद ऑस्कर के पदाधिकारियों की टीम सत्यजीत रे के घर कोलकाता पहुंची और वहां पर उन्हें इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
सत्यजीत रे की फिल्में
अभिजान, महानगर, चारुलता, टू: ए फिल्म फेबल, नायक, आगुंतक, शतरंज के खिलाड़ी आदि उनकी बेहतरीन फिल्में हैं। सत्यजीत रे को साल 1958 में ‘पद्मश्री, साल 1965 में ‘पद्मभूषण’ और साल 1976 में ‘पद्म विभूषण’ सम्मानित किया गया था। वहीं साल 1992 में उन्हें भारत रत्न से भी नवाजा गया था।