रोमांस की अलग शैली (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jun 22, 2022

सरकारी नौकरी के आखिरी साल का मज़ा ले रहे पुराने सहपाठी मिले। खुश दिखे, पूछा क्या मिल गया । बोले बहुत साल से लगे थे अब जाकर हमारा डेज़िग्नेशन चेंज हुआ। ‘जूनियर ऑफिसर’ से ‘एसिस्टेंट सब डिविजनल आफिसर’। तनख्वाह में बढोतरी भी हुई क्या, हमने पूछा। तनख्वाह में बढोतरी नहीं हुई तो क्या हुआ, हमें अच्छा लगने लगा है। पत्नी की टौर भी अब बढ़ गई है, लगता है जीवन में रोमांस दोबारा आ गया है। पहले कब आया था हमने मज़ाक में पूछा। जनाब झट से कालेज कम्पांउड में पहुंच गए। बचे हुए चार सौ बीस बालों में उंगलियां घुमा कर बोले रोमांस…… , देखा जाए तो जीवन के लिए बेहद ज़रूरी चीज है। क्यूंकि यह  सच है कि ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा। एकजान हुए सफल प्रेमी भी कहते हैं कि रोमांस के बिना ज़िंदगी कुछ नहीं। जीवन में एक बार यह सुघटना होनी ही चाहिए।


रोमांस रूहानी टाइप हो जाए तो वाहवाह हो जाती है मगर इधर ज्यूंज्यूं तरक्की का परचम ऊंचा हो रहा है रोमांस रूहानी तो क्या, शारीरिक भी दूर, यहां तक कि बातों में भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा। अब पुराने रोमांटिक तरीकों की मौत हो चुकी है। हमने कहा, क्या बात करते हो। वे बोले, वो ज़माना लद गया जब अपने प्रिय को छूने भर के ख़्याल से रोम रोम में रोमांस सिहर उठता था। रोमांस करते करते खुदा से इश्क हो जाता था कई बार। अब रोमांस भी एक प्रोफेशन, गिव एंड टेक, छीन झपट है। अखबारों के पन्ने पढ़वाते हैं कि जो लोग रेप में मशगूल हैं, उनमे से कुछ को तो यह रोमांस का ‘प्रोग्रेसिव’ फार्मेट लगता है लेकिन वास्तव में यह रोमांस के दुश्मनों की हरकतें हैं।

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फिल्मों ने भी तो खूब सिखाया, समझाया हमें। हर तरफ मांस दिख, बिक और चर्चित हो रहा है, रिश्ते ज़ारज़ार विलाप कर रहे हों तो प्यार कौन करेगा और रोमांस की महिमा कौन बखानेगा। अब कोई न पहला रोमांस याद रखता है न पहला धोखा। हां, राजनीति अब गहन रोमांटिक हो गई है, पता ही नहीं चलता कि कौन किसके साथ है किससे कितना प्यार या गहरा रोमांस कर रहा है। धर्म, भाईचारे, प्रेम व अध्यात्म का  करोड़ों का टर्नओवर संभाल रहे प्रोग्रेसिव संत छुपछुप कर शारीरिक रोमांस करते हैं कभी पकड़े भी जाते हैं, फिर मानते नहीं कि शरीर है कि मानता नहीं। प्यार, आकर्षण व शारीरिक आवश्यकताएं भी तो रोटीपानी की तरह ज़रूरी हैं सबको सब कुछ समझाने वाले लोग भी यह छोटी सी बात नहीं समझते। 


अस्तव्यस्त जीवन में वातानुकूलित मॉल या मनपसन्द जगह की गई सैर, ब्रांडिड शॉपिंग व ब्रांडिड ही खाना भी नया अंदाज़ है रोमांस का। यानी किसी अन्य से रोमांस न कर सीधे अपने आप से रोमांस। जेब में माल हो तो डेजिग्नेशन बदलने से जो रोमांस महसूस होता होगा वह काफी तुच्छ है। कैसे भी कमाया ढेर सा पैसा और स्वार्थ पूरा करना ही रोमांस होता जा रहा है अब। व्यवस्था का सच समझते हुए यह सोचने की मनाही है कि पड़ोस में कोई बीमार तो नहीं।

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मित्र बोले, कुछ और नए अंदाज़ भी हो सकते हैं ज़िंदगी के साथ रोमांस के। स्नेह, प्यार, त्याग व रोमांस की पुरानी संस्कृति को पुनः जीवित करने के लिए, विज्ञापन सहित ईमानदार प्रयास किए जाएं। इसके लिए बाकायदा कोचिंग भी दी जा सकती है। एक सलाह और है कि सुबह से शाम तक ईमेल प्राप्त करने वालों की बोर ज़िंदगी में हल्का सा रोमांस भरने के लिए……… छोड़ो रहने दो। मित्र उठकर जाने लगे। हमने कहा अब बता भी दो, बोले ‘ईमेल’ को भविष्य में ‘फीमेल’ कहा जाना चाहिए फिर देखो रोमांस में क्या उठान आता है।


- संतोष उत्सुक

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