विकास और योग के सहारे भारत को विश्वगुरु बनाने की कवायद

By डॉ. दिलीप अग्निहोत्री | Jun 23, 2017

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रहे हैं। एक तरफ वह भारत को पुनः विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। दूसरी तरफ विकास व आधुनिक तकनीक के बल पर देश को महाशक्ति बनाना चाहते हैं। उनकी लखनऊ यात्रा से भी यही बात साबित हुई। एक यात्रा में वह अनेक अवसरों के लिए समय निकालते हैं। बताया जाता है कि वह इस प्रकार का कार्यक्रम बनाने में स्वयं रूचि लेते हैं। लखनऊ यात्रा में मोदी ने अपनी इस परंपरा को कायम रखा। यात्रा का मुख्य आकर्षण विश्व योग दिवस समारोह था। इसके पहले मोदी ने औषधि निर्माण, तकनीक, बिजली, आवास जैसे विकास कार्यों को आगे बढ़ाया। इसके अलावा राष्ट्रपति चुनाव पर भी अनौपचारिक बातचीत हुई। यह स्वाभाविक था क्योंकि इस पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के हैं। पहली बार उत्तर प्रदेश से देश के सर्वोच्च पद पर किसी को अवसर मिलने जा रहा है।

योग प्राचीन काल से भारत की धरोहर है। एक बार फिर विश्व में इसकी अलख जग रही है। यह लगातार दूसरा अवसर है जब अमेरिका स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय योग दिवस की पूर्व संध्या से ही दीवाली की भांति रोशन किया गया है। विश्व के प्रत्येक देश योग का महत्व समझ रहे हैं। इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। इसका श्रेय मोदी को है। तीन वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्होंने इसका प्रस्ताव किया था। न्यूनतम समय में सर्वाधिक देशों के समर्थन का रिकॉर्ड बन गया। विश्व योग के लिए भारत की तरफ देखने लगा। निरोग रहना सबकी चाहत होती है। योग इसमें सहायक है। जब विश्व किसी देश को सकारात्मक विषय पर देखता है तो उस देश की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। भारत की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। योग को अपना कर, जीवन में उतार कर हम विश्व को प्रेरणा दे सकते हैं। भारत जब विश्व गुरु था तब यही था। अन्य देश अपनी समस्याओं के समाधन हेतु भारत की तरफ देखते थे। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ने हमको पुनः यह अवसर दिया है।

 

मोदी इसको अभियान बनाना चाहते हैं। इसके तहत ही उन्होंने लखनऊ को चुना। यह राष्ट्रीय सहमति का विषय होना चाहिए था क्योंकि यह देश के गर्व और प्रतिष्ठता से जुड़ा विषय है। लेकिन कई विपक्ष की पार्टियों का रुख इस पर शर्मनाक रहा है। इस बार भी वह अपनी सीमित सोच से बाहर निकलने को तैयार नहीं हुए। वह इस दिन भी तंज कसते रहे। जबकि 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भाजपा ने नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने घोषित किया है। जो दल इसका विरोध कर रहे हैं उन्हें देश की प्रतिष्ठा का ध्यान नहीं है। कई वर्ष सत्ता में रहे नेता समझा रहे हैं कि योग दिवस की नहीं किसानों की समस्याओं के समाधान की जरूरत है। इन्हें कौन बताये की योग किसी कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं करता। ऐसे नेता योग दिवस नहीं मनाते थे। उनको किसानों की समस्या के समाधान से किसने रोका था। यह समस्या दशकों से चल रही है। योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धरना ध्यान, समाधि तक विस्तार है। यह व्यक्तिगत व समाज जीवन का एक साथ कल्याण करता है। जिन पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप हैं वह बता रहे हैं कि योग की जगह क्या करना चाहिए।

 

फिर भी यह मानना होगा कि योग को लेकर भारत का आम नागरिक अपनी जिम्मेदारी को समझ रहा है। वह विश्व को सन्देश देना चाहता है। सैंकड़ों देशों में योग दिवस समारोह का आयोजन उत्साह पूर्वक किया गया। कुछ लोगों का तंज खुद उन्हें ही हास्यास्पद बना रहा है। योग सामान्य व्यायाम या कसरत नहीं है। यह सम्पूर्ण जीवनशैली को बदल देता है। इससे सकारात्मक विचार बढ़ते हैं। नकारात्मक विचारों से छुटकारा मिलता है। प्राचीन भारत केवल योग की ही शिक्षा नहीं देता था तब वह आर्थिक महाशक्ति भी था।

 

योग शरीर की बीमारी दूर करता है। शासक जब सकारात्मक व लोककल्याण के योग विचार से प्रेरित होता है तब वह राज्य की बीमारी दूर करता है। जैसे शरीर बीमार होता है वैसे राज्य भी शासक की लापरवाही, भ्रष्टाचार से बीमार होता है। मोदी ने कहा भी कि मुख्यमंत्री योगी प्रदेश की बीमारी दूर कर रहे हैं। उन्हें विरासत में बीमारू प्रदेश मिला है। विदेश नीति में भी योग का महत्व है। यह विश्व को सकारात्मक चिंतन से प्रेरित करेगा। यह विश्व को जोड़ने का काम करेगा। अभी तो शुरुआत है। भारत ही नहीं विश्व में योग का माहौल बन रहा है। मोदी की लखनऊ यात्रा विकास और योग के संयोग की भांति थी। यह नीति भारत को सांस्कृतिक व आर्थिक रूप से मजबूत बनायेगी।

 

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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