दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनायी जाने वाली देव दीपावली का शास्त्रों में अत्यंत महत्व है। हर त्यौहार की तरह यह त्यौहार भी देशभर में मनाया जाता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्साह बनारस में देखने को मिलता है। इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्त्व है और माँ गंगा के तटों का नजारा अद्भुत होता है, जिसे देखने के लिए लोग देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। इस दिन मां गंगा की महा आरती और पूजा-अर्चना तो होती ही है लेकिन इसके साथ-साथ घाटों को दीए जलाकर रोशन भी किया जाता है जिन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है मानो आकाश के तारे धरती पर उतर आये हों। हिन्दू धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन सभी देवी-देवता अदृश्य रूप में गंगा नदी के पावन घाटों पर आते हैं और दीपक जलाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं।
सालों से बनारस जाकर देव दीपावली देखने की इच्छा मन में थी लेकिन किसी न किसी कारणवश कभी जाने का मौका नहीं मिल पाया। इस साल जब मुझसे किसी ने जाने के लिए पूछा तो मुझे लगा इस मौके को गंवाना नहीं चाहिए। फिर क्या था जब बनारस जाकर माँ गंगा के घाटों पर इस त्यौहार का अद्भुत नज़ारा देखा तो दिल को सुकून के साथ एक दिव्य अनुभव भी हुआ कि हमारी सांस्कृतिक विरासत कितनी व्यापक और मज़बूत है।
इस दिव्य अनुभव की दिव्यता तब कई गुना और बढ़ गयी जब नाव में बैठकर माँ गंगा के सभी घाटों को देखते हुए इस त्यौहार से जुड़ी पौराणिक कथाएं सुनीं।
त्रिपुर और त्रिपुरारी की कथा
पहली कथा के अनुसार त्रिपुर नामक राक्षस ने एक लाख वर्ष तक तीर्थराज प्रयाग में कठोर तप किया जिस कारण तीनों लोक हिलने लगे और सभी देवतागण भयभीत होने लगे। सभी देवताओं ने मिलकर त्रिपुर की तपस्या भंग करने का निश्चय किया जिसके लिए उन्होंने अप्सराओं को त्रिपुर के पास भेजा लेकिन दुर्भाग्यवश वह अप्सराएं त्रिपुर की तपस्या भंग नहीं कर पायीं। अंत में ब्रह्मा जी को त्रिपुर की तपस्या के आगे विवश होकर उसे मनचाहा वरदान देने के लिए प्रकट होना पड़ा।
त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से यह वरदान माँगा कि वह किसी मनुष्य या देवता के हाथों न मारा जाए। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद त्रिपुर ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं ने एक योजना बनाकर त्रिपुर को भोलेनाथ के साथ युद्ध करने में व्यस्त कर दिया। इस भयंकर युद्ध के दौरान भगवान शंकर ने ब्रह्माजी और विष्णुजी की सहायता प्राप्त कर त्रिपुर का अंत कर दिया। जिसके बाद देवताओं ने अपनी खुशी को ज़ाहिर करने के लिए दीपावली का त्यौहार मनाया जिसे देव दीपावली के नाम से जाना जाने लगा।
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त्रिशंकु और विश्वामित्र की कथा
ऐसी ही एक और कथा के अनुसार कहते हैं कि ऋषि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से रजा त्रिशंकु को स्वर्ग में पहुंचा दिया। देवताओं ने त्रिशंकु के इस आगमन से निराश होकर उसे वापस धरती की ओर रवाना कर दिया लेकिन वहीँ धरती से ऋषि विश्वामित्र ने भी अपनी शक्ति से उसे स्वर्ग के बीच रास्ते में ही रोक दिया। त्रिशंकु आकाश और धरती के अधर में ही लटका रहा। देवताओं के त्रिशंकु को स्वर्ग से हटाने से नाराज़ हो विश्वामित्र जी ने नयी सृष्टि के निर्माण का निर्णय कर लिया जिससे स्वर्ग लोक में कोहराम मच गया और सभी देव ऋषि विश्वामित्र को मनाने में जुट गये। देवताओं के विनय से प्रसन्न होकर विश्वामित्र ने नयी सृष्टि की रचना समाप्त कर दी जिससे खुश होकर सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने सभी लोकों में दीपावली का त्यौहार मनाया।
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भगवान श्री विष्णु की कथा
अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी मनुष्य धूम-धाम से दीपावली का त्यौहार मानाते हैं लेकिन इस समय भगवान श्री विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होते हैं। लेकिन जब देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से क्षीर सागर में जागते हैं तब सभी देवता माँ लक्ष्मी के साथ विष्णु जी की पूजा कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं और दीपावली मानते हैं। जिस कारण देवताओं द्वारा इस पर्व को मनाये जाने की वजह से इसे देव दीपवाली कहते हैं।
इन कथाओं को सुनने के बाद मेरा देव दीपवाली का अनुभव तो और भी अविस्मरणीय हो गया। और शायद इसे पढ़ने के बाद आप भी अगली देव दीपावली बनारस जाकर ही मनाएंगे।
- नेहा मेहता