ना मैं भगवान हूं न मैं शैतान हूं , दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इंसान हूं। थोड़ा सा नेक हूं थोड़ा बेईमान हूं। यह गाना विजय माल्या पर फिट बैठता है।
शराब पीकर खुद को बर्बाद करने वाले तो खूब सुने होंगे, लेकिन दूसरों को शराब पिलाकर खुद ही बर्बाद होने वाले को माल्या कहते हैं। दुनिया को आसमान में उड़ाने का शौक रखने वाला, जमीन पर खुद ही लुढ़का है और ब्रिटेन में केस हारने के बाद उसे भारत आना ही होगा। ऐसे में आज विजय माल्या की कर्ज कथा के पन्नों को पलटने की कोशिश इस रिपोर्ट के जरिए करेंगे और साथ ही कुछ अहम किरदारों को भी जानेंगे जिन्होंने इस पूरे मामले में अहम भूमिका निभाई है। साथ ही माल्या के वतन वापसी की राह में अब और भी कोई बाधा आ सकती है क्या? इसके बारे में भी बताएंगे।
देश को 9 हजार करोड़ की चपत लगाने वाले विजय माल्या पकड़ में अब आने ही वाले हैं। बचने की उनकी मियाद अब लगभग खत्म हो गई है। भारत सरकार ने माल्या को पकड़ने के लिए ऐसा जाल बिछाया कि देर सवेर प्रत्यर्पण से उनको भारत आना ही होगा। भगोड़े कारोबारी विजय माल्या की भारत को सौंपे जाने के खिलाफ याचिका को ब्रिटने के सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अब माल्या के पास ब्रिटेन में लगभग सभी तरह के कानूनी विकल्प खत्म हो गए हैं। माल्या के प्रत्यर्पण से जुड़ी खबर लंदन से उठी और इधर दिल्ली में उसे पकड़ लाने के इरादे परवान चढ़ने लगें। प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही माल्या को लंदन से घसीट लाने की बात करते रहे हैं।
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माल्या की कर्ज कथा
साल 2016 की सबसे चर्चित कर्ज़ और फरारी की दास्तां जिसमें कैसे बैंकों के रहमो-करम पर एक उद्योगपति देश के लोगों की कमाई के 9000 करोड़ लेकर रफूचक्कर हो जाता है और कोई उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता। आज़ादी के बाद से भारत ने सच में बहुत तरक्की कर ली है। अंग्रेज पानी के जहाज से महीनों सफ़र तय करने के बाद भारत की जमीं पर कदम रख सोने की चिड़िया को लूटकर रवाना हुए थे। लेकिन विजय माल्या हवाई जहाज से बिजनेस क्लास के टिकट पर जनता के पैसे डकार कर इंग्लैंड भाग गया था।
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विजय नाम जब कभी भी सुर्ख़ियों में रहता है तो इसकी पहली वजह रहती है कर्ज़ और दूसरी हसीनाओं से घिरे रहना। अपनी अय्याशी के लिए सबसे बदनाम उद्योगपति विजय माल्या जिसे किंग ऑफ़ गुड टाइम जैसे उपनामों से पहचाना जाता था, उस माल्या की पहचान बीते कुछ वर्ष में लुटेरा, भगौड़ा और जनता के 9000 करोड़ रूपए लेकर देश से फरार होने की रही है। लेकिन इन सब आरोपों से बेपरवाह विदेश में ऐशों आराम से जा बैठे मिस्टर माल्या। मिस्टर इसलिए क्योंकि क़र्ज़ तो एक किसान भी लेता है। मामूली सी रकम का कर्ज़ और उसे चुकाने के लिए जी तोड़ मेहनत भी करता है। लेकिन एक आम इन्सान जब किसी बैंक से कर्ज़ लेने की कोशिश करता है तो उसे लोहे के चने चबाने पड़ते हैं। लेकिन विजय माल्या जैसे उद्योगपतियों के सामने यही बैंक नतमस्तक उसे क़र्ज़ देने के लिए हाथ बांधे खड़ी रहती है और माल्या जैसे लोग अरबों-खरबों का कर्ज़ लेकर सारी दुनिया के सामने उसे ऐशो-आराम में उड़ाते हैं। लेकिन कोई उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता। जब हल्ला मचता है तो विजय माल्या का सुराग नहीं मिलता। लोग अंदेशा लगाते हैं कि माल्या देश छोड़ कर लंदन फरार हो गया। फिर माल्या का ट्वीट आता है जिसमें खुद को अंतरराष्ट्रीय कारोबारी बताते हुए बाहर आने जाने की बात कहता है और देश के सांसद होने के नाते कानून की इज्ज़त करने के दावें भी किए जाते हैं।
जिस विजय माल्या को दोनों हाथों से कर्ज़ का दान देश के तमाम बैंक लुटाते रहे उस पर कानूनी शिकंजे की शुरुआत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की तरफ से हुआ। निदेशालय ने विजय माल्या, किंगफिशर के चीफ फाइनेंस ऑफिसर और बैंक के 5 अफसरों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्डरिंग के तहत मामला दर्ज किया। यह माल्या के खिलाफ पहला आपराधिक मामला था। ईडी के मुताबिक किंगफ़िशर ने अरबीआई के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लोन लिए और बैंकों ने कानून को ताक पर रखते हुए किंगफिशर की माली हालत ख़राब होने के बावजूद भी उसे लोन दिया। प्रवर्तन निदेशालय के कार्यवाही की बुनियाद सीबीआई की वो जांच रिपोर्ट भी बनी जिससे यह पता चलता है की कैसे 1 महीने के भीतर 1150 करोड़ का कर्ज़ विजय माल्या की कंपनी के नाम कर दिया गया। 7 अक्टूबर 2009 को चार बैंक अफसरों ने 150 करोड़ का शाॅर्ट टर्म लोन दिया, 4 नवंबर 2009 को 200 करोड़ के लोन की मंजूरी दे दी गयी, 27 नवंबर को ही 700 करोड़ के क़र्ज़ पर भी मुहर लग गयी। माल्या पर क़र्ज़ की बौछार होने की तहकीकात हुई तो सीबीआई का कई चौंकाने वाले सच से सामना हुआ। बैंकों ने किंगफिशर को कर्ज़ तब दिया जब माल्या पहले से ही हजारों करोड़ के कर्ज़ के बोझ तले दबे थे। मल्या पर बैंकों की ऐसी मेहरबानी की बदौलत अय्याशी में रकम उड़ा कर इन बैंकों को बता दिया की चूना कैसे लगाते हैं।
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माल्या की शॉपिंग लिस्ट
माल्या को भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत से पुरस्कार मिले हैं
1) 1997 में दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय ने बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ फिलॉसफी के लिये उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि का सम्मान दिया गया।
2) फ्रांस का सबसे प्रसिद्ध अवार्ड “Officer De La Legion D’Honneur” दिया गया।
3) वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने उन्हें “कल का वैश्विक नेता” बताया।
4) 2010 के द एशियाई अवार्ड्स में उन्हें “साल का सर्वश्रेष्ट उद्योगपति” का सम्मान दिया गया।
विजय के अरबपति पिता विट्ठल माल्या ने बचपन में विजय माल्या को एक-एक पाई का मोल सिखाया था। विजय माल्या स्कूल में पढ़ते थे। पिता ने पॉकेट खर्च के लिए उन्हें कुछ पैसे दिये थे। उन पैसों में से एक नया पैसा विजय ने कहीं खो दिया। इस बात की जानकारी जब उनके पिता को मिली तो उन्होंने अपनी डायरी में इसे खाते की तरह दर्ज कर लिया। विजय माल्या का जन्म 18 दिसंबर 1955 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था था। वे मूलतः कर्नाटक में मंगलौर के बंटवाल शहर से हैं। विजय माल्या की स्कूली पढ़ाई कोलकाता के लॉ मास्टीयने स्कूल से हुई और सेंट जेवियर कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान वो घरेलू बिजनेस में भी हाथ बंटाने लगे। माल्या ने अमेरिका के साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेटशन में पीएचडी की। 1983 में जब पिता विट्ठल माल्या की मौत हुई उस वक्त विजय माल्या 28 साल के थे। विजय सिर्फ 28 साल की उम्र में यूबी ग्रुप के अध्यक्ष बनाए गए। विजय बेहद महत्वाकांक्षी और पिता की तरह ही जिंदादिल थे। कारोबार में रिस्क लेने मामले में वो अपने पिता से भी आगे थे। इसलिए जब युनाइटेड ब्रेवरीज की कमान उन्हें दी गई तो कॉरपोरेट की दुनिया ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। जल्द ही कंपनी का विस्तार करते हुए उन्होंने एक दशक के अंदर 60 से ज्यादा कंपनियां स्थापित कर डालीं।
अभी भी इस अदालत में अपील कर सकता है माल्या
सैद्धांतिक रूप से अगले कदम के तौर पर माल्या अपने प्रत्यर्पण को इस आधार पर रोकने के लिए यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (ईसीएचआर) में आवेदन कर सकता है कि उसे निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिलेगा और उसे हिरासत में लिया जाएगा जो यूरोपियन कन्वेंशन ऑन ह्यूमन राइट्स के अनुच्छेद 3 की शर्तों का उल्लंघन होगा। इस समझौते में ब्रिटेन भी एक पक्ष है। अगर ईसीएचआर में इस तरह का आवेदन किया जाता है तो उसका फैसला आने तक प्रत्यर्पण की प्रक्रिया रुक जाएगी। हालांकि, ईसीएचआर में अपील के बाद भी माल्या के लिए सफलता की बहुत कम गुंजाइश होगी क्योंकि उसे साबित करना होगा कि इन आधारों पर ब्रिटेन की अदालतों में उसकी दलीलें पहले खारिज हो चुकी हैं। बहरहाल, माल्या कब आते हैं ये तो वक्त के साथ पता चल जाएगा लेकिन उसकी आजादी के दिन गिने-चुने रह गए हैं। आज नहीं तो कल माल्या का हिसाब-किताब जरूर होगा।