राजीव गांधी की 5 बड़ी गलतियां, जो कांग्रेस की लड़ाई को आज भी कमजोर करती है!

By अभिनय आकाश | May 20, 2020

अपनी हत्या से कुछ ही पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी ने कहा था कि अगर कोई अमेरिका के राष्ट्रपति को मारना चाहता है तो ये कोई बड़ी बात नहीं होगी बशर्ते हत्यारा ये तय कर ले कि मुझे मारने के बदले वो अपना जीवन देने के लिए तैयार है। "अगर ऐसा हो जाता है तो दुनिया की कोई भी ताक़त मुझे बचा नहीं सकती।" 21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में कुछ ऐसा ही घटित हुआ। तीस बरस की एक छोटे कद की लड़की चंदन का एक हार लेकर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरफ़ बढ़ी। जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए झुकी, एक जोरदार धमाके ने वहां सन्नाटा कर दिया। 21 मई की तारीख यानी राजीव गांधी की पुण्यतिथी का दिन। हमने राजीव गांधी के जीवन से जुड़े दिलचस्प किस्से, उनके कुछ विवादित बयान और राजीव हत्याकांड से जुड़े कुछ प्रसंगों को एकत्रित कर आज का ये विश्लेषण तैयार किया है। जिसके लिए हमने कुछ किताबों का भी सहारा लिया है। 

एक किस्सा सुनाने के लिए आपको इतिहास में ले चलते हैं। फरवरी 1945 की रात थी, जगह इलाहाबाद का नैनी जेल, रात को जेल की वैन रूकती है और उसमें से एक बुजुर्ग नीचे उतरता है जो बापू की आवाज पर पलटता है। सड़क की दूसरी तरफ एक लड़की नजर आती है। उसके हाथ में एक छोटा बच्चा है। ये एक ऐतिहासिक क्षण था। ऐतिहासिक इसलिए कि सड़क के इस पार खड़े व्यक्ति और सड़क की दूसरी तरफ आवाज लगाती युवती और उसके गोद में खेलने वाले नवजात तीनों ने इस देश पर हुकूमत किया है। अब तो आपको अंदाजा लग ही गया होगा कि हम किस परिवार की बात कर रहे हैं। दरअसल, जेल की वैन से उतरते व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि पंडित जवाहर लाल नेहरू, जो भारत छोड़ो आंदोलन के चलते जेल में बंद थे। इंदिरा लगातार नेहरू को खत और तस्वीरे भेज रही थी और नवासे के लिए नाम भी सूझा रही थी। लेकिन नेहरू द्वारा अपने नवासे को देखने का ये पहला मौका था। राजीव का नाम राजीव कैसे पड़ा इसकी एक दिलचस्प कहानी है। कई नामों में से एक नाम का चयन हुआ राजीव, नेहरू की पत्नी जिनका की कुछ वर्षों पूर्व ही देहांत हुआ था उनका नाम था कमला और राजीव का अर्थ भी कमल ही होता है। राजीव के नाम के साथ एक शब्द और भी जुड़ा हुआ था। जिसके बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं पता है। राजीव के नाम के साथ दूसरा जो शब्द जुड़ा था वो था रत्न जिसे नेहरू ने खुद चुना था। रत्न का अर्थ होता है जवाहर, यानी की नाना और नानी के नाम से नाती का नाम बना। 

राजीव गांधी राजनीति में नहीं आना चाहते थे। उन्हें राजनीति पसंद नहीं थी। पढ़ाई करने के बाद पायलट बनकर अपनी ज़िन्दगी जी रहे थे, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें मजबूरन राजनीति में आना पड़ा। संजय गांधी जिंदा होते तो शायद राजीव गांधी राजनीति में नहीं आते। राजीव गांधी ने देश को आधुनिक बनाने और कम्प्यूटर को भारत लाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन राजीव गांधी का नाम कई विवादों से भी जुड़ा। कुछ विवाद तो ऐसे थे जो आज भी कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ते। 

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जब बड़ा पेड़ गिरता है, तो जमीन हिलती है

इंदिरा गांधी की मौत के बाद लोग सिखों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। सबसे ज्यादा कहर दिल्ली पर बरसा। करीब तीन दिन तक दिल्ली की सड़कों औऱ गलियों पर कत्लेआम होता रहा। सिख जान बचाने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। 19 नवंबर 1984, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनका पहला जन्मदिन। दिल्ली में सिख विरोधी दंगों को शुरू हुए पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे और राजीव गांधी ने तमाम रस्मो-रिवाज के साथ इंदिरा गांधी का जन्मदिन मनाने की घोषणा कर दी। यह वो दौर था जब इंडिया गेट के नजदीक बोट क्लब सियासत का केंद्र बिंदु हुआ करता था और इसको आज के रामलीला मैदान या जंतर-मंतर की हैसियत प्राप्त थी। दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी दंगों पर राजीव गांधी ने कुछ खास नहीं बोला। मनोज मित्ता और एचएस फुल्का अपनी किताब 'व्हेन अ ट्री शुक डेल्ही' में लिखते हैं कि, राजीव गांधी ने बोट क्लब की रैली में कहा, 'गुस्से में उठाया गया कोई भी कदम देश के लिए घातक होता है। कई बार गुस्से में हम जाने-अनजाने ऐसे ही लोगों की मदद करते हैं जो देश को बांटना चाहते हैं'। लेकिन इसके बाद उन्होंने जो कहा वो चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध है, कितना ग़ुस्सा है और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है। राजवी गांधी के बयान से यह संदेश गया- 'मानो इन हत्याओं को सही ठहराने की कोशिश की जा रही थी। इस वक्तव्य ने उस समय काफ़ी सनसनी मचाई थी और उसको जायज़ ठहराने में कांग्रेस पार्टी को अभी भी काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है।

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वॉरेन एंडरसन की रिहाई में राजीव का रोल

भोपाल गैसकांड को कौन भूल सकता है।1984 की काली रात जब पूरे शहर पर मौत का हमला हुआ था। जो घरों में सो रहे थे, उनमें से हजारों सोते ही रह गए, कभी न जागने वाली नींद में। भोपाल की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक होने लगी। जिससे देखते ही देखते हजारों लोग इसका शिकार हो गए। महज कुछ घंटों में वहां 3000 लोगों की मौत हो गई। यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन भोपाल गैस कांड के चार दिन बाद 7 दिसंबर को भोपाल पहुंचा था। उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया था। लेकिन उसे सिर्फ 25 हजार रुपए में जमानत मिल गई। उसे यूनियन कार्बइड के भोपाल गेस्ट हाउस में नजरबंद करके रखा गया। लेकिन पूरे सिस्टम ने एंडरसन को भागने में पूरी मदद भी की। उसे रातों रात एक सरकारी विमान से भोपाल से दिल्ली लाया गया। इसके बाद वो दिल्ली मे अमेरिकी राजदूत के घर पहुंचा और बाद में वहां से एक प्राइवेट एयरलाइंस से मुंबई और फिर अमेरिका चला गया। मध्य प्रदेश के पूर्व एविएशन डायरेक्टर आरएस सोढ़ी ने इसे लेकर एक बयान भी दिया था कि उनके पास एक फोन आया था जिसमें भोपाल से दिल्ली के लिए एक सरकारी विमान तैयार रखने के लिए कहा गया था। इसी विमान में बैठकर एंडरसन दिल्ली भाग गया था। तब एंडरसन को विमान में चढ़ाने के लिए भोपाल के एसपी और डीएम आए थे। उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA  के खुफिया दस्तावेजों के मुताबिक एंडरसन की रिहाई के आदेश राजीव गांधी सरकार ने दिए थे।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटना

ये 1986 की बात है। मां इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी राजनीतिक के दांव-पेंच सीख रहे थे। इसी बीच मध्य प्रदेश के इंदौर की शाह बानो का केस चर्चा में आया. शाह बानो के शौहर मशहूर वकील मोहम्मद अहमद खान ने 43 साल साथ रहने के बाद तीन तलाक दे दिया। शाह बानो पांच बच्चें के साथ घर से निकाल दी गईं। शादी के वक्त तय हुई मेहर की रकम तो अहम खान ने लौटा दी, लेकिन शाह बानो हर महीने गुजारा भत्ता चाहती थीं. उनके सामने कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। कोर्ट ने फैसला शाह बानो के पक्ष में सुनाया और अहमद खान को 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता देने का फैसला सुना दिया। शाह बानो की इस पहल ने बाकी मुस्लिम महिलाओं के लिए कोर्ट जाने का रास्ता खोल दिया, जिससे मुस्लिम समाज के पुरुष बेहद नाराज हुए। शाह बानो केस याद होगा जब इसी केस पर राजीव गांधी की सरकार ने अपना प्रोगरेसिव चेहरा दिखाया था। अपने गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को आगे किया था। खान ने अपने विचारों को लोकसभा में खुलकर रखा था। आरिफ मोहम्मद ने मौलाना आजाद के विचारों से अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा था कि कुरान के अनुसार किसी भी हालत में तालकशुदा औरत की उचित व्यवस्था की ही जानी चाहिए। हम दबे हुए लोगों को ऊपर उठाकर ही कह सकेंगे कि हमने इस्लामिक सिद्धांतों का पालन किया है और उनके साथ न्याय किया है। लेकिन कंट्टरपंथियों के दबाव में राजीव गांधी ने अपने कदम सिर्फ वापस ही नहीं खींचे बल्कि धारा की विपरीत दिशा में कदम बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। तब तो धर्म की राजनीति कर के राजीव गांधी ने मुस्लिमों को खुश कर दिया था, लेकिन साल 2019 तक उनकी उस गलती का खामियाजा न सिर्फ मुस्लिम महिलाएं भुगत रही थीं, बल्कि कांग्रेस भी भुगतती रही।

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'एक रुपया देता हूं तो दस पैसा पहुंचता है'

राजीव गांधी ने करीब 30 साल पहले खरगोन में ऐसा बयान दिया था, जो आज भी कांग्रेस के लिए मुसीबतें पैदा करता रहता है। उन्होंने नवग्रह मैदान में 21 मिनट का भाषण दिया था, जिसमें कहा था कि 'दिल्ली से एक रुपया गांव के लिए भेजा जाता है तो गांव तक सिर्फ 10 पैसे ही पहुंचते हैं। 90 पैसे का भ्रष्टाचार हो जाता है। युवा देश का भविष्य है।' इसी से साफ हो जाता है 1989 के दौरान उनकी सरकार में कितना अधिक भ्रष्टाचार था। उन्होंने ये बात कह तो दी थी, लेकिन अब ये बात विरोधी पार्टियों का राजनीतिक हथियार है।

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बोफोर्स दलाली मामले में बेगुनाही के बावजूद शंका बनी रही

24 मार्च 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माण कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपए की डील हुई। इसके तहत भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 हवित्जर तोप सप्लाई की जानी थीं। साल भर बाद ही स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि कंपनी के सौदे के लिए भारत के राजनीतिज्ञों को करीब 60 करोड़ रुपए की घूस दी है। बस तभी से राजीव गांधी सरकार की इस मामले में भूमिका एक बिचौलिए के तौर पर देखी जाने लगी। मामले की जांच भी हुई। 1989 में चुनाव हुए तो बोफोर्स की वजह से कांग्रेस हार गई। इस मामले में इटली के ओत्तावियो क्वात्रोकी का नाम सामने आया था, जिस पर दलाली के जरिए घूस खाने के आरोप लगे। क्वात्रोकी तो उसके बाद विदेश भाग गया, लेकिन देश में रह रही कांग्रेस के माथे पर एक कलंक सा लगा गया। जांच में भी कोई दोषी नहीं पाया गया। नवंबर 2018 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और इस केस की दोबारा जांच की मांग की, तो सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सीबीआई 13 साल की देरी से क्यों आई? 

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नीना गोपाल की किताब

राजीव गांधी आखिरी वक्त क्या सोच रहे थे,  क्या बोल रहे थे, ये वही बता सकता है, जो उस वक्त उनके साथ था। उनके साथ एक पत्रकार थीं। वरिष्ठ पत्रकार नीना गोपाल ने एक किताब लिखी  द असैसिनेशन ऑफ़ राजीव गांधी। नीना गोपाल वो आखिरी पत्रकार थी जो हादसे के ठीक पहले राजीव गांधी के साथ उस एंबेसडर कार में मौजदू थी। जिससे राजीव रैली में पहुंचे थे। उन्होंने इस किताब में राजीव का प्रभाकरन को पर्सनल गिफ्ट का जिक्र किया है। 


जुलाई 1987, पता 10 जनपथ देश के तत्तकालीन प्रधानमंत्री का निवास स्थान। एक बैठक चल रही थी जिसमें मौजूद थे राजवी गांधी, उनके सामने बैठा था लिट्टे का कमांडर प्रभाकरण। प्रभाकरन उस वक्त दिल्ली के अशोका होटल में था। खुफिया निगरानी में उसे राजीव के पास लाया गया।  प्रभाकरन ने कहा श्रीलंका सरकार पर विश्वास नहीं किया जा सकता। राजीव गांधी ने कहा कि वह तमिलों के हित के लिए काम कर रहे हैं। अंतत : प्रभाकरन भारत-श्रीलंका समझौते को एक मौक़ा देने के लिए तैयार हो गए। राजीव गांधी इससे बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने तुरंत प्रभाकरन के लिए खाना मंगवाया. जब वह उनके घर से निकलने लगे तो राजीव ने राहुल गांधी को बुलाया और उनसे अपनी बुलेटप्रूफ़ जैकेट लाने के लिए कहा। उन्होंने वह जैकेट प्रभाकरन को देते हुए मुस्कराते हुए कहा, "आप अपना ख़्य़ाल रखिएगा। ये दोनों के बीच आमने सामने की आखिरी मुलाकात थी। 

प्रधानमंत्री बनने से पहले कर दी थी अपनी मौत की भविष्यवाणी

इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी एलेक्जेंडर ने अपनी किताब ‘माई डेज विद इंदिरा गांधी’ में लिखा है कि ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट के गलियारे में सोनिया और राजीव आपस में किसी बात को लेकर झगड़ रहे थे। राजीव सोनिया को बता रहे थे कि “पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहती है।”

सोनिया का जवाब बिल्कुल अप्रत्याशित था। सोनिया ने राजीव को जवाब दिया कि “नहीं हरगिज नहीं, वो तुम्हें भी मार डालेंगे।” उसके प्रत्युत्तर में राजीव ने कहा कि “मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, मैं वैसे भी मारा जाऊंगा। और इसके कुछ ही घंटों बाद शाम के लगभग 6:45 बजे राजीव गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं। सात साल बाज राजीव गांधी के ये शब्द सच हो गए।

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