उच्चतम न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल की सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण करने में कुछ मोहलत मांगले वाली अन्ना द्रमुक प्रमुख वीके शशिकला की याचिका पर आज सुनवाई से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति पीसी घोष के नेतृत्व वाली एक पीठ ने कहा, ‘‘हम इस पर कोई आदेश नहीं देना चाहते। हम फैसले में कोई बदलाव नहीं करने जा रहे। माफ कीजिये। हमने जो इतना लम्बा आदेश दिया है उसमें सब कुछ पहले ही लिख दिया गया है और उसमें सभी बातें कही गयी है। मैं एक भी शब्द बदलने नहीं जा रहा।’’
शशिकला की ओर से पेश हुये वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने कहा कि शशिकला आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ समय चाहती हैं ताकि वह अपने कामकाज की व्यवस्था कर सकें। उन्होंने आज इस अर्जी पर तत्काल सुनवायी की मांग की थी। पीठ ने याचिका को सूचीबद्ध करने के बजाय वकील से कहा कि वह इस याचिका पर विचार नहीं करेगी। गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय ने मंगलवार को निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुये इस मामले में दोषियों का चार साल की कैद की सजा सुनायी और इसके अलावा शशिकला और दो अन्यों पर दस-दस करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था। निचली अदालत ने इस मामले में दिवंगत जयललिता पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
पीठ ने आज संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा कि दोषी के आत्मसमर्पण के संबंध में दिये गये फैसले में ‘तत्काल’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। न्यायमूर्ति घोष ने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि आप (तुलसी) तत्काल शब्द का अर्थ समझते हैं।’’ 60 वर्षीय शशिकला को निचली अदालत से मिली चार साल की सजा में से करीब साढ़े तीन साल जेल में काटने पड़ेंगे क्योंकि वह पहले ही छह महीने की काट चुकी हैं। उच्चतम न्यायालय ने अपने 570 पन्नों के फैसले में शशिकला को अन्नाद्रमुक सुप्रीमो दिवंगत जे जयललिता के साथ साजिश रचने का दोषी ठहराते हुये तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा पर पानी फेर दिया। साथ ही उसने इस मामले में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
निचली अदालत ने कहा था कि जयललिता और अन्य तीन आरोपियों के पास आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक 53.60 करोड़ रुपये की संपत्ति है। सीबीआई ने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक 66.65 करोड़ रुपये की संपत्ति होने का आरोप लगाया था। शीर्ष न्यायालय ने शशिकला और उनके दो अन्य रिश्तेदार, जयललिता के दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरन और शशिकला के बड़े भाई की विधवा ईलावारसी को बेंगलुरू की निचली अदालत के समक्ष ‘तुरंत आत्मसमर्पण’ करने का आदेश दिया। इस मामले में जयललिता का गत वर्ष पांच दिसंबर को निधन होने के कारण उनके खिलाफ सुनवायी बंद कर दी गयी है।