By अभिनय आकाश | Oct 07, 2023
सुप्रीम कोर्ट से लेकर लोअर कोर्ट तक के वीकली राउंड अप में इस सप्ताह कानूनी खबरों के लिहाज से काफी उथल-पुथल वाला रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार जाति सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। दो महीने की भी है सरकारी नौकरी तो मिलेगा आरक्षण, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कैसे होगा लागू। रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राजस्थान और मध्य प्रदेश को नोटिस भेजा। शराब घोटाला केस में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछे सख्त सवाल। इस हफ्ते यानी 2 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक क्या कुछ हुआ? कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे।
जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रोक से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को राज्य में उसके द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण के आधार पर आगे निर्णय लेने से रोकने की याचिका खारिज कर दी और कहा कि किसी सरकार को नीतिगत निर्णय लेने से रोकना गलत होगा। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि जाति सर्वेक्षण कराने के राज्य के फैसले को बरकरार रखने वाला पटना हाई कोर्ट का फैसला बहुत विस्तृत था और इसे दी गई चुनौती पर विस्तार से सुनवाई होनी चाहिए। जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने राज्य को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देने की जोरदार अपील की, पीठ ने कहा कि ऐसा आदेश पारित करना सही नहीं होगा क्योंकि डेटा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि नीतिगत निर्णय डेटा के आधार पर लिए जाते हैं। पीठ ने कहा कि हम राज्य सरकार को नहीं रोक सकते। सरकार को नीतिगत फैसले लेने से रोकना गलत होगा।
कॉन्ट्रैक्ट नौकरियों में मिलेगा SC/ST/OBC आरक्षण
सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट नौकरियों में भी आरक्षण मिलेगा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये जानकारी दी। सरकारी अनुबंध नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण के कार्यान्वयन की कमी के बारे में चिंता जताते हुए एक जनहित याचिका में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि सभी मंत्रालयों और विभागों को पहले ही आदेश पारित कर दिया गया है। सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि ऐसे उम्मीदवारों को नीति के अनुसार अस्थायी नियुक्तियों में आरक्षण दिया जाएगा जो न्यूनतम 45 दिनों की होंगी।
फ्री बिज पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकारों को उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें राजनीतिक दलों को करदाताओं के खर्च पर नकदी और अन्य मुफ्त चीजें बांटने से रोकने के लिए व्यापक दिशानिर्देश देने की मांग की गई है। कोर्ट ने उनसे चार हफ्ते में जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका पर केंद्र, चुनाव आयोग (ईसी) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को नोटिस भी जारी किया, जिसमें यह भी आरोप लगाया गया कि करदाताओं का पैसा मतदाताओं को लुभाने के लिए मध्य प्रदेश (भाजपा शासित) और राजस्थान (कांग्रेस शासित) सरकारों द्वारा इसका दुरुपयोग किया गया।
सबूत कहां हैं, 2 मिनट में सुलझ जाएगा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने शराब घोटाला केस में जांच एजेंसी ईडी से कई सख्त सवाल पूछे। मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिव संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की बेंच ने मामले को 12 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या किसी नीतिगत निर्णय को प्रस्तुत तरीके से कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने तर्क दिया कि नीति जानबूझकर विशिष्ट व्यक्तियों के पक्ष में तैयार की गई थी और सबूत के तौर पर व्हाट्सएप संदेशों को प्रस्तुत किया गया था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन संदेशों की स्वीकार्यता पर आपत्ति व्यक्त की। पूरी कार्यवाही के दौरान सुप्रीम कोर्ट जांच एजेंसियों से कड़े सवाल पूछने से नहीं हिचकिचाया। क्या आपने उन्हें (विजय नायर, मनीष सिसौदिया को रिश्वत पर) इस पर चर्चा करते देखा है? पीठ ने कहा कि क्या यह स्वीकार्य होगा? क्या (अनुमोदनकर्ता द्वारा) बयान अफवाह नहीं है? यह एक अनुमान है लेकिन इसे साक्ष्य पर आधारित होना चाहिए। जिरह में, यह दो मिनट में विफल हो जाएगा।
वर्दी की ताकत के गलत इस्तेमाल पर कोर्ट सख्त
दिल्ली हाईकोर्ट ने बेवजह एक शख्स को आधे घंटे तक लॉकअप में रखने के एवज में 50 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि संदेश साफ जाना चाहिए कि पुलिस अधिकारी खुद कानून नहीं बन सकते। 50 हजार की रकम पुलिस वालों की सैलरी से वसूली जाएगी। मामला दिल्ली के बदरपुर इलाके का है। 5 अक्टूबर को हाई कोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की सिंगल जज की बेंच ने मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट इस बात से परेशान है कि याचिचाकर्ता को गिरफ्तार ही नहीं किया गया। उसे बस मौके से उठाया, पुलिस स्टेशन लाया गया और बिना वजह लॉकअप में रखा गया। पुलिस अधिकारियों ने जिस मनमानी से काम किया है उसने एक नागरिक के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों को तार तार कर दिया।