K. R. Narayanan Birth Anniversary: देश के पहले दलित राष्ट्रपति ने लिया था गांधी जी का इंटरव्यू, जानिए केआर नारायणन से जुड़ी रोचक बातें

By अनन्या मिश्रा | Oct 27, 2023

के.आर. नारायणन की सफलता की कहानी कई लोगों को प्रेरित करने का काम करती है। हांलाकि किसी दलित का राष्ट्रपति बनना कोई नई बात नहीं है। लेकिन यह सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की एक कहानी कहती है। के.आर. नारायणन उस दौरान राष्ट्रपति चुने गए, जिस दौरान दलितों के उत्थान के लिए कार्य अपने चरम पर थे। दलित वर्ग के उत्थान के लिए मंडल आयोग जैसी समितियों ने रास्ते खोल दिए थे। लेकिन के.आर. नारायणन ने जो सफर तय किया उसमें उनकी मेहनत छिपी हुई है। जिसे कभी नकारा नहीं जा सकता है। आज ही के दिन यानी की 27 अक्टूबर को के.आर. नारायणन का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर के.आर. नारायणन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

स्वतंत्र भारत के अब तक के दसवें और पहले दलित राष्ट्रपति के.आर नारायणन का जन्म केरल के एक छोटे से गांव पेरुमथॉनम उझावूर, त्रावणकोर में 27 अक्तूबर 1920 को हुआ था। इनका पूरा नाम कोच्चेरील रामन नारायणन था। यह चार भाई-बहन थे। नारायणन का परिवार बेहद तंगहाली और गरीबी से जीवन जीता था। लेकिन उनके पिता शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझते थे। इसलिए उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई को जारी रखा। के.आर नारायणन ने अपनी शुरूआती शिक्षा अवर प्राथमिक विद्यालय से शुरू की। वह 15 किमी पैदल चलकर स्कूल जाते थे। 


आर्थिक तंगी के कारण अक्सर नारायणन का परिवार फीस नहीं जमा कर पाता था, जिसके कारण उन्हें अक्सर कक्षा के बाहर खड़े रहना पड़ता था। किताबें ना खरीद पाने पर वह अन्य छात्रों की किताबों से काम चलाते थे। फिर साल 1936-37 में नारायणन ने सेंट मेरी हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद कोट्टायम के सी. एम. एस. स्कूल से 12वीं की परीक्षा पास की। फिर उन्होंने कला में ग्रेजुएशन पूरा किया। साथ ही साल 1943 में त्रावणकोर विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन प्रथम श्रेणी में पास किया। उस दौरान त्रावणकोर विश्वविद्यालय मेंनारायणन से पहले किसी भी दलित छात्र प्रथम स्थान नहीं प्राप्त किया था।


के.आर. नारायणन का व्यक्तित्व

नारायणन एक गंभीर स्वभाव वाले व्यक्ति थे। बचपन से गरीबी देखने के कारण इन्होंने परेशानियों से निपटना सीख लिया था। वहीं आर्थिक समस्याओं से जूझने के कारण उनके अंदर धैर्य और संयम के भाव भी कूट-कूटकर भरे थे। वह कुशल राजनेता होने के साथ ही एक अच्छे धर्मशास्त्री भी थे।


राजनैतिक सफर

एक ओर जहां नारायणन का परिवार परेशानियों का सामना कर रहा था। तो वहीं आर्थिक मदद के लिए नारायणन ने साल 1944-45 में 'द हिन्दू और 'द टाइम्स ऑफ इण्डिया' में बतौर पत्रकार काम करना शुरू कर दिया। जिसके बाद साल 1945 में इन्होंने महात्मा गांधी का इंटरव्यू लिया। फिर इसी साल वह इंग्लैंड चले गए, जहां पर इन्होंने 'लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स' में राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की। उन्होंने बी.एस.सी इकोनामिक्स की डिग्री और राजनीति विज्ञान में विशिष्टता हासिल की। नारायणन की मेहनत और लगन को देखते हुए जे. आर.डी. टाटा ने उन्हें स्कॉलरशिप प्रदान की। इस दौरान वह इण्डिया लीग में भी सक्रिय रहे। 

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बता दें कि नारायणन का राजनीति में प्रवेश इन्दिरा गांधी के कारण संभव हो पाया। उन्होंने लगातार तीन लोकसभा चुनाव में ओट्टापलल सीट पर जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचे। कांग्रेसी सांसद बनने के बाद नारायणन राजीव गांधी सरकार के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में भी शामिल किए गए। वहीं साल 1989-91 में कांग्रेस सत्ता से बाहर थी तो नारायणन ने विपक्षी सांसद की भूमिका निभाई। लेकिन साल 1991 में कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर इनको कैबिनेट में जगह नहीं दी गई। 21 अगस्त, 1992 को डॉ. शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपतित्व काल में श्री नारायणन उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। जिसके बाद जनता पार्टी संसदीय नेतृत्व और वाम मोर्चे ने भी नारायणन को अपना उम्मीदवार बनाया। 


नारायणन ने वाम मोर्चे के बारे में स्पष्टीकरण दिया कि वह कभी भी साम्यवाद के कट्टर समर्थक या विरोधी नहीं रहे। उपराष्ट्रपति चुनाव और बाद में राष्ट्रपति चुनाव में वाम मोर्चा ने नारायणन को समर्थन दिया। जिसके बाद 1997 में अपने प्रतिद्वंदी टी.एन.शेषण को हराते हुए नारायणन ने राष्ट्रपति पद प्राप्त किया। इसस पहले कोई भी दलित राष्ट्रपति नहीं बना था। 

निधन

निमोनिया बीमारी की वजह से के. आर. नारायणन के गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया था। वहीं 9 नवम्बर, 2005 को उनका निधन हो गया। बता दें कि एक अच्छे राजनेता और राष्ट्रपति के अलावा के नारायणन एक अच्छे इंसान भी थे।

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