उपभोक्ता संरक्षण कानून तो सख्त बन गया पर लोग अधिकारों को लेकर जागरूक ही नहीं हैं

By डॉ. अजय खेमरिया | Aug 18, 2020

20 जुलाई से लागू हो चुके नए उपभोक्ता सरंक्षण कानून के साथ ही भारत में दावा किया जा रहा है कि उपभोक्ताओं के साथ ठगी और धोखाधड़ी खत्म हो जायेगी। बेशक 1986 के पूर्व प्रचलित कानून की तुलना में नया कानून व्यापक और समावेशी धरातल पर बनाया गया है और सरकार की प्रतिबद्धता नागरिकों के उपभोक्ता अधिकारों को ईमानदारी से सरंक्षण देनें की प्रतीत होती है। भारत में अन्य विकसित देशों की तुलना में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता का अत्यधिक अभाव है और लोग अंतिम रूप से अपने कानूनी हकों के लिए लड़ने से परहेज करते हैं। 2024 में हमारी आबादी चीन से ज्यादा होने जा रही है और जिस तेजी से भारत में मध्यवर्ग का उदय हो रहा है उसके अनुपात में लोग उपभोक्ता सरंक्षण कानून के प्रावधानों का उपयोग नहीं करते हैं।


लोकसभा के पिछले सत्र में पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी के सवाल के जवाब में सरकार ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार 2017 में 1 लाख 70 हजार 68, 2018 में 1 लाख 59 हजार 849 एवं 2019 में 1 लाख 74 हजार 748 मामले देश भर में उपभोक्ता सरंक्षण कानून के तहत दर्ज किए गए है। यानि तीन वर्षों में कुल 5 लाख 22 हजार 638 मामले ही दर्ज हुए। यह आंकड़ा भारत के बड़े उपभोक्ता बाजार की तुलना में बहुत ही नाकाफी है। इनमें से भी फिलहाल राष्ट्रीय आयोग में 21151, देश के सभी 35 स्टेट कंज्यूमर फोरमों में 125961 एवं जिला उपभोक्ता फोरमों में 3 लाख 45 हजार 770 प्रकरण लंबित पड़े हुए हैं। जाहिर है पहली स्टेज पर तो भारत में नागरिक उपभोक्ता कानून का प्रयोग करने में ही हिचकते हैं दूसरा उपभोक्ता अदालतें भी पिछले 34 सालों में लोगों को न्याय दिलाने में एक तरह से नाकाम ही रहीं हैं। आंकड़ों के आलोक में समझा जा सकता है कि नया कानून उपबन्धों के लिहाज से भले ही कठोर और समयबद्ध न्याय को प्रावधित करता हो लेकिन बुनियादी समस्या लोगों में अपने इस अधिकार को आम प्रचलन में लाने की है।

इसे भी पढ़ें: जागो नागरिक जागोः लागू हो गया नया उपभोक्ता कानून, जानिये अपने नये अधिकार

केंद्र सरकार विभिन्न मीडिया प्लेटफार्म पर "जागो ग्राहक जागो" जैसे जागरूकता अभियान चलाती है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि लोगों तक इस अभियान की कोई खास प्रभावोत्पादकता नहीं है। असल में त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र और वाद के लिए स्थानीय परिक्षेत्र (ज्यूरिडिक्शन) के चलते भी लोग धोखाधड़ी और ठगी के मामले में शिकायत से परहेज करते हैं। दूसरा सामान्य दीवानी मामलों की तरह केस लंबित रहने से भी यह कानून दुरूह बनकर रह गया था। राज्यों में जिला फ़ोरम के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्तियों में भी सरकारों की हीलाहवाली के चलते यह निकाय कारगर साबित नहीं हुए हैं। नया कानून इस मामले में चुप है क्योंकि जिला और स्टेट फ़ोरम की नियुक्तियां राज्य सरकारों को ही करनी है जो अक्सर राजनीतिक हित लाभ के चलते लटकी रहती है। इन जिला फोरमों में दो सदस्य सामाजिक क्षेत्रों से लिये जाते हैं। अधिकतर राज्यों में फ़ोरम के पद रिक्त रहते हैं। रेगुलर जजों के पास दो से तीन जिलों का चार्ज रहता है। ऐसे में जिला स्तर पर ही मामले वर्षों तक चलते रहते हैं। इस मामले में सबसे बुरी हालत उत्तर प्रदेश की है जहाँ स्टेट फ़ोरम में 25692 और विभिन्न जिलों में 84852 केस लंबित हैं। महाराष्ट्र में यह आंकड़ा क्रमशः 18408 एवं 40117 है। दोनों राज्यों के सम्मिलित केस देश भर के कुल मामलों के एक चौथाई से अधिक हैं। लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार राजस्थान के जिलों में 32228, मप्र में 22720, बिहार में 15314 और दिल्ली में करीब 25 हजार केस लंबित हैं। देश मे 35 स्टेट फ़ोरम बेंच एवं 675 जिला फ़ोरम अभी कार्यरत हैं। पश्चिम बंगाल, गुजरात, केरल, ओडिशा, कर्नाटक, हरियाणा जैसे राज्यों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। खास बात यह है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में तो शिकायत का आंकड़ा भी नगण्य है। मसलन अरुणाचल के स्टेट फोरम में केवल 09, मणिपुर में 06, मेघालय में 15 मामलों की जानकारी सामने आई है।


सवाल यह है कि ये आंकड़े क्या भारत के विस्तृत और विशाल उपभोक्ताओं के साथ संख्यात्मक रूप से न्यायसंगत हैं? तब जबकि भारत में 100 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं और लगभग हर तीसरा उपभोक्ता कॉल ड्राप की सेवा त्रुटि का शिकार होता है। इस बड़े उपभोक्ता वर्ग में से आधा फीसदी भी इस सेवा न्यूनता की शिकायत नहीं करते हैं। असल में भारत आने वाले वक्त में दुनिया का सबसे प्रमुख उपभोक्ता केंद्र होगा। नए प्लेटफार्म ई-कॉमर्स के मामले में सबसे बड़ी चुनौती उपभोक्ताओं के अधिकारों के नजरिये से ही है, क्योंकि अभी भी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर ठगी और धोखाधड़ी आम आदमी के साथ हो रही है। नये कानून में सरकार ने ई-कॉमर्स कारोबार को महीन तरीके से नियमित और नियंत्रित करने की कोशिशें की हैं। कैशबैक, एक्सक्लुसिव सेल, ब्रांड लांचिंग जैसी विशेष सेवाओं को अब जारी रखना कठिन हो गया है। बड़े-बड़े ऑफर्स से ग्राहकों को लुभाने पर भी प्रतिबंध नए कानून में है। अब ई-कॉमर्स के कारोबार में सेवा या उत्पाद न्यूनता की शिकायत ऑनलाइन कहीं से भी की जा सकेगी इसके लिए फोरमों के सेवा, उत्पादन के ज्यूरिडिक्शन को खत्म कर दिया गया है। इनके अलावा समय सीमा में निपटान को प्राथमिकता दी गई है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण को भी व्यापक रूप से समावेशी बनाया गया है। झूठे प्रचार, विज्ञापन के मामलों में दस से पचास लाख तक के जुर्माने और सिविल जेल के प्रावधान सराहनीय हैं।

इसे भी पढ़ें: उपभोक्ताओं को ताकतवर बनाएगा नया कानून, सरकार ने दिये हैं आपको यह नये अधिकार

भारत में नया कानून बहुत ही सख्त बनाया गया है इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन अंततः सवाल इसके अनुप्रयोग को समावेशी बनाने का है,क्योंकि 2008 के बाद से हमारा उपभोक्ता बाजार 13 फीसदी की तेज दर से बढ़ रहा है। बढ़ती आबादी, तेज शहरीकरण और उपभोक्तावाद के चलते सेवा क्षेत्र ने बहुत तेजी से पैर पसारे हैं। विश्व आर्थिक मंच के मुताबिक 2030 तक भारत चीन एवं अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा बड़ा बाजार होगा। फ़िलहाल भारत का बाजार 105 लाख करोड़ वार्षिक है और 2030 में यह 450 लाख करोड़ अनुमानित है। इस अवधि में 14 करोड़ लोग नए मध्य वर्ग में होंगे और दो करोड़ लोग मध्य से उच्च आय वर्ग में उन्नत होंगे। इन लोगों के बारे में अनुमान है कि खाने पीने, कपड़े, पर्सनल केयर, स्मार्ट फोन्स, गैजेट, ट्रांसपोर्ट, हाउसिंग पर इस वर्ग का खर्चा दो से ढाई गुना तक बढ़ेगा। वहीं स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन पर खर्चा तीन से चार गुना बढ़ने की संभावना है।


डेलोप इंडिया और रिटेल एशोसिएशन ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत में ई-कॉमर्स बाजार अगले साल 2021 तक 84 अरब डॉलर का हो जाएगा जो 2017 में केवल 24 अरब डॉलर था। यानी ई-कॉमर्स 32 फीसदी की तेज गति से बढ़ रहा है। मौजूदा उपभोक्ता समूह में 30 करोड़ भारतीयों को मध्यम वर्ग और 17 करोड़ को उच्च मध्यम वर्ग श्रेणी में नेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर अलाइड इकोनॉमिक्स रिसर्च में चिन्हित किया गया है। अगले एक दशक में इस वर्ग में 16 करोड़ की बढ़ोतरी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के नागरिक चरित्र में उपभोक्तावाद किस तीव्रता के साथ बढ़ रहा है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार को सख्त कानून संस्थित करने के बाद अब सर्वोपरि प्राथमिकता कानून के प्रति जनमानस में चेतना और अनुप्रयोग की स्थापना होनी चाहिए। बेहतर होगा इसके लिए जनभागीदारी आधारित विकल्पों पर विचार किया जाए। इस क्षेत्र में बेहतर काम करने वाले स्टेकहोल्डर्स को प्रतिष्ठित किया जाए। केवल सरकारी तंत्र के भरोसे जागरूकता का कठिन काम संभव नहीं है इसलिए स्वयंसेवी संस्थाओं को अन्य सरकारी योजनाओं की तरह इस कानून से जोड़ा जा सकता है। सेवा क्षेत्र की व्यापक चुनौती को समझते हुए बैंकिंग, स्किल डेवलपमेंट, आउटसोर्सिंग, टेलीकॉम, जैसे बुनियादी क्षेत्रों में जनजागरण बेहद अनिवार्य है।


-डॉ. अजय खेमरिया

प्रमुख खबरें

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा

भारत ने किया पाकिस्तान को चारों खाने चित, क्रिकेट के बाद अब इस खेल में भी नहीं होगा दोनों का मुकाबला