By कमलेश पांडे | Apr 04, 2025
भारतीय संसद के लोकसभा और राज्यसभा में दो दिवसीय उन्मुक्त चर्चा के बाद वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 का पारित होना एक ऐसी महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है, जिसके दूरगामी सियासी परिणामों से इंकार नहीं किया जा सकता है। देखा जाए तो इसके कई राजनीतिक मायने निकलकर सामने आ रहे हैं, जिससे भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (अब इंडिया गठबंधन) के बीच आम चुनाव 2029 में सीधी लड़ाई होगी।
राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि वक्फ सम्बन्धी नए कानून से एक ओर जहां पसमांदा यानी गरीब व कमजोर वर्ग के मुसलमानों को काफी फायदा मिलेगा, जिससे इंडिया गठबंधन के अल्पसंख्यक मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव स्वाभाविक है, वहीं दूसरी ओर वक्फ बोर्ड में व्याप्त वैधानिक अराजकता को नए संशोधन कानून द्वारा समाप्त किये जाने से हिंदुओं में यह आश्वस्ति भाव पनपेगी कि अब उनकी संपत्ति वक्फ बोर्ड के दांवपेचों से पूरी तरह से महफूज रहेगी। इससे राजग को मजबूती मिलना स्वाभाविक है।
वहीं, 2029 के आम चुनाव से पूर्व होने वाले विभिन्न विधानसभा चुनावों से यह स्पष्ट हो जाएगा कि राजग (एनडीए) के मुकाबले संप्रग (यूपीए) टिका रह पाएगा कि नहीं, क्योंकि 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जहां पर एनडीए और यूपीए (अब इंडिया गठबंधन) के बीच सीधा मुकाबला है। हिंदी पट्टी में भाजपा व उसके सहयोगियों के निरंतर मजबूत होते जाने की असली वजह कांग्रेस व उसके सहयोगियों की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति है, जिससे हिन्दू जनमानस आहत होता आया है। वहीं, जातिवाद व क्षेत्रवाद की आड़ में हिंदुओं को कमजोर रखने की जो इनकी साजिश है, उसे भी लोग अब समझने लगे हैं।
यही वजह है कि बिहार समेत पूरे देश में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामूहिक जनहितैषी फैसलों से उनकी लोकप्रियता बढ़ी है, वहीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद व पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मुस्लिमपरस्ती, जूठे जातीय प्रेम और अदूरदर्शिता भरे सियासी फैसलों से इनकी छवि धूमिल हुई है। बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम और उसपर मिले जनादेश इसी बात की तो चुगली करते हैं।
मजेदार बात तो यह है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 की आड़ में कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन के द्वारा अल्पसंख्यकों को भड़काने की जो योजना बनाई गई थी, उन्मुक्त संसदीय बहस से उसपर पानी फिर गया है। इस बहस के बाद पसमांदा यानी गरीब मुसलमान जहां एनडीए के पक्ष में आ गए हैं, वहीं पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान व अरब देशों की भाषा बोलने वाले अमीर मुसलमान अब अपनी ही कौम में अलग-थलग पड़ जाएंगे। क्योंकि मोदी सरकार की सबका साथ, सबका विकास वाली रणनीति से सबसे ज्यादा फायदा हिन्दू व मुस्लिम समुदाय के गरीबों को ही मिला है, जो अब एनडीए के मजबूत वोट बैंक बन चुके हैं।
वहीं, राम मंदिर निर्माण, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति और तीन तलाक जैसे कानूनों के उन्मूलन से अमीर मुसलमान ही भड़क रहे हैं और गरीब मुसलमानों को धर्म के नाम पर भड़का रहे हैं, जिसे गरीब मुसलमान अब समझने लगे हैं। इसलिए कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन के मुस्लिम वोट बैंक का दरकना अब तय हो गया है, जिसका असर आपको बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ही दिखने लगेगा। अभी जदयू के मुस्लिम नेताओं में नीतीश कुमार के ताजा फैसले से जो रोष है, वह भी जल्द ही समाप्त हो जाएगा। क्योंकि भाजपा जो भी मुस्लिम सम्बन्धी फैसले ले रही है, वह संघ समर्थित राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की हरी झंडी के बाद ही, जो पसमांदा मुसलमानों में गहरी पैठ रखती है। मोदी ईदी उपहार अबतक का सबसे बड़ा हृदय परिवर्तन अभियान समझा गया।
वहीं, 2026 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और 2027 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन दोनों महत्वपूर्ण राज्य विधानसभा चुनावों के समय अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में भी चुनाव होंगे, जहां दोनों गठबंधनों की कड़ी परीक्षा होगी। इसके बाद वर्ष 2028 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में भी विधान सभा चुनाव होंगे, जो यह स्पष्ट कर देंगे कि अल्पसंख्यक एनडीए के साथ में हैं या उसके विरोध में इंडिया गठबंधन के साथ। क्योंकि इंडिया गठबंधन की आपसी सिरफुटौव्वल ही इसकी सबसे बड़ी बाधा थी, है और रहेगी।
यह वजह है कि पूरे देश में पिछले तीन संसदीय आमचुनावों से जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन निरंतर मजबूत होता जा रहा है और एक के बाद दूसरे राज्य में भी चुनाव जीतते जा रहा है, वहीं इंडिया गठबंधन की इंजन पार्टी कांग्रेस को आम चुनाव 2024 में थोड़ी सी सियासी ऑक्सीजन क्या मिल गई, वह विभिन्न राज्यों में अपने गठबंधन सहयोगियों को ही कुचलने लगी। यदि वक्फ संशोधन विधेयक 2025 मुसलमानों से जुड़ा मामला नहीं होता तो इंडिया गठबंधन की ताजा एकजुटता भी दिखाई नहीं पड़ती।
वहीं, राष्ट्रहित में और राष्ट्रवादी मुद्दों पर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने जो ताजातरीन अपनी सार्थकता सिद्ध कर दी है, वह उसके और अधिक मजबूत होने का ताजा सबूत है। क्योंकि वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पर जदयू, टीडीपी, लोजपा आर और राष्ट्रीय लोकदल का समर्थन पाना एक युगान्तकारी घटना है। इनके नेताओं ने संसद में विधेयक के समर्थन में जो शानदार दलीलें दी हैं, उससे पसमांदा मुसलमानों में भी भाजपा के प्रति नया प्यार उमड़ेगा, जो समकालीन राष्ट्रीय जरूरत भी है।
अब यह साफ हो चुका है कि राष्ट्रवादी और जनवादी कानून बनाने में एनडीए का कोई सानी नहीं है। यही गठबंधन कांग्रेस कालीन और जनता पार्टी, जनता दल और संयुक्त मोर्चा कालीन सियासी पापों को प्रक्षालित करने का माद्दा रखता है। एनडीए ने जिस तरह से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति को अप्रासंगिक बना दिया है और हिंदुओं में जातीय विभाजन की गति पर ब्रेक लगाई है, उस राष्ट्रहित में उसका बड़ा योगदान है। भाजपा की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि अल्पमत में होने के बावजूद उसने अपने कोर सियासी एजेंडे पर अपने सहयोगियों का विश्वास हासिल करके एक नया राजनीतिक कीर्तिमान स्थापित कर दिया है।
गौरतलब है कि राज्यसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 पर चर्चा का जवाब देते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने दो टूक कहा कि "वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय है और इसे धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए। फिर भी हमने इसमें गैर-मुस्लिमों की संख्या सीमित कर दी है। वक्फ विधेयक से मुसलमानों को हम नहीं डरा रहे बल्कि विपक्षी पार्टियां डरा रही हैं।" रिजीजू ने साफ कहा कि वक्फ बिल मुस्लिमों के अधिकार नहीं छीनेगा। यही वजह है कि लोकसभा के बाद राज्यसभा ने भी इसे मंजूरी दी। बिल के पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 वोट पड़े, जिससे इंडिया गठबंधन के अरमानों पर पानी फिर गया। क्योंकि राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद जल्द ही यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा। शायद यही वजह है कि लोकसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यसभा में विपक्ष का हौसला पस्त दिखा। वैसे इस विधेयक पर विपक्ष की ओर से कई संशोधन पेश किए गए, जिसे सदन ने खारिज कर दिया।
दरअसल, सदन में विपक्ष पर निशाना साधते हुए रिजिजू ने दो टूक लहजे में पूछा कि मुसलमानों में यदि गरीबी ज्यादा है, तो उन्हें गरीब किसने बनाया? आपने बनाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो सबका साथ, सबका विकास की बात की है, वही तो संविधान की भावना है। वक्फ बोर्ड असंवैधानिक नहीं है। यह ठीक है कि राज्यसभा में विधेयक को लेकर भारी हंगामा और विपक्ष के कड़े विरोध की उम्मीद थी, लेकिन लोकसभा में विधेयक पारित होने और सरकार की ओर से विधेयक को मुस्लिमों के हित में होने को लेकर जिस तरह के तर्क दिए गए, उससे शायद विपक्ष के हौसले थोड़े पस्त थे। यही वजह थी कि सदन में विधेयक पेश होने के दौरान विपक्ष ने किसी तरह की टोकाटाकी या शोरशराबे से भी परहेज किया। अलबत्ता विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष की अधिकांश सीटें खाली दिखीं।
इतना ही नहीं, विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष की अधिकांश सीटें खाली दिखीं, जबकि सत्ता पक्ष की सीटें खचाखच भरी हुई थीं। इस दौरान लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी सरकार की ओर से गृह मंत्री अमित शाह मोर्चा संभाले दिखे। चर्चा के दौरान उन्होंने कई बार खड़े होकर न सिर्फ हस्तक्षेप किया, बल्कि विपक्ष को आईना भी दिखाया। ट्रिब्यूनल पर बोल रहे कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन को उन्होंने बीच में टोका और कहा कि अब तक ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती थी। नए विधेयक में हम इसे लेकर आए हैं।
वहीं, भाजपा अध्यक्ष और सदन के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिक बना दिया था। मिस्त्र, सूडान, बांग्लादेश और सीरिया जैसे मुस्लिम देशों में कई साल पहले तत्काल तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक दशक तक सत्ता में रहने के दौरान मुस्लिम महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया। इससे पहले राज्यसभा में विधेयक पेश करते हुए रिजीजू ने विपक्ष के उन आरोपों को खारिज कर दिया कि मुस्लिमों के अधिकार छीने जा रहे हैं।
ततपश्चात, रिजिजू ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कानून का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाना और सभी मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना है। यह विधेयक मुस्लिमों के खिलाफ बिल्कुल नहीं है, बल्कि उनका उत्थान करने वाला है। रिजीजू ने जहां विधेयक की खूबियां गिनाईं, वहीं विपक्ष की ओर से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का भी जवाब दिया। उन्होंने साफ साफ कहा कि यह विधेयक गरीब व पिछड़े मुस्लिमों और उनके परिवारों के विकास का रास्ता खोलने वाला है। इसलिए इसका नाम उम्मीद रखा गया है। उन्होंने उम्मीद (यूनीफाइड वक्फ मैनेजमेंट इम्पावरमेंट, इफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट) का पूरा नाम भी पढ़कर बताया। उन्होंने यहां तक कहा कि वैसे भी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को विकसित बनाने की बात करते हैं, तो उससे मुस्लिम अलग नहीं हैं।
निष्कर्षतः रिजीजू ने वक्फ बोर्डों पर मनमाने व्यवहार का आरोप लगाया और कहा कि दिल्ली के भीतर मौजूद शहरी विकास मंत्रालय व दिल्ली विकास प्राधिकरण की 123 संपत्तियों पर वक्फ अपना दावा कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कल वक्फ संसद भवन पर भी दावा पेश कर दे। उन्होंने केरल और तमिलनाडु के कुछ और उदाहरण भी गिनाए। इससे साफ है कि भाजपा नीत एनडीए इस मुद्दे पर व्यापक तैयारी करके सदन में पहुंचा था, लेकिन गरीब मुसलमानों के बीच कोई गलत संदेश नहीं जाए, इसलिए लोकसभा में 'कुत्ते मानिंद भौंक' रहे विपक्ष ने राज्यसभा में अपनी दुम दबाकर निकल भागने में ही अपनी भलाई समझी।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक