गोवा और मणिपुर में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद वहां कांग्रेस की सरकारें क्यों नहीं बन रही हैं? इसका कारण यह तो है ही कि वहां भाजपा के राज्यपाल हैं और सीमांत प्रांतों के नेता केंद्र सरकार के साथ जाना ज्यादा पसंद करते हैं। ये कारण हैं जरूर, लेकिन सबसे बड़ा कारण है, कांग्रेस की नेतृत्वविहीनता! दोनों राज्यों के कांग्रेसी विधायकों ने अपनी सरकार बनाने का दावा पेश किया, उसके पहले ही भाजपा विधायकों ने अपना झंडा गाड़ दिया। कैसे गाड़ दिया? क्यों गाड़ दिया? इसलिए गाड़ दिया कि उनका केंद्रीय नेतृत्व जागरूक था, चतुर था, मुस्तैद था। दोनों राज्यपाल जो चाहते थे, वही हो गया।
मृदुला सिन्हा और नजमा हेपतुल्लाह के मत्थे दोष मढ़ना अब निरर्थक है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कांग्रेसियों की लापरवाही को रेखांकित किया है। इसी तरह पंजाब की विजय का सेहरा भी अमरिंदर सिंह के माथे पर बंधा है। इन पांच प्रांतों के चुनाव ने सिद्ध कर दिया है कि कांग्रेस की नाव बिना मल्लाह के तैर रही है। वह चल नहीं रही है, बस तैर रही है।
यदि यह नाव डूब गई तो भारतीय लोकतंत्र का बड़ा दुर्भाग्य होगा। मोदी-पार्टी बिल्कुल निरंकुश हो जाएगी। भाजपा और संघ के नेता भी घर बैठ जाएंगे। कोई अखिल भारतीय पार्टी ऐसी नहीं रह जाएगी कि जो मोदी पार्टी पर लगभग लगाम लगा सके। जो प्रांतीय नेता इसे टक्कर दे पाएंगे, वे भी धीरे-धीरे निस्तेज होते चले जाएंगे। सरकार को मर्यादा में रखने वाली संसद और अदालत भी उसकी चेरी बन जाएंगी। खबरपालिका का कोई खास दीन-ईमान यों भी नहीं होता। फिर भी अभी जो कुछ बुलंद आवाजें हैं, उन्हें बंद करने की भरपूर कोशिश की जाएगी। जैसा कि ढाई साल पहले आडवाणीजी ने कहा था, एक अघोषित आपातकाल के बादल फिर आएंगे।
तो क्या किया जाए? सबसे पहले तो सभी विपक्षी दलों का संयुक्त मोर्चा बने। दूसरा, वर्तमान राजनीतिक दलों की तरह वह मोर्चा सिर्फ नोट और वोट कबाड़ने की मशीन न बने। जन-जागरण और आंदोलन उसके मुख्य कार्य हों। तीसरा, कांग्रेस को सोनियाजी और राहुलजी अब बख्श दें। राहुलजी अपना जीवन बर्बाद न करें। अपना घर आबाद करें। कांग्रेस में एक से एक बड़े नेता हैं। राहुल ने उन सबको अपने से भी छोटा कर दिया है। यदि उनको मौका मिले तो वे कांग्रेस की इस डूबती नाव को बचा सकते हैं। भारतीय लोकतंत्र की सुरक्षा इस नाव के चलते रहने में ही है।
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक