हिजाब विवाद पर जहर उगल कर माहौल खराब कर रही है कांग्रेस

By राकेश सैन | Feb 14, 2022

पंजाब में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार चरम पर है और मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी दलों द्वारा हर तरह के अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग किया जा रहा है। यहां तक कि अभिमन्यू वध की तर्ज पर हर प्रकार की मर्यादाएं तोड़ी जा रही हैं। ऐसा करते समय इससे भी गुरेज नहीं किया जा रहा कि भविष्य में समाज पर क्या असर हो सकता है। दो-अढ़ाई दशकों तक आतंकवाद का सेक झेल चुके देश के सीमांत राज्य में कांग्रेस ने ऐसा पासा फेंका है जिससे सामाजिक विभाजन की आशंका पैदा हो सकती है। देश में चल रहे हिजाब विवाद पर बोलते हुए कांग्रेस की प्रचार समिति के अध्यक्ष व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष चौधरी सुनील कुमार जाखड़ ने कहा है कि इस विवाद के माध्यम से सिखों की पगड़ी याने दस्तार पर खतरा मण्डराने लगा है। उन्होंने कहा कि हिन्दूवादी आज हिजाब पर सवाल उठा रहे हैं तो कल दस्तार को लेकर ऐसा करेंगे। वे यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने अकाल तख्त साहिब व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति को भी उकसाया है कि वे इस मुद्दे पर खुल कर सामने आएं। जाखड़ का यह बयान या तो अज्ञानता की उपज है या केसधारी समाज को भ्रमित करने का प्रयास। लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर विपक्ष को जवाब देते हुए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की ओर से पंजाब में आतंकवाद व 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर उठाए गए सवालों पर यह राज्य में चुनावी मुद्दे बन कर सामने आने लगे हैं और हो सकता है कि इसीके चलते चौ. जाखड़ ने समाज के दो वर्गों के बीच सन्देह पैदा करने का प्रयास किया हो। परन्तु शायद कांग्रेस नेता यह नहीं जानते कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं जबकि दस्तार सिख धर्म का अभिन्न अंग है। दोनों की परस्पर तुलना नहीं हो सकती।

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जाने-माने इस्लामिक विचारक व केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने स्पष्ट किया है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं। कुरान शरीफ में हिजाब का सात बार जिक्र है, लेकिन महिलाओं के ड्रेस कोड के सम्बन्ध में नहीं। यह ‘पर्दा’ के सम्बन्ध में है, जिसका अर्थ यह है कि जब आप बोलते हैं तो आपके बीच में पर्दा होना चाहिए। उन्होंने एक उद्धरण दिया कि एक युवा लड़की जो हजरत मोहम्मद पैगम्बर साहिब की सुपत्नी की भतीजी थीं, वह लौकिक रूप से सुन्दर थीं। उसने कहा कि ‘मैं चाहती हूं कि लोग मेरी सुन्दरता में अल्लाह की कृपा देखें और ईश्वर का शुक्रगुजार रहें।’ विजडम फाउण्डेशन की महानिदेशक प्रो. जीनत शौकत अली ने टाइम्स ऑफ इण्डिया में हिजाब व इस्लाम को अलग करते हुए लिखा है कि घूण्घट..पर्दा इसकी उत्पत्ति इस्लाम के साथ नहीं हुई। मेसोपोटामिया ग्रीक और फारसी साम्राज्यों में कुलीन महिलाओं ने सम्मान और अपनी उच्च स्थिति के संकेत के रूप में घूण्घट को अपनाया। मेसोपोटामिया की सभ्यता में विस्तार से बताया गया कि किन महिलाओं को घूण्घट करना चाहिए और किन को नहीं। इसलिए, इस्लाम के आगमन से बहुत पहले यह पर्दा प्रभाव में आया। बुर्का, अबाया, नकाब आदि शब्द कुरान से अपरिचित हैं। साथ ही, कुरान में हिजाब शब्द कपड़ों के बराबर नहीं है। इस शब्द के कई रूपक आयाम हैं, जिनमें से कोई भी महिलाओं के कपड़ों से सम्बन्धित नहीं। इस्लामिक देश कोसोवो, अजरबैजान, ट्यूनीशिया और तुर्की में पर्दा उठाया जा चुका है। सीरिया और मिस्र ने क्रमश: जुलाई 2010 और 2015 से विश्वविद्यालयों में नकाब लगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इण्डोनेशिया, मलेशिया, मोरक्को, ब्रूनी, मालदीव और सोमालिया जैसे कट्टर इस्लामिक देशों में भी हिजाब अनिवार्य नहीं है।


इसका सीधा अर्थ है कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं और इसकी सिख धर्म के अनिवार्य अंग दस्तार से तुलना नहीं हो सकती। दस्तार एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है दस्त-ए-यार या भगवान के हाथ। सिख धर्म में दस्तार विश्वास की प्रतीक है जो समानता, सम्मान, साहस, आध्यात्मिकता और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करती है। नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी को मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा शहीद किए जाने के बाद गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना की जिसमें सिखों को पांच ककार अर्थात कच्छा, केस, कड़ा, कंगा, किरपान धारण करने को कहा। इनमें से केसों की रक्षा करने को दस्तारबन्दी की जाने लगी। इससे पहले भी नौ गुरुओं ने दस्तार धारण की। दस्तार सिख धर्म का अभिन्न अंग है और इसीलिए इसकी बे-अदबी (अपमान) करने पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 295-ए के तहत धार्मिक भावनाओं का अपमान करने के आरोप में दण्ड दिया जाता है, जबकि बुर्के या हिजाब को लेकर देश के संविधान निर्माताओं ने ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की। इससे न केवल पन्थिक बल्कि संवैधानिक दृष्टि से भी स्पष्ट हो जाता है कि सिख धर्म से सम्बन्धित दस्तार और हिजाब को एक तुला में नहीं तोला जा सकता।

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पंजाब का इतिहास साक्षी है कि जब-जब कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिए पन्थिक मुद्दों का सहारा लिया तब-तब राज्य हिंसा की आग में झुलसा। कांग्रेस पर आरोप लगते रहे हैं कि पिछले साठ और सत्तर के दशक में उसने राज्य में अकालियों की शक्ति को कम करने के लिए आतंकवाद को प्रोत्साहन दिया, जिसका खामियाजा न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश को खालिस्तानी आतंकवाद व अलगाववाद के रूप में भुगतना पड़ा। दो-अढ़ाई दशकों तक चले आतंक के दौर ने 35 हजार से अधिक निर्दोषों की नरबलि ले ली और प्रदेश विकास की दौड़ में पिछड़ा वो अलग। अपनी एतिहासिक गलती से सबक सीखने की बजाय आधी सदी बाद कांग्रेस फिर उसी राह पर चलती नजर आ रही है जो न केवल पंजाब बल्कि देश और खुद कांग्रेस के लिए भी खतरनाक है। मतों के लालच में देश की एकता-अखण्डता और साम्प्रदायिक सौहार्द से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।


- राकेश सैन

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