By नीरज कुमार दुबे | Feb 14, 2023
सरकार की खिलाफत करना विपक्ष का काम होता है लेकिन यह खिलाफत लोकतांत्रिक मर्यादाओं के भीतर रहकर ही की जानी चाहिए। बात जरा देश की मुख्य विपक्षी और भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की करते हैं। भारत को सर्वाधिक प्रधानमंत्री देने वाली कांग्रेस पार्टी का इतिहास देखेंगे तो पाएंगे कि जब भी गांधी परिवार के पास प्रधानमंत्री का पद रहा तब तक तो कांग्रेस के लोग इस पद पर बैठे व्यक्ति का सम्मान करते रहे लेकिन यदि गांधी परिवार से बाहर किसी व्यक्ति के पास पद रहा तो उसके प्रति असम्मान प्रकट किया जाता रहा। नरसिंह राव कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे लेकिन उनकी कैबिनेट के अधिकांश मंत्रियों की निष्ठा 'दस जनपथ' के प्रति थी। यही नहीं, त्याग का दिखावा करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद सौंपा तो गया लेकिन क्या वह फैसले लेने के लिए स्वतंत्र थे, यह सवाल उनके पूरे कार्यकाल में बना रहा। उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी पुस्तक में जो खुलासे किये वह दर्शाते हैं कि सरकार दस जनपथ से ही चल रही थी। यही नहीं, प्रधानमंत्री के रूप में जब मनमोहन सिंह आधिकारिक विदेश यात्रा पर थे तब राहुल गांधी ने उनकी सरकार का आर्डिनेंस सरेआम फाड़ दिया था। समय बदला....कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिनी और भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी तो यह कांग्रेस को कैसे स्वीकार हो सकता था।
नरेंद्र मोदी को चाय वाला कह कर उनका मजाक उड़ाने वाली कांग्रेस ने उनकी छवि पर हमले करने के प्रयास जो पहले दिन से शुरू किये थे वह आज तक जारी हैं। फर्क सिर्फ इतना आया है कि पहले कांग्रेस के नेता अपने बयानों के जरिये नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाते थे या उन पर हमला करते थे लेकिन इससे नुकसान होता देख उन्होंने अपनी रणनीति बदली और इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जाने लगा। आप कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडलों को देखिये लगातार कार्टूनों के जरिये या अन्य तरीकों से प्रधानमंत्री के खिलाफ अमर्यादित बातें कही जा रही हैं। शायद कांग्रेस का सोशल मीडिया विभाग और उसके प्रमुख राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाह रहे हैं ताकि इस माह छत्तीसगढ़ में होने वाले कांग्रेस के महा अधिवेशन के बाद जब पार्टी में पदों का बंटवारा हो तो सोशल मीडिया चलाने वालों को भी ज्यादा से ज्यादा लाभ हो। कांग्रेस के सोशल मीडिया मंचों पर आप निगाह डालेंगे तो यहां मल्लिकार्जुन खडगे, राहुल गांधी या कांग्रेस की राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों के एकाध फोटो ही दिखेंगे। हर चैनल और हर समाचार-पत्र में मोदी की ही फोटो क्यों छाई रहती है, यह सवाल उठाने वाली कांग्रेस के सोशल मीडिया मंचों पर भी मोदी की तस्वीरों की ही बहार देखने को मिलती है।
यही नहीं, कांग्रेस ने सोशल मीडिया मंचों पर अपनी एक बड़ी फौज भी खड़ी की है जो मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में जुटी हुई है। सोशल मीडिया पर कांग्रेसी फौज के सिपाही हर घंटे सरकार के खिलाफ नकारात्मक बातें पोस्ट कर रहे होते हैं या फिर सरकार के किसी फैसले पर सवाल उठा रहे होते हैं। यह पूछते हैं कि मोदी सरकार को किस पैमाने पर आप कितने अंक देंगे? यह पूछते हैं कि प्रधानमंत्री पद पर कोई दलित या मुस्लिम क्यों नहीं होना चाहिए? यह भ्रम फैलाते हुए पूछते हैं कि नौकरियां खत्म कर रही मोदी सरकार के साथ आप चुनावों में क्या करेंगे? यह लोग ढूँढ़-ढूँढ़ कर पुराने वीडियो की संपादिक क्लिपें पोस्ट करते हैं ताकि लोग भ्रमित हों और सरकार की खिलाफत करें। इसके अलावा कांग्रेस के कई बुजुर्ग और युवा नेताओं के टि्वटर हैंडल तो लगता है कि कांग्रेस का आईटी और डिजिटल सेल ही चलाता है क्योंकि जिस तरह एक समय पर एक जैसे हमले सरकार पर किये जाते हैं वह दर्शाते हैं कि कोई टूलकिट बनाकर ही कांग्रेस अपनी सोशल मीडिया रणनीति को आगे बढ़ा रही है।
बहरहाल, आप यह सब जो ट्वीटस देख रहे हैं उससे एक बात तो साफ जाहिर हो रही है कि कांग्रेस ने अच्छे ग्राफिक डिजाइनर, अच्छे वीडियो एडिटर आदि बड़ी संख्या में रखे हैं लेकिन कांग्रेस को पता होना चाहिए कि बढ़िया कार्टून, फोटो या वीडियो देखकर ही जनता वोट नहीं देती। जनता अब जागरूक हो चुकी है वह नेता की नीति, नीयत और उसका रिपोर्ट कार्ड देखकर वोट देने लगी है। कांग्रेस को समझना होगा कि सोशल मीडिया किसी के लिए भी जनता के बीच किसी मुद्दे पर एक हद तक राय बनाने में मददगार साबित हो सकता है लेकिन सिर्फ सोशल मीडिया के जरिये क्रांति लाने का सपना देखना गलत है। कांग्रेस को यह भी समझना होगा कि उसे असली लड़ाई सोशल मीडिया पर नहीं चुनाव मैदान में लड़नी है। फिलहाल तीन राज्यों- त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में चुनाव प्रक्रिया चल रही है और अब तक कांग्रेस के बड़े नेता इन राज्यों में नजर नहीं आये हैं।
-नीरज कुमार दुबे