राहुल कह रहे हैं इंच इंच की लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन पार्टी नेता फीट फीट गड्ढा खोद रहे

By नीरज कुमार दुबे | Jun 07, 2019

लोकसभा चुनावों के परिणाम आये हुए लगभग दो सप्ताह हो चले हैं लेकिन विपक्ष में मची आपसी खींचतान कम होने का नाम नहीं ले रही है। 2019 के जनादेश ने पहले कांग्रेस के अरमानों पर बुरी तरह पानी फेर दिया तो अब कांग्रेस के अपने लोग पार्टी को खत्म करने में लगे हुए हैं। विभिन्न राज्यों से जिस तरह पार्टी में उठापटक की खबरें आ रही हैं वह निश्चित रूप से कांग्रेस आलाकमान के लिए बेचैन कर देने वाली हैं। मुश्किल समय में पार्टी को जिस तरह अपने ही लोग झटका दे रहे हैं उसने देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का भविष्य खतरे में डाल दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि उनकी पार्टी के 52 सांसद इंच इंच की लड़ाई लड़ेंगे लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी की चुनावी संभावनाओं को फीट-फीट गड्ढा खोद कर दफन करने में लगे हुए हैं।

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राज्य दर राज्य देखते जाइये, कांग्रेस में मची खलबली सामने आती चली जायेगी। तेलंगाना में पार्टी के 18 विधायकों में से दो-तिहाई यानि 12 विधायकों ने राज्य में सत्तारुढ़ टीआरएस में अपने समूह के विलय का स्पीकर से अनुरोध किया जोकि स्वीकार कर लिया गया है। कांग्रेस ने इसे दिन दहाड़े लोकतंत्र की हत्या करार देते हुए कहा है कि यह देश के लिए स्वस्थ परिपाटी नहीं है और यह जनादेश की हत्या है जिसके लिए तेलंगाना की जनता कभी माफ नहीं करेगी। खबर है कि तेलंगाना में कांग्रेस के एक और विधायक टीआरएस में जा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर पंजाब में भले कांग्रेस की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार हो लेकिन वहां नेतृत्व को लगातार चुनौती मिल रही है। राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच चल रही खींचातानी और सार्वजनिक रूप से हो रही बयानबाजी ने पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के भीतर असंतोष के स्वर उभरे हैं, यही नहीं गुजरात कांग्रेस में भी बेचैनी दिखायी दे रही है।

 

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पंजाब की बात करें तो नवजोत सिंह सिद्धू कैबिनेट की बैठक से दूर रहते हुए कह रहे हैं कि ‘‘उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता।’’ दरअसल सिद्धू हालिया लोकसभा चुनाव में पंजाब के शहरी इलाकों में कांग्रेस के ‘‘खराब प्रदर्शन’’ को लेकर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की नाराजगी का सामना कर रहे हैं। यही कारण रहा कि मुख्यमंत्री ने उनका विभाग बदल दिया। हरियाणा को देखें तो वहां विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने का समय बचा है, ऐसे में कांग्रेस के अंदर जिस तरह की उठापटक है वह पार्टी के भविष्य के लिए नुकसानदेह साबित होगी। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रति निष्ठा रखने वाले कुछ विधायकों ने लोकसभा चुनाव में प्रदेश में पार्टी के खराब प्रदर्शन को लेकर प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को निशाने पर लिया है, जिस पर तंवर ने गुस्से में कहा, ‘‘अगर आप मुझे खत्म करना चाहते हैं तो मुझे गोली मार दीजिए।’’ दरअसल पार्टी के हरियाणा प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने नयी दिल्ली में एक बैठक बुलाई थी। उस बैठक में मौजूद पार्टी के एक नेता ने दावा किया कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के करीबी विधायकों ने अशोक तंवर को निशाना बनाया।

 

यही नहीं कांग्रेस की राजस्थान इकाई में भी असंतोष के स्वर सुनने को मिल रहे हैं, जहां लोकसभा आम चुनाव में पार्टी को मिली करारी शिकस्त के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कथित तौर पर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है। इस बयानबाजी पर पार्टी आलाकमान ने नाराजगी जताई है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बोलने वाले विधायक को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे ने पार्टी के लोगों को अनावश्यक बयानबाजी से बचने की सख्त हिदायत दी है।

 

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कांग्रेस में आपसी मनमुटाव की खबरें मध्य प्रदेश से भी आ रही हैं, जहां सत्तारुढ़ कांग्रेस अपने विधायकों को एकजुट रखने और सत्ता में बने रहने के लिए मशक्कत करती नजर आ रही है। राज्य में कांग्रेस नीत सरकार को बसपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। उधर, गुजरात कांग्रेस में भी बेचैनी बढ़ रही है। दरअसल, राज्य में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी के कुछ विधायक जल्द ही भाजपा का दामन थाम सकते हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के विधायक पद से इस्तीफे के बाद से महाराष्ट्र कांग्रेस के अंदर भी अनबन की खबरें आ रही हैं। ऐसी अटकलें हैं कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा हाल ही में कर्नाटक में सत्तारुढ़ कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार के कुछ विधायकों के भाजपा से हाथ मिलाने की खबरें आने के बाद सरकार की स्थिरता के लिए गठबंधन को परेशानी का सामना करना पड़ा। 

 

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मतभेद और आरोप-प्रत्यारोप ने सिर्फ कांग्रेस के भीतर घमासान मचाया हो, ऐसा नहीं है। लोकसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के सदमे से अन्य विपक्षी पार्टियां भी अभी तक उबर नहीं पायी हैं। इसके चलते विपक्षी गठबंधन में जहां टूट के संकेत मिल रहे हैं वहीं अधिकतर पार्टियों में आपसी मतभेद और इस्तीफों का दौर देखने को मिल रहा है। अधिकतर गैर-राजग दलों के अंदर गहमागहमी बढ़ती जा रही है क्योंकि नेता एवं कार्यकर्ता अशांत और तनावग्रस्त नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का ‘महागठबंधन’ भारत के सबसे बड़े राज्य में भाजपा के प्रभुत्व का पहला शिकार बना। बसपा प्रमुख मायावती ने गठबंधन तोड़ते हुए हार के लिये ‘‘निष्प्रभावी’’ सपा पर आरोप लगाया। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने वस्तुत: स्वीकार किया कि ‘‘प्रयोग’’ असफल रहा। 

 

कर्नाटक में जनता दल (एस) भी इस तपिश को महसूस कर रहा है क्योंकि कांग्रेस और जनता दल (एस) के दावों के बावजूद प्रदेश प्रमुख ए.एच. विश्वनाथ सत्तारुढ़ गठबंधन में संकट का हवाला देकर पार्टी छोड़ दी है। वहां गठबंधन में फूट उभर रही है और कई नेता कर्नाटक में भाजपा के पाले में जाने को तैयार हैं। ये घटनाक्रम दर्शाता है कि एक साल पुरानी एच.डी. कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं जबकि सत्तारुढ़ दल कैबिनेट विस्तार और मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करके सरकार को बचाने की कोशिशों में लगा हुआ है।

 

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पश्चिम बंगाल में भी लोकसभा चुनाव के नतीजे उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के दो विधायकों सहित पार्टी के कई नेता भाजपा के साथ हाथ मिलाने वाले हैं। पूर्वी राज्य में 18 सीटें जीतकर आक्रामक भाजपा दावा कर रही है कि ममता बनर्जी की पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल होने को तैयार हैं। हाल ही में तृणमूल कांग्रेस के 50 से ज्यादा पार्षद भी भाजपा में शामिल हो गये थे। भाजपा का दावा है कि तृणमूल कांग्रेस के कई विधायक उसके संपर्क में हैं और ममता बनर्जी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायेगी।

 

बहरहाल, मोदी सुनामी से विपक्षी दलों के जो तंबू उखड़े हैं उन्हें विपक्ष कितनी जल्दी समेट पाता है यह देखने वाली बात होगी। चूँकि इस वर्ष चार महत्वपूर्ण राज्यों- महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में विपक्ष का जल्दी ही संभलना होगा।

 

-नीरज कुमार दुबे

 

 

 

 

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