By अंकित सिंह | Jan 04, 2022
पंजाब हमारे देश का शान है। पंजाब की ऐतिहासिक कहानियां हम सभी को प्रेरित करती हैं। लेकिन राजनीतिक लिहाज से देखें तो पंजाब एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने वाला है जहां तय होगा कि अगले 5 साल के लिए यहां की कमान जनता किसको सौंपती है। पंजाब की राजनीति वैसे तो दिलचस्प है। लेकिन साल 2022 में देखें तो कहीं ना कहीं पंजाब की किस्मत नई तरह से लिखी जा सकती है। पंजाब हमेशा से देश के विकसित राज्यों में एक रहा है, यहां के किसान काफी संपन्न माने जाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था में इस राज्य का योगदान भी महत्वपूर्ण है। चुनावी मायने में यहां कांग्रेस के साथ-साथ अकाली दल, आम आदमी पार्टी, भाजपा, बहुजन समाज पार्टी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस इस बार मैदान में होंगी। इसके साथ ही कुछ क्षेत्रीय दल भी हैं जो इस बार के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे। आज हम आपको अपने इस आलेख में यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वर्तमान में देखें तो पंजाब में कौन किस पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर इस बार के चुनाव में किसका सिक्का यहां चलने वाला है।
इन नेताओं पर दारोमदार
अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस के लिए सत्ता वापसी करना बेहद चुनौती भरा है। इसके साथ ही कांग्रेस को अपना किला भी बचाना है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान के अलावा पंजाब में कांग्रेस अपने दम पर सरकार में है। ऐसे में उसके लिए यहां चुनाव जीतना इस बार बेहद महत्वपूर्ण है। पूरा का पूरा दारोमदार पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर है। पार्टी को सत्ता में वापसी करनी है तो अंतर्कलह को किनारे कर खुद को मजबूती के साथ जनता के सामने उतारना होगा अन्यथा नुकसान के बहुत बड़े संकेत निकल कर सामने आ रहे हैं।
दिल्ली से निकलकर दूसरे राज्यों में सत्ता की आस संजोए आम आदमी पार्टी के लिए भी पंजाब बेहद महत्वपूर्ण है। भगवंत मान और राघव चड्ढा के सहारे आम आदमी पार्टी यहां सत्ता में आने की कोशिश में जुटी हुई है। अकाली दल पूरी तरीके से बादल परिवार पर निर्भर है। प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर बादल के अलावा हरसिमरत कौर बादल भी पंजाब चुनाव में पूरा का पूरा दमखम झोंकने की कोशिश में हैं। एक बार फिर से अकाली दल हर हाल में सत्ता में आना चाहती है।
हाल में ही कांग्रेस से नाराज होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब के दिग्गज नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई है। भले ही पार्टी नई है लेकिन अमरिंदर सिंह दमदार नेता हैं। ऐसे में भले ही इस पार्टी को फायदा हो या ना हो लेकिन अमरिंदर सिंह कांग्रेस को बड़ा नुकसान जरूर दे सकते हैं। अमरिंदर सिंह इस चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर उतरने जा रहे हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि भाजपा अमरिंदर के सहारे ही अब पंजाब में खुद को मजबूत करने की कोशिश में है। उसके कुछ नेता भी लगातार पंजाब में अपनी सक्रियता दिखा रहे हैं।
किसानों का नया दांव
पंजाब की किस्मत इस बार किसान भी तय करेंगे। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग 1 साल से ज्यादा समय तक अगर दिल्ली के अलग-अलग के बॉर्डर पर किसान आंदोलन चलता रहा तो उसमें पंजाब के किसानों का अहम योगदान रहा। वह पंजाब के किसान ही थे जो केंद्र के इस कानून के खिलाफ लगातार हल्ला बोल करते रहे और मुखर होकर अपनी बात को बताते रहे। हालांकि यहां के किसानों की नाराजगी स्थानीय सरकार से भी रही। अब आंदोलन तो खत्म हो चुका है लेकिन कुछ किसान संगठन चुनावी मैदान में उतरने का प्रयास कर रहे हैं। तो वहीं इनमें से कुछ संगठन आम आदमी के पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिश में भी हैं। ऐसे में कहीं ना कहीं इस चुनाव में किसान फैक्टर भी बड़ा साबित हो सकता है।
चुनावी मुद्दे
पंजाब में किसानों का मुद्दा सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। सभी पार्टियां किसानों के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरती है और उनसे इसके समाधान का वादा भी करती हैं। हालांकि किसानों की समस्याएं कितनी सुलझती हैं इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है। एक बार फिर से 2022 के चुनाव में किसानों का मुद्दा पंजाब में सबसे ऊपर रहने वाला है। वर्तमान में देखें तो ड्रग्स का मुद्दा भी पंजाब में काफी सुर्खियों में है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी ड्रग्स के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने जा रही है। पंजाब के युवाओं में बढ़ती ड्रग्स की लत कहीं ना कहीं वहां की सबसे बड़ी समस्या है। इसके अलावा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली के साथ-साथ पेंशन जैसी योजनाओं को भी लेकर आगे बढ़ने की कोशिश में है। युवाओं में बेरोजगारी भी एक बड़ा मसला है। ऐसे में वहां एक बार फिर रोजगार को लेकर पार्टियां लोक-लुभावन वादें कर सकती हैं।
पंजाब सीमावर्ती राज्य है। उसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है। ऐसे में सीजफायर फायरिंग के साथ-साथ पाकिस्तान से सप्लाई होने वाले आतंकवाद, ड्रग्स और ड्रोन वहां की बड़ी समस्याएं हैं जिसे भाजपा के साथ-साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह भी उठा सकते हैं। पंजाब में दलितों की आबादी भी अच्छी खासी है। ऐसे में उन्हें अपने पाले में लाने के लिए अलग-अलग योजनाओं का ऐलान भी किया जा सकता है और उन योजनाओं के फायदे भी गिनाए जा सकते हैं।
2017 के नतीजे
2017 के चुनाव परिणाम पंजाब में चौंकाने वाले थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लड़ी कांग्रेस ने 117 सीटों में से 77 पर जीत हासिल की और सरकार बनाने में सफल हुई। तमाम सर्वे में आम आदमी पार्टी को बढ़त के दावे किए जा रहे थे। लेकिन पार्टी को कुछ खास सफलता हाथ नहीं लग पाई। आम आदमी पार्टी लोक इंसाफ पार्टी के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। आप को 112 सीटों में से 20 पर जीत मिली जबकि लोक इंसाफ पार्टी ने 5 में से 2 सीट पर जीत हासिल की। 2017 के चुनाव में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल एक साथ चुनाव मैदान में उतरे थे। तब शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में पंजाब में एनडीए की सरकार थी। अकाली दल ने 94 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और जीत महज 15 सीटों पर मिली थी जबकि भाजपा के 23 उम्मीदवार उतारे थे और सिर्फ जीते तीन ही थे।