जमीनी संघर्ष से नदारद हैं कांग्रेसी, क्या बस गांधी परिवार है अहम ? या फिर सहयोगियों के लिए संभालना था मोर्चा

By अनुराग गुप्ता | Jun 23, 2022

मुंबई। आगामी वर्षों में जब पुरानी घटनाओं को एकत्रित करके महाराष्ट्र का मौजूदा इतिहास लिखा जाएगा, उसमें सबसे ज्यादा कमजोर महज एक ही पार्टी दिखाई देगी और वो है कांग्रेस, जिसने न तो गठबंधन धर्म निभाना उचित समझा और ही पार्टी संगठन को मजबूत करने का प्रयास किया। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कांग्रेस का जमीनी संघर्ष दिखाई नहीं दे रहा है। जमीनी संघर्ष का मतलब सिर्फ शीर्ष नेतृत्व या कहें गांधी परिवार की अड़चनों को दूर करना नहीं है बल्कि अपने लोगों और गठबंधन साथियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना है। 

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कांग्रेस नहीं TMC कर रही विरोध प्रदर्शन

महाविकास अघाड़ी सरकार पर संकट के बादल छाए हुए हैं और सरकार कभी भी गिर सकती है। क्योंकि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के बागी विधायकों ने असम की राजधानी गुवाहाटी के पांच सितारा होटल रेडिसन ब्लू में अपना डेरा जमाया हुआ है और महाराष्ट्र की सियासत का आगामी भविष्य गुवाहाटी से लिखा जा रहा है। लेकिन गुवाहाटी में उद्धव ठाकरे को ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस का समर्थन मिला है। भले ही तृणमूल कांग्रेस ने असम में अपनी जमीन तलाशने की कोशिशों के बीच रेडिसन ब्लू होटल के बाहर प्रदर्शन किया हो लेकिन इसे उद्धव ठाकरे के सहयोग के तौर पर देखा जाएगा।

खैर होना तो यह चाहिए था कि जिस प्रकार कांग्रेस ने जिग्नेश मेवाणी की गिरफ्तारी के खिलाफ असम में मोर्चा संभाला था। उसी प्रकार उद्धव ठाकरे के प्रति सच्चा समर्थन प्रकट करते हुए विरोध प्रदर्शन का जिम्मेदारी संभालनी थी लेकिन पार्टी का पूरा ध्यान अभी पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर टिका हुआ है। जिन्हें नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी से ईडी ने 5 दिन तक पूछताछ की। इस दौरान राष्ट्रीय राजधानी से लेकर अलग-अलग राज्यों में कांग्रेसियों ने जमकर प्रदर्शन किया। उस वक्त दिखाई दिया कि असल में कांग्रेस का संगठन काफी मजबूत है लेकिन क्या मजबूत संगठन सिर्फ गांधी परिवार के साथ है या फिर पार्टी के साथ ? क्योंकि यह समझना काफी मुश्किल है। 

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महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव नतीजे सामने आने के बाद सियासी उठापटक शुरू हो गया। खबर सामने आई कि कांग्रेस नेता बालासाहेब थोराट नाराज हैं लेकिन बाद में कांग्रेस की तरफ से बयान सामने आया कि यह खबर निराधार है। हालांकि कांग्रेस ने अपने विधायकों को एकजुट रखने की कोशिश की है। पार्टी ने कमलनाथ को महाराष्ट्र का पर्यवेक्षक बना दिया। उन्होंने विधायकों के साथ बैठक की और फिर कहा कि हमारे नेता एकजुट हैं। जबकि यह वही कमलनाथ हैं जिन्होंने कांग्रेस विधायकों के भाजपा में शामिल होने की वजह से सत्ता गंवाई थी।

महाराष्ट्र कांग्रेस की बात की जाए तो एक धड़े का मानना है कि पार्टी के कई विधायक कमजोर हैं और पार्टी नेतृत्व अपने लोगों को एकजुट रखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। आधिकारिक तौर पर कांग्रेस ने कहा कि उसके 44 विधायक उसके साथ हैं, कमलनाथ ने दावा किया है कि उन्होंने 41 विधायकों से मुलाकात की और 3 से फोन पर बात की।

कांग्रेस नेतृत्व में ऐसे समय पर कमलनाथ को महाराष्ट्र की सियासत में उलझा दिया, जब मध्य प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर भाजपा ने अपनी कमर कसी हुई है। हालांकि कमलनाथ वापस से मध्य प्रदेश चले गए हैं। 

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कांग्रेस ने खड़े किए अपने हाथ

इसका एक उदाहरण हरियाणा में संपन्न हुआ निकाय चुनाव भी है। जिससे ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने किनारा कर लिया और आम आदमी पार्टी जैसी नई पार्टी मजबूती के साथ चुनाव लड़ी। हालांकि आम आदमी पार्टी को एक सीट मिली। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष उदयभान ने कहा कि हमारे पास चिह्न पर चुनाव लड़ने के लिए प्रक्रिया को पूरा करने का समय नहीं था। मुझे 27 अप्रैल को जिम्मेदारी सौंपी गई और 4 मई को मैंने पदभार संभाला। उसके बाद राज्यसभा चनाव में 10 दिन हम बाहर रहे और फिर राहुल गांधी के खिलाफ ईडी की कार्रवाई को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन चल रहा है। सही मायने में भाजपा की हार हुई है।

एक तो ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने खुद को निकाय चुनाव से अलग रखा और दूसरा सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली भाजपा के हारने की बात की जा रही है। इस चुनाव में भाजपा ने 22 सीटों पर जीत हासिल की। जबकि सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जजपा) के हिस्से में 3 सीटें आई हैं। इसके अलावा 19 सीटों पर निर्दलियों का बोलबाला रहा।

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