कंप्यूटर बाबा और चमत्कारी यंत्र (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Nov 07, 2024

नगर के बीचों-बीच एक नया बाबा अवतरित हुए थे—'कंप्यूटर बाबा'। पहले तो लोग हँसे, "भला बाबा का नाम 'कंप्यूटर' कैसे हो सकता है?" पर फिर, जब बाबा ने बताया कि वे संसार के सभी दुखों का हल अपने 'चमत्कारी यंत्र' से निकाल सकते हैं, तो लोग आश्चर्यचकित हो गए।


बाबा का चमत्कारी यंत्र एक लैपटॉप था, जिसमें उन्होंने एक खास ऐप इंस्टॉल कर रखा था—"समस्या समाधान 2.0"। बाबा ने बताया कि यह कोई साधारण ऐप नहीं है, बल्कि इसे खुद उन्होंने हिमालय की गुफाओं में 12 वर्षों तक तपस्या कर तैयार किया है। लोग यह सुनकर और चकित हुए। अब गाँव के हर कोने से लोग बाबा के पास अपनी समस्याएँ लेकर पहुँचने लगे।


पहला भक्त आया, "बाबा, मेरा व्यापार बिल्कुल ठप्प हो गया है। क्या करूँ?"


बाबा ने अपने लैपटॉप में 'समस्या समाधान 2.0' खोला और भक्त का नाम, उम्र और व्यवसाय डालकर 'एंटर' दबाया। कुछ क्षण बाद स्क्रीन पर उत्तर आया, "बदली मुद्रा नीति में सुधार करो और ऑनलाइन व्यापार शुरू करो।" भक्त खुशी से झूम उठा। उसने बाबा के चरणों में कुछ नोट रख दिए और धन्यवाद देकर चल दिया।

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दूसरा भक्त आया, "बाबा, मेरे घर में रोज कलह होती है। क्या उपाय है?"


बाबा ने फिर से यंत्र में जानकारी डाली और 'एंटर' दबाया। उत्तर आया, "सोशल मीडिया पर अपनी पत्नी को ब्लॉक करो और हर बात पर 'लाइक' मत करो।" भक्त ने यह सुनकर तुरंत सोशल मीडिया से दूरी बना ली और घर लौट गया।


धीरे-धीरे बाबा का यंत्र पूरे नगर में चमत्कारी कहलाने लगा। छोटे से छोटे मसले से लेकर बड़े से बड़े संकट तक, हर समस्या का हल कंप्यूटर बाबा के यंत्र से निकलने लगा। बाबा का यंत्र इतना लोकप्रिय हो गया कि यहाँ तक कि नगर के नेता भी चुनाव जीतने के नुस्खे पूछने बाबा के पास आने लगे। बाबा ने उनके लिए खास 'चुनावी जीत 3.0' वर्जन निकाला, जिसमें जनता को कैसे प्रभावित करें, इसका पूरा गाइड था। नेता लोग भी बाबा के भक्त हो गए।


लेकिन हर चमत्कार की एक सीमा होती है। एक दिन एक बूढ़ी अम्मा बाबा के पास आई।


"बाबा, मेरी गाय रोज़ दूध नहीं दे रही। क्या करूँ?"


बाबा ने यंत्र में जानकारी डाली, पर इस बार 'समस्या समाधान 2.0' ने कोई उत्तर नहीं दिया। बाबा को पसीना आ गया। उन्होंने फिर से कोशिश की, लेकिन यंत्र बार-बार फेल हो रहा था। भीड़ अब सन्नाटे में थी। बाबा की प्रतिष्ठा दाँव पर थी।


बाबा ने गुस्से में लैपटॉप बंद कर दिया और बोले, "अरे अम्मा, गायों के लिए तो खुद ध्यान लगाना पड़ता है। ये चमत्कारी यंत्र गायों पर काम नहीं करता। अब से ये सेवा बंद।"


उस दिन के बाद से बाबा का यंत्र गाय, बकरी, और मुर्गियों से जुड़ी समस्याओं के लिए काम करना बंद कर गया। लोग धीरे-धीरे समझने लगे कि बाबा का 'चमत्कारी यंत्र' असल में उतना चमत्कारी नहीं था, जितना वो दिखाते थे। पर बाबा ने अपनी चालाकी से एक नई सेवा शुरू कर दी—"मोबाइल बाबा," जिसमें भक्त अपने फोन पर ही 'समस्या समाधान 2.0' डाउनलोड कर सकते थे।


इस प्रकार, कंप्यूटर बाबा ने अपनी प्रसिद्धि को बरकरार रखा, और लोग अब भी अपनी समस्याओं के लिए बाबा की ऐप की शरण में जाते हैं, बिना यह सोचे कि असली समस्या शायद यंत्र में नहीं, उनके खुद के भीतर छिपी है।


अंत में, बाबा के यंत्र का महत्त्व उतना ही रह गया था जितना किसी अंधे के हाथ में ऐनक का—काम तो कर रहा था, पर दिख कुछ नहीं रहा था।


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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