बिगड़ते, गिरते, संभलते वक़्त ने वोटर का मिजाज़ बदल लिया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में नगर चुनाव में पचास प्रतिशत वोटर घर पर ही रहे, सर्दियों की धूप का मज़ा लिया, वोट डालने नहीं गए। वैसे तो किसी भी लोकतान्त्रिक चुनाव में सभी को वोट डालने की ज़रूरत नहीं होती। समझदार जुगाडू नागरिकों को अपने काम करवाने आते हैं इसलिए चुनाव के दिन को भी अराजपत्रित अवकाश मानकर, लोकतंत्र का शुक्रिया अदा करते हैं। यह अनुभव में लिपटा सत्य है कि चतुर पार्टी, जाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय व धर्म की मिटटी जमाकर, उचित उम्मीदवार उगाती है। वह बात दीगर है कि चुनाव लड़ने वाला हर शख्स कहता है कि वही जीतेगा।
हमारे नेताओं की प्रेरणा से समर्पित और ईमानदार वोटर बढ़ते जा रहे हैं। वे किसी वक्ता या नेता का भाषण सुने और देखे बिना, वह्त्सेप सन्देश पढ़े बिना, बिना किसी से बतियाए, अपनी पवित्र आत्मा की आवाज़ पर वोट देते हैं। अनेक बार पति पत्नी दोनों को पता नहीं होता कि किसका वोट किसको गया है। कई सर्वे घोषणा करते रहते हैं कि देश के अधिकांश लोग कहते हैं कि मतदान अनिवार्य होना चाहिए। वास्तव में सिर्फ जीत ज़रूरी होती है इसलिए सभी का मत देना ज़रूरी नहीं होता। हमारे यहां तो शौक के लिए, कभी कभार मतदान करने वाले भी हैं। आशंका है यह वही लोग होंगे जो चुनाव में कुछ ख़ास चाहते होंगे लेकिन मिलता नहीं होगा।
दो रूपए किलो चावल, नया प्रेशर कुकर और देसी घी स्कीम का नवीनीकरण हो गया है। अब स्मार्ट फोन, लैप टॉप, स्कूटी, साइकिल, बिजली के यूनिट, खाते में पैसे या निरंतर राशन से भी वोटें आती हैं। मतदान केन्द्रों को गुब्बारों, नारों से सजाया, सेल्फी प्वाइंट बनाए, ढोल बजाए, पौधे भेंट किए, पेय पदार्थ रखे और रेड कारपेट बिछाए ताकि वोटिंग बढ़े फिर भी ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा। बहुत से अनुभवी नेताओं का कहना है कि वोटिंग के दिन सामूहिक, विविध स्वादिष्ट पकवान वाला प्रीति भोज ज्यादा वोट डलवा सकता है। विशेषकर यदि उदास वोटरों को पोलिंग बूथ के पड़ोस में, गर्व से बने गाय के शुद्ध देसी घी में बना स्वादिष्ट खाना खिलाया जाए, घर के लिए भी पैक कर दिया जाए और अंगुली पर वोट देने का पुष्टि निशान देखकर सुनिश्चित उपहार भी दिया जाए तो वोटिंग प्रतिशत निश्चित बढ़ सकता है।
बहुत से नाराज़ और नए वोटरों को डीजे का मनभावन संगीत बुला सकता है। वहां ताज़ा गानों पर नृत्य कर रही स्वदेशी बोल्ड चियर लीडर्ज़ भी खूब उत्साह बढ़ा सकती हैं। अगले चुनाव में वोट लेने के लिए पटाए रखने के लिए उत्सवों और जुलूसों में खिला, पिलाकर और नचाकर, एक टी शर्ट भी देनी चाहिए जिस पर, ‘स्वच्छ लोकतंत्र’ लिखा हो। विकसित समाज में सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं इधर उदास वोटर भी बढ़ रहे हैं। उधर एक एक वोट कीमती बताया जाता रहा है। राजनीतिजी वैसे भी हर वोट की कीमत अदा करने के लिए दिन रात तैयार रहती है तो इस भावना का सम्मान सार्वजनिक रूप से करने में हर्ज़ नहीं होना चाहिए।
विशेष विभाग द्वारा दिया गया उपहार, खालिस स्नेह समझकर, विज्ञापन खर्च का हिस्सा माना जा सकता है। वोटिंग बढाने के लिए विज्ञापन के साथ साथ हर वोटर का पेट भरना बहुत ज़रूरी है। यह काम ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली नगरपालिकाओं में पसरे नव नेताओं जिन्हें पार्षद कहा जाता है, के माध्यम से उच्च स्तर का हो सकता है। इसके लिए, ‘चुनाव उपहार विभाग’ बना देना चाहिए। पक्ष और विपक्ष का पचड़ा ही खत्म। इससे उपहार देने और लेने की हमारी पारम्परिक, समृद्ध संस्कृति को ईमानदार बढ़ावा मिलेगा। उपहार देना और लेना वैसे भी हमारी राष्ट्रीय आदतों में शुमार है। व्यवसाय हो चुकी मुस्कराहट के ज़माने में, लोकतंत्र की ईमारत के निरंतर नवीनीकरण के लिए, वोट जैसा कीमती सीमेंट बटोरने में, उत्सवी संस्कृति की मदद लेना गलत न होगा।
वोटिंग बढ़ाने के यह नुस्खे तो आम नुस्खे हैं, ख़ास नुस्खे तो ख़ास लोग ही बता सकते हैं।
- संतोष उत्सुक