By नीरज कुमार दुबे | Jun 22, 2023
महाराष्ट्र की राजनीति में अक्सर नये मोड़ आते रहते हैं या नये घटनाक्रम होते रहते हैं। आज की रिपोर्ट में हम बात करेंगे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में मचे नये तूफान की और महाराष्ट्र सरकार में शामिल एक मंत्री के सनसनीखेज दावे की। सबसे पहले बात करते हैं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की।
अभी हाल ही में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने अपनी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर महाराष्ट्र की जिम्मेदारी सौंपी थी। पवार ने इसके साथ ही वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर उन्हें अन्य राज्यों की जिम्मेदारी दी थी। उस समय अजित पवार के बारे में कहा गया था कि वह महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद पर हैं इसलिए वह वही काम करते रहेंगे। पार्टी ने यह भी कहा था कि अजित पवार की राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में कोई भूमिका निभाने की इच्छा नहीं है और वह महाराष्ट्र की राजनीति ही करना चाहते हैं इसलिए वह नेता प्रतिपक्ष जैसी महत्वपूर्ण भूमिका में बने रहेंगे। उस दौरान अजित पवार ने खामोश मन से जिस तरह शरद पवार का निर्णय स्वीकारा था उससे माना गया था कि राकांपा में उत्तराधिकार के मुद्दे को हल कर लिया गया है। लेकिन अब जिस तरह से अजित पवार ने अपने मन की बात सामने रखी है उससे स्पष्ट हो गया है कि भतीजे को यह कतई मंजूर नहीं है कि चाचा के साथ मिलकर उन्होंने जिस पार्टी को खड़ा किया था उसकी कमान वह अपनी बेटी को दे दें। यह कुछ वैसा ही है जैसा कि शिवसेना में बाला साहेब ठाकरे के जमाने में देखने को मिला था। उस समय उनके भतीजे राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान सौंपे जाने का विरोध करते हुए कहा था कि जिस पार्टी को खड़ा करने के लिए उन्होंने अपना पसीना बहाया उसकी कमान एकतरफा रूप से अपने पुत्र को सौंपा जाना गलत है।
हम आपको बता दें कि अजित पवार ने अब जो कुछ कहा है उससे महाराष्ट्र की राजनीति में नया तूफान आ गया है। अजित पवार ने पार्टी नेतृत्व से अपील की है कि वह उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त कर दें और उन्हें पार्टी संगठन में कोई भूमिका सौंपें। मुंबई में आयोजित, राकांपा के 24वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में अजित पवार ने यह मांग रखी।
ताजा अटकलों को हवा देने वाली एक टिप्पणी में अजित पवार ने यह भी कहा है कि मुझे बताया गया है कि मैं नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सख्त व्यवहार नहीं करता हूं। उन्होंने कहा, "मुझे नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम करने में कभी दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन पार्टी विधायकों की मांग पर यह भूमिका स्वीकार की थी।" अजित ने हालांकि यह भी कहा कि उनकी मांग पर फैसला करना राकांपा नेतृत्व पर निर्भर है। उन्होंने कहा, "मुझे पार्टी संगठन में कोई भी पद दे दें। मुझे जो भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, उसके साथ पूरा न्याय करूंगा।" अजित पवार ने साथ ही मुंबई और विदर्भ में राकांपा संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
हम आपको यह भी बता दें कि पहले भी इस तरह की अटकलें लगती रही हैं कि अजित पवार पार्टी छोड़ सकते हैं। जब पिछले दिनों शरद पवार ने एकाएक राकांपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था तब अजित पवार ने उनके इस्तीफे का स्वागत भी किया था लेकिन बाद में पार्टीजनों के मनाये जाने पर शरद पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। अजित पवार पिछले विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ जाकर उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले चुके हैं। हालांकि वह सरकार चल नहीं पाई थी और फिर बाद में वह पार्टी में लौट आये थे और उद्धव ठाकरे की सरकार में राकांपा कोटे से कैबिनेट मंत्री बने थे।
एकनाथ शिंदे के बारे में सनसनीखेज दावा
दूसरी ओर, महाराष्ट्र की सियासत से ही जुड़ी एक अन्य बड़ी खबर की बात करें तो महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री दीपक केसरकर ने दावा किया है कि अगर पिछले साल शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ बगावत नाकाम होती तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे खुद को गोली मार लेते। केसरकर ने आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे एकनाथ शिंदे का पिछले साल शिवसेना के स्थापना दिवस (19 जून) पर अपमान किया गया था। स्कूल शिक्षा मंत्री केसरकर ने कहा कि मुख्यमंत्री शिंदे सच्चे शिवसैनिक हैं। उन्होंने कहा, ‘‘शिंदे साहब सच्चे इंसान और सच्चे शिवसैनिक हैं। उन्होंने (शिंदे) कहा था ‘अगर मेरा विद्रोह विफल हो गया, तो मैं सभी (बागी) विधायकों को वापस भेज देता...मैं मातोश्री (उपनगरीय बांद्रा में ठाकरे परिवार का निजी आवास) फोन करता और कहता कि मैंने गलती की, विधायकों की गलती नहीं है और तब मैं अपने सिर में गोली मार लेता।’’
मंत्री के बयान पर राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने कहा, ‘‘पुलिस को दीपक केसरकर को हिरासत में लेना चाहिए क्योंकि कोई आत्महत्या करने के बारे में सोच रहा और केसरकर इससे अवगत हैं। यदि कल वह (शिंदे का जिक्र करते हुए) विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय (विधायकों की अयोग्यता पर) के बाद आत्महत्या कर लेते हैं, तो केसरकर को तुरंत हिरासत में ले लिया जाना चाहिए।’’
हम आपको याद दिला दें कि पिछले साल 20 जून को, शिंदे सहित शिवसेना के 40 विधायकों ने नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी, जिससे पार्टी में विभाजन हो गया और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी। कुछ दिनों बाद, शिंदे ने भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से नए मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला था।