अकेला रह गया पासवान खानदान का 'चिराग', बदले की चिंगारी लालटेन की लौ करेगी तेज?

By अभिनय आकाश | Jun 14, 2021

''कङ्करियां जिनकी सेज सुघर,छाया देता केवल अंबर, विपदाएं दूध पिलाती है, लोरी विधियां सुनाती हैं। जो लाक्षागृह में जलते हैं,वे ही शूरमा निकलते हैं।'' अर्थात जो मनुष्य अपने जीवन में विघ्न-बाधाओं का सामना करते हैं और अपने श्रम, साहस और वीरता से उन पर विजय पाते हैं, वही सच्चे वीर होते हैं।  बिहार में समय से एक दिन पहले आए दक्षिण पश्चिमी मॉनसून का असर पूरे प्रदेश में देखने को मिल रहा है। कई इलाकों में पिछले दो दिनों से झमाझम बारिश हो रही है। मौसम विभाग के मुताबिक, सूबे में अगले पांच दिनों तक ऐसी ही स्थिति रहने वाली है। मौसम विभाग के द्वारा मौसम को लेकर ऐसी भविष्वाणी तो आपने कई बार टीवी पर देखी या समाचार पत्रों के माध्यम से सुनी होंगी। लेकिन राजनीति के मौसम वैज्ञानिक और उसके परिवार व पार्टी में पड़े फूट की कहानी आज के इस विश्लेषण में करेंगे। जिसकी शुरुआत मौसम विज्ञान से ही करते हैं। मौसम वैज्ञानिक यानी जो पहले ही भांप ले की कौन जीतने वाला है और फिर वो उस दल या गठबंधन के साथ हो लेते हैं। पासवान परिवार की निष्ठा मौसम के हिसाब से बदलती रहती है। इसलिए उन्हें सियासत का मौसम वैज्ञानिक कहा जाने लगा। लेकिन सियासत के उसी मौसम वैज्ञानिक की पार्टी एलजेपी में बड़ी फूट पड़ गई है। बिहार के पासवान कुनबा में हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामा देखने को मिल रहा है। दिवंगत दिग्गज नेता रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) टूट गई है। चिराग पासवान के सांसद चाचा पशुपति पारस अपने भतीजे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। यही नहीं पशुपति पारस के साथ ही चार और सांसदों ने भी पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी है। इन्होंने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को चिट्ठी लिखकर अलग मान्यता देने की मांग की है। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार पशुपति पारस के नेता चुने जाने का पत्र मिला है और सभी कानूनी पहलुओँ को ध्यान में रखकर इसपर निर्णय लिया जाएगा। साथ ही इसके ये भी कहा जा रहा है कि एलजेपी का ये बागी गुट जेडीयू भी ज्वाइन कर सकता है। उसी नीतीश कुमार के खेमे में ये लोग जा सकते हैं जिसके विरोध में चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में एनडीए से नाता तोड़ लिया था। साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त से ही उन्हें चिराग पासवान की दी हुई टीस हमेशा याद आती रही। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इसी का बदला लिया है और चिराग पासवान अकेले रह गए। 

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वर्ष 2004, साल का पहला दिन यानी 1 जनवरी, सोनिया गांधी अपने 10 जनपथ निवास से निकलती हैं। एसपीजी सुरक्षा के साथ गोलचक्कर को पैदल पार करती हैं और 12 जनपथ के गेट पर पहुंचती हैं। 12 जनपथ यानी रामविलास पासवान का आवास। सोनिया की यह छोटी सी पदयात्रा समसामयिक राजनीतिक इतिहास में एक बड़ी घटना बनकर उभरी। सोनिया गांधी को इससे पहले दिल्ली की सड़कों पर टहलते शायद ही किसी ने देखा होगा। सोनिया ने रामविलास पासवान से कोई अपॉइंटमेंट नहीं लिया था। केवल उनके दफ्तर ने यह चेक किया था कि पासवान घर पर हैं या नहीं। वह बिना ऐलान किए, बिना किसी अपॉइंटमेंट और बिना किसी सूचना के वहां पहुंचीं। पासवान के लिए भी यह बेहद आश्चर्यजनक घटना थी, लेकिन वह सोनिया की गर्मजोशी, पहल और राजनीतिक सूझबूझ के कायल हो गए थे। पासवान की पार्टी उस वक्त अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर अनिश्चितता में थी और ऐसे में सोनिया का गठजोड़ बनाने के लिए उनके पास आना पासवान के लिए बड़ी बात थी। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। साल 2014, आम चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर दिल्ली का 12 जनपथ सुर्खियों में था। इस बार भाजपा के वरिष्ठ नेता रामविलास पासवान से मुलाकात करने आए थे। इस बैठक के बाद देर रात लोकसभा चुनाव में लोजपा और बीजेपी के गठबंधन की घोषणा हुई। इतिहास की ये दो घटनाएं बताने के लिए काफी हैं कि भारतीय राजनीति में रामविलास पासवान की यही अहमियत रही।  वे एक ही वक्त में दो विपरीत छोरों पर खड़े लोगों के बीच सहज स्वीकार्य हो जाते रहे। 

लोजपा का गठन

बिहार के खगरिया जिले में एक दलित परिवार में जन्म लेने वाले रामविलास पासवान बिहार पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में उतरे। लोकदल के महासचिव नियुक्त हुए। इमरजेंसी के दौरान वे राजनारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बेहद करीब थे। पासवान ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1969 में लड़ा और वो चुनाव था संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो वे आंदोलनकारियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए और लगभग दो साल जेल में बिताए। जेल से छूटने के बाद पासवान जनता पार्टी के सदस्य बने और संसदीय चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे। पासवान ने 1981 में दलित सेना संगठन की भी स्थापना की थी। पासवान के अनुसार यह संगठन पूरी तरह से दलितों के उत्थान के लिए समर्पित था।  कांशीराम और मायावती की लोकप्रियता के दौर में भी, बिहार के दलितों के मज़बूत नेता के तौर पर लंबे समय तक टिके रहे हैं।  पिछले तीन दशक में केंद्र की सत्ता में आए हर राजनीतिक गंठबंधन में शामिल रहे और मंत्री बने। राजनीतिक गलियारे में पासवान को इसीलिए विरोधी सबसे सटीक सियासी मौसम विज्ञानी का तंज भी कसते हैं। सियासी हवा का रुख भांपकर गठबंधन की बाजी चलने की यह काबिलियत ही है कि अपने अस्तित्व के करीब   तीन दशकों में लोजपा अधिकांश समय केंद्र की सत्ता का हिस्सा रही है। राम विलास पहले जनता पार्टी से होते हुए जनता दल और उसके बाद जनता दूल यूनाइटेड का हिस्सा रहे, लेकिन जब बिहार की सियासत के हालात बदल गए तो उन्होंने 2000 में अपनी पार्टी बना ली। लोकजनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी का गठन सामाजिक न्याय और दलितों पीड़ितों की आवाज उठाने के मकसद से किया गया था. बिहार में दलित समुदाय की आबादी तो करीब 17 फीसदी है, लेकिन दुसाध जाति का वोट करीब पांच फीसदी है, जो एलजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है और इस जाति के सर्वमान्य नेता राम विलास पासवान माने जाते रहे।

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रामविलास पासवान तीन भाइयों में सबसे बड़े थे

जामुन पासवान की तीन संतान थीं, जिसमें रामविलास सबसे बड़े थे, उसके बाद पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान। रामविलास पासवान दे दो शादी की थी। उनकी पहली शादी 1960 में राजकुमारी देवी से हुई। पहली शादी से दो बेटियां ऊषा और आशा हैं। लेकिन पहला रिश्ता सिर्फ 21 साल तक चला। रामविलास ने 1981 में राजकुमारी देवी को तलाक दे दिया। जिसके बाद 1983 में अमृतसर की एयरहोस्टस रीना शर्मा से पासवान ने दूसरी शादी की। दूसरी शादी से एक बेटा और एक बेटी हैं। चिराग रामविलास की दूसरी पत्नी की संतान हैं। साल 2020 में रामविलास पासवान का निधन हो गया। वहीं उनके भाई रामचंद्र पासवान का भी निधन हो चुका है। जिसके बाद उनके पुत्र प्रिंस राज समस्तीपुर से सांसद बने। 

चाचा बनाम भतीजा, क्या होगा नतीजा

वैसे तो राजनीति में चाचा-भजीता के बीच अदावत की महाराट्र से लेकर पंजाब तक ढेरों कहानियां हैं चाहे वो उत्तर प्रदेश के अखिलेश बनाम शिवपाल की जंग हो या हरियाणा के चौटाला परिवार की अदावत। या फिर बादल के पुत्र मोह पर भतीजे मनप्रीत ने की बगावत। कहीं पर भतीजे ने चाचा को मात दी तो कहीं चाचा ने भतीजे को ऐसा ही कुछ वाक्या बिहार में घटित हुआ। रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी के पोस्टर ब्वॉय चिराग बन गए। सारे फैसले चिराग अपनी मर्जी से ले रहे थे औऱ यही बात बाकी नेताओं के पसंद नहीं आ रही थी। विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए से अलग चुनाव लड़ने का फैसला भी चिराग का ही माना जाता है जहां एलजेपी को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद बिहार की राजनीति में सोमवार सियासी ड्रामा वाला रहा। कहा जाने लगा कि चाचा पारस ने भतीजे चिराग की राजनीतिक करियर में ब्रेक लगा दिया है। लोजपा में बगावत करने वाले पांच सांसदों की ओर से लोकसभा अध्यक्ष सौंपे गए समर्थन पत्र में बताया गया है कि वे पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुनते हैं। अब से पशुपति कुमार पारस लोजपा के लोकसभा संसदीय दल के नेता होंगे। वहीं महबूब अली कैसर लोकसभा संसदीय दल के उपनेता होंगे। सूरजभान सिंह भाई और नवादा से सांसद चंदन सिंह लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक होंगे। बगावत करने वाले नेतओं में रामविलास पासवान के भाई और हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस, चिराग के चचेरे भाई और समस्तीपुर से सांसद प्रिंस राज, खगड़िया से सांसद महबूब अली कैसर, नवादा के सांसद चंदन सिंह और वैशाली से सांसद वीणा देवी। चिराग पासवान अपने बागी चाचा पशुपति पारस को मनाने उनके घर पहुंचे थे, लेकिन भतीजे के आने से पहले ही चाचा घर से निकल गए। चाचा-भतीजे के रिश्ते में दूरियां इतनी बढ़ गईं कि चाचा पारस के घर का दरवाजा भी उनके लिए नहीं खुला। चिराग पासवान बाहर ही अपनी गाड़ी में बैठकर करीब 20 मिनट तक इंतजार करते रहे। उसके बाद घर का दरवाजा खोला गया। घर में एक घंटे तक इंतजार करने के बाद भी चिराग पासवान को चाचा से बिना मिले ही लौटना पड़ा। पशुपति पारस ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि उन्होंने पार्टी को तोड़ा नहीं बचाया है। साथ ही कहा कि उन्हें चिराग पासवान से कोई नाराजगी नहीं है, अगर वे चाहें तो पार्टी में रह सकते हैं। पशुपति पारस ने कहा कि हमारे भाई चले गए, हम बहुत अकेला महसूस कर रहे हैं। भाई के जाने के बाद पार्टी की बागडोर जिनके हाथ में गई, तब सभी को उम्मीद थी कि वर्ष 2014 की तरह इस बार भी हम एनडीए के साथ बने रहें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लोक जनशक्ति पार्टी बिखर रही थी, असमाजिक तत्व आ रहे थे, एनडीए से गठबंधन को तोड़ दिया और कार्यकर्ताओं की नहीं सुनी गई।

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 रालोसपा की तरह लोजपा का भी होगा जेडीयू में विलय ?

बिहार की राजनीति में तीन मुख्य राजनीतिक दल ही सबसे ताकतवर माने जाते हैं। इन तीनों में से दो का मिल जाना जीत की गारंटी माना जाता है। बिहार की राजनीति में अकेले दम पर बहुमत लाना अब टेढ़ी खीर है। नीतीश कुमार को ये तो मालूम है ही कि बगैर बैसाखी के चुनावों में उनके लिए दो कदम बढ़ाने भी भारी पड़ेंगे। बैसाखी भी कोई मामूली नहीं बल्कि इतनी मजबूत होनी चाहिये तो साथ में तो पूरी ताकत से डटी ही रहे, विरोधी पक्ष की ताकत पर भी बीस पड़े। इतिहास को देखें तो जब वो बीजेपी को बैसाखी बनाते हैं तो विरोध में खड़े लालू परिवार पर भारी पड़ते हैं और अगर लालू यादव के साथ मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी की ताकत हवा हवाई कर देते हैं। नीतीस कुमार पर हमलावर रहने वाले और खुद को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने वाले उपेंद्र कुशवाहा जो इन दिनों नीतीश को बड़ा भाी बताते नहीं थकते। लेकिन इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प रही। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के पहले महागठबंधन से अलग होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में अंदरूनी कलह से जूझना पड़ा था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कई नेता राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को छोड़ जेडीयू का दामन थाम चुके थे। विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेताओं ने उपेंद्र कुशवाहा को ही पार्टी से बाहर कर दिया था और सभी नेता आरजेडी में शामिल हो गए थे। इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा बचे हुए नेताओं के साथ पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया था। दरअसल, रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति में जिस तरह की फूट हुई है। यह कोई अचानक घटी घटना है ऐसा नहीं कहा जा सकता। लोजपा के अधिकांश नेता और कार्यकर्ता राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के कई फैसलों से नाराज थे। पार्टी कार्यकर्ता और नेता चिराग पासवान द्वारा लगातार नीतीश पर किए जा रहे हमले से भी खफ़ा थे। बिहार के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि जिस प्रकार उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय कर अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित कर लिया। उसी तरह पशुपति पारस अपना और चिराग पासवान का राजनीतिक भविष्य बचाए रखने के लिए जेडीयू में पार्टी का विलय कर सकते हैं। 

चिराग  से ‘लालटेन’ जलाने की तैयारी

लोजपा में पड़ी इस बड़ी फूट के बाद अब चिराग को लालटेन का साये तले जलते रहने की पेशकश की गई है। जानकारी के अनुसार लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की ओर से चिराग पासवान को ऑफर दिया गया है। लालू यादव की पार्टी की ओर से कहा गया है कि चिराग पासवान घबाराएं नहीं और हमारे साथ आ जाएं आरजेडी ने चिराग पासवान को खुला ऑफर दिया है। लालू यादव की पार्टी की ओर से कहा गया है कि अभी भी चिराग को ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए। चिराग को कहा गया है कि उन्हें हमारे साथ आ जाना चाहिए और एनडीए के छल और प्रपंच का सही तरीके से जवाब देना चाहिए। राजद की ओर से कहा गया है कि यदि बिहार की राजनीति में दो युवा चेहरे चिराग पासवान और तेजस्वी यादव साथ आते हैं तो आने वाले समय में निश्चय ही बिहार की राजनीतिक दशा और दिशा बदल जाएगी।

नीतीश से बगावत पड़ा मंहगा 

विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही नीतीश कुमार ने ऑपरेशन क्लीन की शुरुआत कर दी। इसी के तहत पहले तो लोजपा के एकमात्र विधायक राजकुमार को अपने साथ मिलाया। फिर चिराग के चाचा को  सांसद ललन सिंह के माध्यम से साथ मिलाया। रही सही कसर विधानसभा के उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने महबूब अली कैसर सहित दूसरे नेताओँ को साध कर पूरी की। बहरहाल, चिराग पासवान का पार्टी में क्या वजूद रहेगा, चुनाव चिन्ह उनके पास रहेगा या नहीं ये तो आने वाले वक्त में पता चलेगा। लेकिन इतना तो साफ है कि नीतीश ने यह तो बता दिया है कि आप देश में भले ही जो भी हो लेकिन बिहार में तो हमारे बिना कोई भी कुछ नहीं है। -अभिनय आकाश


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