By अनन्या मिश्रा | Jun 29, 2023
वैसे तो पूरे देश में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं। लेकिन भगवान गणेश के कुछ मंदिरों को लेकर तमाम तरह की किवदंतियां लोगों के बीच प्रचलित हैं। ऐसा ही एक मंदिर सीहोर में स्वयंभू गणेश जी का मंदिर है। इस मंदिर को चिंतामन गणेश मंदिर भी कहा जाता है। इस स्थान को सिद्ध स्थल माना जाता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको चिंतामन गणेश जी के मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।
सिद्धि विनायक मंदिर
बता दें कि सीहोर का सिद्धि विनायक मंदिर अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है। इस मंदिर को चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर सीहोर उत्तर पश्चिम दिशा में गोपालपुर गांव में स्थित है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपास से यह मंदिर करीब 35 किमी दूर स्थित है।
मंदिर का इतिहास
लोक कथाओं के अनुसार, उज्जैन के शासक महाराज विक्रमादित्य ने 155 विक्रम में इस मंदिर का निर्माण श्रीयंत्र के अनुरूप करवाया था। जिसके बाद मराठा पेशवा बाजीराव ने मंदिर का नवीनीकरण करवाया था। बुधवार के दिन यहां पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। वहीं गणेश चतर्थी के दिन इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा आधी खड़ी हुई और आधी जमीन के अंदर धंसी हुई है। जिसके कारण भक्तों को आधी मूर्ति के दर्शन हो पाते हैं।
माना जाता है कि यह स्वयंभू भगवान गणेश जी की प्रतिमा है। इसलिए इस मंदिर की प्रतिमा का प्रताप अन्य जगहों से ज्यादा माना जाता है। बताया जाता है कि इस मंदिर में अनेक तपस्वियों ने सिद्धि प्राप्त की है। मान्यता के अनुसार, जो भी भक्त यहां पर अपना दुखड़ा सुनाता है। स्वयंभू श्री गणेश स्वयं भक्त के हर संकट को हर लेते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वास्तिक का उल्टा निशान बनाने के भक्तों का हर काम सिद्ध होता है।
मंदिर से जुड़ी किंवदंती
बताया जाता है कि मंदिर में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा की आंखों में हीरे जड़े थे। वहीं 150 साल पहले मंदिर में ताला नहीं लगाया जाता है। तभी किसी चोर ने गणेश जी की आंखों से वह हीरे चुरा लिए थे। जिसके बाद उस मूर्ति से लगातार 21 दिनों तक दूध बह रहा था। बाद में भगवान गणेश ने मंदिर के पुजारी को स्वप्न देते हुए कहा कि उनकी मूर्ति खंडित नहीं हुई है। मूर्ति में चांदी के नेत्र लगवा दो। जिसके बाद गणेश जी की प्रतिमा में चांदी के नेत्र लगवाए गए और मंदिर में भंडारा किया गया।