कोरोना को लेकर वैश्विक दबाव में आया चीन चिड़चिड़ा होकर मुद्दे को भटकाने के लिए भारत के खिलाफ सिक्किम में सीमा पर तनाव उत्पन्न कर रहा है। चीन सैनिकों ने बगैर किसी उकसावे के भारतीय सैनिकों से हाथापाई की। हालांकि भारत ने इसका सख्ती से जवाब दिया। ऐसे वक्त में जब पूरे विश्व में कोरोना से मुकाबले के रास्ते खोजे जा रहे हैं, चीन की यह हरकत साबित करती है कि विश्व में वह अलग−थलग पड़ गया है। कोरोना मुद्दे पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तो पहले ही सख्त नाराज हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प का आरोप है कि चीन ने जानबूझ कर कोरोना की जानकारी साझा नहीं की।
इसके लिए उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के रवैये को भी जिम्मेदार माना। इस संगठन की भूमिका को भी संदिग्ध माना। इसी नाराजगी के चलते ट्रम्प ने इस अंतरराष्ट्रीय संस्था को दिए जाने वाले अनुदान को देने से इंकार कर दिया है। अमेरिका सर्वाधिक अनुदान राशि देता है। चीन से इसी तनातनी के बीच ही अमेरिका ने पिछले दिनों दक्षिण चीन सागर में अपना युद्धपोत भेजा था। चीन इस क्षेत्र पर एकाधिकार जताता रहा है।
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अमेरिका की तरह विश्व के दूसरे देश भी कोरोना को लेकर चीन से खफा हैं। ऑस्ट्रेलिया ने चीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच की मांग की है। आस्ट्रेलिया ने चीन को विश्व में कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के वकीलों के एक दल ने चीन के खिलाफ 200 बिलियन डालर के हर्जाने का मुकदमा दायर करने का निर्णय लिया है। अफ्रीकी देश नाइजीरिया की एक लॉ फर्म चीन के खिलाफ समर्थन के लिए वैश्विक अभियान चला रही है।
कोरोना को लेकर भारी विवादों से घिरे चीन ने सिक्किम में उकसावे की कार्रवाई कर भारत के साथ जबरन तनाव उत्पन्न करने की कोशिश की है। चीन की मंशा भारत के खिलाफ कार्रवाई के साथ सीमा विवाद को भड़का कर अपने खिलाफ विश्व भर में बढ़ती नाराजगी से ध्यान भटकाना है। कोरोना से मुकाबला करने के लिए ताइवान के भारत को स्वास्थ्य संबंधी उपकरण देने से भी चीन भड़का हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक में शिरकत के लिए ताइवान भारत से समर्थन की उम्मीद कर रहा है। इसके विपरीत चीन जबरदस्ती ताइवान को अपना हिस्सा बताता रहा है। चीन पूर्व में भी ताईवान के मुद्दे को घरेलू मामले की संज्ञा देता रहा है।
चीन के भारत से भड़कने के कारणों में भारत की नई एफडीआई पॉलिसी और पाक अधिकृत कश्मीर का मुद्दा भी है। भारत ने समीपवर्ती देशों से सीधे एफडीआई पर पाबंदी लगा दी है। पिछले दिनों ही चीन ने एचडीएफसी में भारी निवेश किया था। कोरोना संक्रमण के बाद चीन में कार्यरत करीब तीन हजार विदेशी कंपनियां अपना कामकाज समेट कर दूसरे देशों में निवेश करना चाहती हैं। भारत इन कंपनियों को निमंत्रण दे रहा है। भारत ने इन कंपनियों के निवेश को सुगम बनाने के लिए कई तरह की छूट भी दी है। चीन की भारत के प्रति वैमनस्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों ब्रह्मपुत्र नदी में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से मरे सुअरों को बहाया गया। इससे असम सहित उत्तर−पूर्वी राज्यों में अब तक 13 हजार सुअरों की मौत हो चुकी है। विश्व समुदाय चीन की इस करतूत से वाकिफ है।
इसके अलावा चीन भारत से बैर साधने के लिए पाकिस्तान को पनाह देता रहा है। पाकिस्तान के मुद्दे पर चीन की आतंकियों के समर्थन देने की अघोषित नीति सर्वविदित है। अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के विरोध में चीन पाकिस्तान के समर्थन में वीटो का इस्तेमाल करता रहा। आखिरकार जब अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की खिंचाई की घोषणा की तब कहीं जाकर चीन बैकफुट पर आने को मजबूर हुआ। चीन और पाकिस्तान में वैचारिक स्तर पर किसी तरह की समानता नहीं है। इसके विपरीत चीन मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता देने के खिलाफ है। चीन ने उझगर प्रांत के मुस्लिमों के खिलाफ दमनात्मक अभियान भी चलाया। अमेरिका इसे मानवाधिकार का उल्लंघन करार दे चुका है।
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चीन इसी कोशिश में लगा रहता है कि किसी न किसी बहाने से भारत पर अंकुश लगाए रखे। चीन भारत की तरक्की को किसी भी सूरत में नहीं देख सकता। पाक अधिकृत कश्मीर का भारत प्रारंभ से ही विरोध करता रहा है। यह पूरा इलाका भारत का है। पिछले दिनों भारतीय मौसम विभाग ने पीओके में गिलगिट, वजीरीस्तान और मुजफ्फराबाद पर अपना क्षेत्राधिकार मानते हुए मौसम की भविष्यवाणी का बुलेटिन प्रारंभ किया है। चीन इस मुद्दे पर सीधे विरोध तो नहीं जता सका पर खुन्नूस निकलाने का अवसर तलाशता रहता है। चीन भारत विरोध के चलते प्रारंभ से पाकिस्तान की हर हरकत का मौन या खुले में समर्थन करता रहा है, यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकी अभियान चलाए हुए है। पूरा विश्व पाकिस्तान में चल रहे आतंकी अड्डों का गवाह भी है, इसके बावजूद चीन पाकिस्तान को सैन्य व अन्य सहायता देने से बाज नहीं आता। इसका सीधा मकसद पाकिस्तान के जरिए भारत को उलझाए रखना है ताकि भारत विकास के बजाए पाकिस्तान से विवाद में उलझा रहे।
चीन इस बात को भी अच्छी तरह समझता है कि सीमा विवाद पर भारत से सशस्त्र संघर्ष संभव नहीं है। भारत अब 1962 वाला भारत नहीं रहा है। भारत के पास भी तकरीबन चीन जैसे हथियारों की क्षमता है। इसलिए सीधे संघर्ष करने की बजाए चीन उकसावे की रणनीति अपनाता रहा है। इससे पहले डोकलाम पर महीनों तक चीनी सीमा का जमाव इसका उदाहरण रहा है। आखिरकार चीन को यहां से अपने कदम पीछे हटाने पड़े। चीन भारत से सीमा विवाद को उकसा कर बेशक कोरोना से ध्यान हटाने की कोशिश करे, किन्तु यह निश्चित है कि विश्वस्तर पर चीन की जवाबदेही तय है। अमेरिका, यूरोप सहित विश्व के अन्य देश चीन को कोरोना का दोषी मानते हुए कार्रवाई किए बगैर नहीं मानेंगे।
-योगेन्द्र योगी