पूरी दुनिया में तबाही मचाने की सजा चीन को मिलनी ही चाहिए

By डॉ. दीपकुमार शुक्ल | Apr 22, 2020

पूरे विश्व को कोरोना महामारी की सौगात देने वाले चीन की काली करतूतों पर से धीरे-धीरे पर्दा उठने लगा है। पूंजीवादी संस्कृति किसी देश को नैतिक रूप से कितना दीवालिया कर सकती है, चीन इसका जीता जागता उदाहरण है। कहने को तो चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता है। परन्तु उसकी संस्कृति घनघोर पूंजीवादी है। ऐसे देश के नेतृत्व की दृष्टि में न तो दूसरे देश के नागरिकों की जान का कोई मूल्य होता है और न ही अपने देश के नागरिकों के प्राणों की कोई कीमत होती है। उनकी सारी शक्ति स्वयं के पूंजी विस्तार पर ही केन्द्रित रहती है। जनवरी माह में जब चीन में मृत्यु का ताण्डव शुरू हुआ तब पूरा विश्व चीन को संवेदनशील दृष्टि से देख रहा था। उसकी मदद के लिए हर तरफ से हाँथ उठ रहे थे। लेकिन कोविड-19 नामक महामारी के पीछे छुपा चीन का कलुषित चेहरा जैसे-जैसे उजागर हो रहा है, वैसे-वैसे विश्व का प्रत्येक देश चीन को हिकारत भरी निगाहों से देखने लगा है। अमेरिका सहित विश्व के कई देश लामबन्द होकर न केवल चीन के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं बल्कि दूसरे तरीकों से भी चीन को सबक सिखाने की योजना बना रहे हैं। सम्भवतः इसका आभास चीन को भी हो चुका है। शायद तभी उसने गोपनीय तरीके से अपने परमाणु अस्त्रों का परीक्षण शुरू कर दिया है। उधर अमेरिकी सेनाओं ने भी चीन के विरुद्ध मोर्चा सम्भाल लिया है।

 

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कोरोना महामारी को लेकर शी जिनफिंग ने न केवल पूरे विश्व को भ्रम में रखा बल्कि चीनी नागरिकों को भी समय रहते सूचना नहीं दी। चीन सरकार ने 14 से 19 जनवरी तक यह बात सबसे छुपाये रखी कि वुहान शहर में कोरोना नाम के किसी नये और लाइलाज वायरस का पता चला है। तब तक चीन के तीन हजार से भी अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके थे और लाखों लोग देश-विदेश की यात्रा पर निकल गये थे। चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के प्रमुख ने 14 जनवरी को प्रान्तीय स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ गोपनीय टेलीकांफ्रेंसिंग में कोरोना संक्रमण की पूरी स्थिति का आकलन करके इसकी जानकारी राष्ट्रपति शी चिनफिंग को दी थी। परन्तु राष्ट्रपति ने 6 दिन बाद 20 जनवरी को इस बारे में चेतावनी जारी की। चीन की इसी लापरवाही के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। डब्ल्यूएचओ से नाराज अमेरिका ने तो उसे दी जाने वाली 50 हजार करोड़ डॉलर की सालाना राशि तक रोक दी है। अमेरिका सहित विश्व के अनेक देश यह मानते हैं कि डब्ल्यूएचओ ने चीन की भूमिका छिपाने की कोशिश की है जिसका खामियाजा आज पूरा विश्व भुगत रहा है।


चीन सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वहां कोरोना संक्रमण से अब तक मरने वालों की संख्या साढ़े तीन हजार से कम है तथा कुल संक्रमित व्यक्ति साढ़े बयासी हजार के लगभग हैं जबकि मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह आंकड़ा सही नहीं है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि चीन में कोरोना संक्रमण से लगभग दो करोड़ लोगों की मौत हुई है। अभी भी वहां प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के नये-नये मामले सामने आ रहे हैं जिससे चीन का कोरोना संक्रमण पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त कर लेने का दावा गलत सिद्ध हो रहा है। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो फरवरी माह में कोरोना संक्रमण से मरे चीनी नागरिकों का अन्तिम संस्कार करने के लिए जिस तरह से शवदाह गृह चौबीसो घण्टे क्रियाशील रहे उससे सहज ही यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि मरने वालों की वास्तविक संख्या कितनी अधिक रही होगी। अपने परिजनों की अस्थियाँ प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन हजारों लोग इन शवदाह गृहों के चक्कर लगा रहे हैं। सूचना तो यहाँ तक है कि हजारों कोरोना संक्रमित लोगों का कहीं भी कुछ पता नहीं है। शवदाह गृहों में न ही उनकी अस्थियाँ हैं और न ही किसी अस्पताल के पास उनके जीवित या मृत होने का कोई रिकॉर्ड ही है। कई न्यूज चैनलों ने तो यह तक दावा किया है कि ऐसे सभी लोगों को या तो जिन्दा जलवा दिया गया है या फिर समुद्र में फिकवा दिया गया है। जनवरी और फरवरी माह में लॉकडाउन के नाम पर लोगों के दरवाजों को बाहर से ही सील कर दिया गया था। ऐसे में यदि कहीं किसी के कोरोना पॉजटिव होने की खबर चीनी प्रशासन को मिलती थी तो उनमें से वृद्ध और गम्भीर मरीजों का इलाज करने की बजाय उन्हें गोली से उड़ा दिया जाता था और इस बात की भनक तक उनके पड़ोसियों को नहीं लगती थी। हाल ही में चीन के कोरोना एक्टिविस्ट शी टिंग वांग ने सोशल मीडिया पर दावा किया है कि चीन-रूस सीमा पर चीनी सेना कोरोना पीड़ितों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर गोली से उड़ा रही है। साथ ही कोरोना मरीजों को पकड़वाने में मदद करने वालों को ईनाम के रूप में मोटी रकम भी दी जा रही है। यहाँ तक कि कोरोना महामारी का सच उजागर करने वाले अनेक एक्टिविस्ट तथा पत्रकारों पर भी चीनी प्रशासन कहर ढा रहा है।

 

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फरवरी माह में कोरोना संक्रमण पर काबू पाने की जल्दी में चीन जहाँ एक ओर अपने नागरिकों के साथ दानवता का खेल खेल रहा था वहीँ संक्रमण से बचाव वाले मेडिकल उपकरणों का धड़ाधड़ निर्माण भी कर रहा था ताकि आवश्यकता पड़ने पर उन्हें विभिन्न देशों को ऊँचे दामों पर बेचा जा सके। इससे यह सिद्ध होता है कि चीन को यह बात भलीभांति पता थी कि कोरोना संक्रमण एक दिन वैश्विक महामारी बनेगा और तब विश्व के प्रत्येक देश को पीपीई किट समेत विभिन्न मेडिकल उपकरणों कि महती आवश्यकता पड़ेगी। हुआ भी यही, आज भारत सहित विश्व के सभी देश चीन से मेडिकल उपकरण खरीद रहे हैं वह भी मंहगे दामों पर। पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार चीन महंगे दामों में घटिया सामग्री बेच रहा है। पाकिस्तान द्वारा चीन से ख़रीदे गये मास्क अंडरगारमेंट्स बनाने वाले कपड़ों के बने पाये गये हैं जो कोरोना वायरस से बचाने में पूर्णतया अक्षम हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि चीन का इरादा कोरोना महामारी को विश्वव्यापी बनाते हुए उससे सम्बन्धित उपकरण बेच कर अपनी अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ करना था जिसमें आज वह पूरी तरह से सफल दिखायी दे रहा है। परन्तु उसकी इस कलुषित चाल की जद में उसके भी नागरिक आ जायेंगे, इसका उसे जरा भी बोध नहीं रहा होगा।


अपनी करतूतों को छुपाने के लिए चीन सरकार ने कोरोना के ऑरिजिन को लेकर होने वाले शोध और उसके प्रकाशन पर भी रोक लगा दी है। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार चीनी शोधार्थी जनवरी के अन्त से ही मेडिकल जर्नल में नोवेल कोरोना वायरस पर अपने अध्ययन प्रकाशित कर रहे हैं। हॉन्कॉन्ग के एक मेडिकल एक्सपर्ट के अनुसार उनकी क्लीनिकल एनालिसिस के प्रकाशन में फरवरी तक ऐसा कोई भी प्रतिबन्ध नहीं लगा था। नाम गोपनीय रखने की शर्त पर चीनी शोधार्थियों ने बताया कि ऐसे प्रतिबन्ध लगाकर उनकी सरकार यह दिखाना चाहती है कि वायरस का जन्म चीन में नहीं हुआ था। दरअसल चीन इस वायरस का ठीकरा अमेरिका के सर पर फोड़ना चाहता है। चीन का दावा है कि वायरस का ऑरिजिन अमेरिका है और उसकी मिलिटरी यह वायरस चीन में लेकर आयी थी जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति इसे चीनी वायरस बता रहे हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी द्वारा नवम्बर माह में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका के अलग-अलग एयरपोर्ट पर पकड़े गये चीन के दो वैज्ञानिकों के पास से सार्स और मर्स जैसे वायरस के स्ट्रेन जब्त किये गये थे। इस बीच वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरालाजी का नाम चर्चा में आया। जहाँ डेढ़ हजार से भी अधिक खतरनाक वायरस रिसर्च के लिए रखे गये हैं। ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस इसी लैब से किसी तरह बाहर निकला और आज उसने दुनिया के 21 लाख से भी अधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। हालांकि इंस्टिट्यूट की निदेशक शी जेंगली इस बात से स्पष्ट इंकार करती हैं। उन्होंने फरवरी माह में एक प्रेस-वार्ता के जरिये कहा था कि वह अपने जीवन की सौगन्ध खाकर कहती हैं कि कोरोना त्रासदी से लैब का कोई सम्बन्ध नहीं है। कुछ एक्सपर्ट यह मानते हैं कि यह एक बायलॉजिकल हथियार था जिसे वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरालाजी में तैयार किया जा रहा था जिसने किसी तरह से लीक होकर चीनी नागरिकों को ही अपना शिकार बना लिया और अब पूरी दुनिया उसकी चपेट में आ गयी है।


-डॉ. दीपकुमार शुक्ल

(स्वतन्त्र टिप्पणीकार)


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