दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या दस लाख के पार कर गई, 51 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। 780 करोड़ की आबादी वाली दुनिया में ये आंकड़ा कितना बड़ा है। दुनिया की एक तिहाई आबादी लाकडाउन में है। लेकिन जहां से ये महामारी शुरू हुई वो देश रिकवरी मोड में है, काम धंधा शुरू हो गया है और वायरस का केंद्र रहे वुहान और इसका जंगली जानवरों और जीव-जंतुओं वाला हन्नान सी-फूड मार्केट भी खुल गया। ऐसे में बहुत सारे सवाल हैं, जैसे कि कोरोना ने चीन का मैन्युफैक्चरिंग किंग वाला तमगा छीन लिया और अब लोग चीनी सामान से किनारा करने लगेंगे? क्या चीन ने कोरोना तैयार किया है? क्या यूरोप और अमेरिका की इकोनामी को ढहाने के लिए चीन ने कोरोना को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है? भारत के लोगों के पास कैसे कोरोना से लड़ने के लिए है यूनिक ताकत इसकी भी बात करेंगे। साथ ही हम देश दुनिया में चीन के मेक ओवर वाली खबरों और मीडिया में चलाए जा रहे एजेंडे को भी एक्सपोज करेंगे।
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मेड इन चाइना वायरस
एक देश की नासमझी कैसे इस वक्त पूरी दुनिया भुगत रही है, ये कोरोना वायरस के संकट ने बता दिया है। आपने मेड इन चाइना प्रोडक्ट्स के बारे में बहुत सुना होगा और इसका इस्तेमाल भी किया होगा। मेड इन चाइना वायरस के बारे में अब पहली बार आपको पता चल रहा है। कोरोना वायरस को मेड इन चाइना वायरस या चीनी वायरस कहने पर चीन को बुरा जरूर लग जाता है। लेकिन सच्चाई यही है कि दुनिया में जो ये संकट बना है वो मेड इन चाना वायरस की वजह से ही है।
चीन के बड़े झूठ
· चीन ने हफ्तों तक इस वायरस की अनदेखी की।
· फिर वायरस के बारे में बताने वालों का मुंह बंद किया।
· चीन ने कोरोना संक्रमित मरीजों के टेस्ट सैंपल नष्ट कर दिए।
· दुनिया को वास्तविक हालात के बारे में लगातार झूठ बोला।
· कोरोना वायरस का पहला केस चीन में 17 नवंबर को ही आ गया था। लेकिन चीन के अधिकारियों ने दिसंबर के अंत तक इस मामले को छुपाए रखा।
· पहली बार चेतावनी देने वाले 29 वर्षीय डॉक्टर ली बेनिलियांग के आवाज को दबा दिया। बाद में बेनिलियांग की कोरोना से मौत हो गई।
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चीन ने जानबूझकर कोरोना तो नहीं फैलाया?
चीन ने जानबूझकर कोरोना तो नहीं फैलाया, ताकी पूरी दुनिया इससे परेशान हो जाए और फिर चीन अपनी फैक्ट्रियों में कोरोना से बचने की चीजें बनाए और दुनिया पर कब्जा कर ले। ऐसी कई थ्योरी चल रही हैं।
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चीन और उसके जैविक हथियार
चीन पूरी दुनिया में अपने खतरनाक वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए जाना जाता है और इसलिए कोरोना वायरस को जैविक हथियार के तौर पर लैब में निर्मित करने की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। इजरायल के एक जैविक हथियार विश्लेषक डैनी सोहम से बातचीत के आधार पर वॉशिंगटन पोस्ट ने एक हैरान करने वाला दावा किया था। वॉशिंगटन पोस्ट में दावा किया, 'वुहान शहर में जैविक हथियार तैयार करने की गोपनीय परियोजना है। जहां इजरायली सेना के पूर्व खुफिया अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल डैनी सोहम ने चीन के जैविक हथियार को लेकर काफी काम किया है। दावा है कि चीन के जैविक हथियार का केंद्र है वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी। जहां मारक विषाणुओं पर काफी काम होता है। ये तमाम प्रयोगशाला जनसंहार के हथियार विकसित करने का काम करती है। यह लैब नवंबर 2018 में शुरू हुई थी और इसे बेहद गोपनीय श्रेणी में रखा गया था।
कोरोना का वुहान कनेक्शन
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक सात मिनट का वीडियो काफी वायरल हो रहा है जिसमें, चीन के वायरॉलजिस्ट पहाड़ों पर जंगली चमगादड़ पकड़ते दिख रहे हैं। वुहान जहां से कोरोना वायरस के फैलने की बात हो रही है वहां के डिसीज कंट्रोल अथॉरिटी के रिसर्चर तियान जुनहुआ को इस वीडियो में देखा जा सकता है। तियान हुवेई प्रांत की कई गुफाओं में जाते दिखते हैं और उड़ने वाले जानवरों को पकड़ते दिख रहे हैं। इस डॉक्युमेंट्री ने उन अटकलों को हवा दी है जिसमें कहा गया था कि यह वायरस मानवजनित है। ये वीडियो चाइना साइंस कम्युनिकेशन वेबसाइट द्वारा प्रॉड्यूस किया गया है।
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भारतीयों में है यूनिक ताकत
इस वक्त दुनिया के साथ-साथ भारत भी कोरोना से लड़ने में लगा है। लेकिन विश्व और मानवता के लिए सबसे बड़े संकट काल के महाभारत में भारत के लोगों के पास युद्ध की काबिलियत बेहद ज्यादा है। यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि राहत पहुंचाने वाला यह तथ्य वैज्ञानिकों के ताजा शोध में उजागर हुआ है। शोधकर्ताओं का दावा है कि भारतीयों में एक विशिष्ट और विरला माइक्रो आरएनए मौजूद है। यह वंशानुगत आरएनए (राइबो न्यूक्लिक एसिड) अन्य देशों के लोगों में नहीं पाया जाता है। इसमें कोरोना वायरस की तीव्रता को मंद करने की ताकत है। दिलचस्प बात यह कि मौजूदा कोरोना वायरस भी आरएनए वायरस है।
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किसने की है खोज
अब चूंकि इस खोज ने सारी दुनिया को हैरत में डाल दिया तो आखिर इसकी खोज किसने की ये सवाल उठना मौजूं है। दरअसल, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियिरंग एंड बायो टेक्नोलॉजी दिल्ली की टीम की ओर से कोरोना सार्स-टू पर यह शोध किया गया। इसमें डॉ. दिनेश गुप्ता के नेतृत्व में चार एक्सपर्ट ने पांच देशों के कोरोना मरीजों पर स्टडी की। 21 मार्च को ऑनलाइन जनरल में प्रकाशित रिसर्च पेपर संकट की इस घड़ी में भारतीयों के लिए उम्मीद जगा रहा है। केजीएमयू की डॉ. शीतल वर्मा के अनुसार इटली, चीन, भारत, अमेरिका और नेपाल के लोगों पर ये रिसर्च किया। एचएसए-एमआइआर-27-बी नामक यह माइक्रो आरएनए अन्य देशों के मरीजों में नहीं मिला। शोध में पता चला कि भारतीयों में मौजूद ये विशेष माइक्रो आरएनए उस वायरस को म्यूटेंट कर देता है जिससे वायरस की क्षमता दूसरे देशों के लोगों की अपेक्षा कम हो जाती है।
दुनिया ने माना चीन को दोषी
दुनिया के तमाम देशों में कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि सात औद्योगिक शक्तियों के समूह के विदेश मंत्रियों ने इस बात पर सहमति व्यक्त कि चीन कोरोना वायरस महामारी के बारे में एक ‘‘गलत सूचना’’ अभियान चला रहा है। जी-7 में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके, यूएस जैसे सात देश और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। कोरोना से लड़ने के लिए इन्होंने जो प्रण लिए हैं, उसमें चीन का कहीं ज़िक्र तक नहीं है और चीन को पूरी तरह नकार दिया गया है। इसके उत्तर में चीन ने भी जी-7 के इन कदमों को निराशाजनक बताया है।
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बर्बाद हुई चीन की अर्थव्यवस्था
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड एनिशिएटिव प्रॉजेक्ट ( BRI ) को दुनिया के बड़े हिस्से में वर्चस्व के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन कोरोना वायरस ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को जमीन पर ला दिया है। इस खर्चीले प्रॉजेक्ट के मंद पडऩे से चीन के अरबों डॉलर डूबने को जोखिम पैदा हो गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण से चीन की अर्थव्यवस्था अब पस्त नजर आने लगी है। इस बात की पुष्टि चीन के मैन्युफैक्चरिंग आंकड़े करते हैं। दरअसल, फरवरी में चीन में मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गईं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चीन का खरीद प्रबंध सूचकांक (पीएमआई) फरवरी में गिरकर 35.7 पर आ गया। इस सूचकांक का 50 से नीचे रहना यह बताता है कि कारखाना उत्पादन घट रहा है।
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कोरोना वायरस और इसको लेकर बोले गए झूठ की वजह से संदेहास्पद चीन से दुनिया की दूरी की ओर बढ़ते कदमों के बीच भारत के पास मैन्युफैक्चरिंग ताकत बनने का मौका है। जापान और चीन पहले यह करिश्मा कर चुके हैं। अब इसको दोहराने की बारी एशिया की तीसरी बड़ी इकॉनमी भारत की है।
मेक इन इंडिया
मल्टीनेशनल कंपनियां अपनी सप्लाई चेन का रिस्क कम करने के लिए भी चीन के बजाय भारत जैसे ठिकानों की ओर रूख कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में मेक इन इंडिया को लॉन्च करते वक्त ग्लोबल कंपनियों से कहा था, ‘आइए, भारत में सामान बनाइए। आप इसे कहीं भी बेचिए लेकिन बनाइए हमारे यहां।’ अगर उनका यह ख्वाब पूरा होता है तो देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और ग्रोथ को तो पंख लगेंगे ही, इससे जॉबलेस ग्रोथ की शिकायत भी दूर हो सकती है।
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महामारी फैलाने के बाद इमेज मेकओवर प्लान
पिछले छह सालों में चीन ने दुनिया के मीडिया को इन्फ्लूयेंस करने में 6 बिलियन डालर खर्च किए हैं, जिसके तहत तमाम मीडिया संस्थानों में मीडिया के शेयर्स खरीदें गए हैं और संस्थानों को विज्ञापन दी है और कुछ पत्रकारों को पैसे दिए ताकि वो चीन के नेरेटिव को आगे बढ़ाते रहे।
चीन की इमेज बिल्डिंग का प्लान
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दुनिया के तमाम देशों और भारत में भी चीन ने पिछले कुछ वर्षों में 6 बिलियन डालर खर्च किए हैं। कैनबरा में स्थित एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन, चीन नीति केंद्र के निदेशक, एडम नी ने चीन के प्रोपोगेंडा यूनिट और नैरेटिव कैंपेन को लेकर बड़ा खुलाया किया है। उन्होंने बताया कि कैसे चीन ने शुरुआत में वायरस को लेकर जानकारी छुपाई। चीन की काम्यूनिस्ट पार्टी अब वायरस के बारे में अपने खुद के प्रोपोगेंडा को प्लांट करने में लगा है और इस वायरस पर काबू पाने की अपनी उपल्ब्धियों को गिनाने के साथ वायरस की उत्पत्ति यूएस में होने जैसे नैरेटिव सेट करने की कोशिश में है।
तो आपको भी देश-दुनिया में चीन के हालात पर काबू पाने की हीरो वाली कहानी या फिर अन्य देशों को मदद पहुंचाने वाले मसीहा टाइप की खबरें देखने को मिले तो आप आसानी से इसे आइडेंटिफाई कर सकते हैं कि इसे प्लांट किया गया है और चीन को सुपर पावर और शक्तिशाली मुल्क होने के तौर पर उभारने और उसकी करतूतों पर पर्दा डालने के इरादे से पैसों के दम पर दिखाया गया एजेंडा मात्र है। तो खबरें पढ़े और देखें लेकिन किसी एजेंडा का शिकार होने से बचें। कुल मिलाकर, अनिश्चितता से भरे इस समय में आपको यही कह सकते हैं कि थोड़ा रूकिए। जिन बातों की आप कहीं से भी पुष्टि नहीं कर सकते हैं, इसे शेयर करने से पहले ठहरिए। तब तक रूकिए, जब तक कि आपके भरोसेमंद माध्यम के जरिए सच आपके हाथों के क्लिक तक न पहुंच जाए।