इन दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर खूब वायरल हो रही है। इस तस्वीर में नजर आने वाले शख्स विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रॉस एडहानॉम हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों WHO से नाराज चल रहे हैं। खुलकर उन्होंने कोरोना के मामलों में विश्व स्वास्थ्य संगठन की लापरवाही का आरोप लगाते हुए संगठन की फंडिग रोकने जैसी बात भी कही है। कोरोना से लड़ने में WHO की भूमिका पर ट्रंप के अलावा और कई देश भी सवाल उठा रहे हैं। जिसके बाद से लगातार ये तस्वीर वायरल हो रही है जिसके जरिए ये बताने की कोशिश की गई है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख की आंखों पर चीन का चश्मा चढ़ा है और इस महामारी के 120 से भी ज्यादा देशों में फैलने के लिए चीन और डब्ल्यूएचओ की मिलीभगत जिम्मेदार है।
सबसे पहले आपको 5 लाइनों में बताते हैं
WHO कौन है और इसके अहम काम क्या हैं?
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चीन और WHO चीफ के रिश्ते
जुलाई 2017 में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक का पद संभालने वाले टेड्रोस एडहानॉम इथोपिया के नागरिक हैं। उनको डब्ल्यूएचओ का चीफ बनाने में चीन ने ही मदद की थी। वह चीन ही था जिसने टेड्रोस के कैंपेन को ना सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि उसे अपने मत के अलावा अपने सहयोगी देशों के भी मत दिलवाएं। कुल मिलाकर अगर यह कहें तो गलत नहीं होगा की चीन की मेहरबानी से ही ट्रेड्रोस डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल बने थे|
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कोरोना पर चीन और WHO की मिलीभगत
डब्ल्यूएचओ पर शुरुआत से ही यह आरोप लगे हैं कि वह कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर चीन को क्लीन चिट देता रहा है। चीन से उसने कभी कोई सवाल नहीं पूछा जिसकी वजह से पूरी दुनिया कोरोना का खतरा सही ढंग से समझ ही नहीं सकी|
संक्रमण के शुरुआती मामले दिसंबर में आए, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने कोई जांच नहीं करवाई।
14 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने कहा कि इस वायरस का इंसान से इंसान में संक्रमण होने के कोई सबूत नहीं हैं।
23 जनवरी को डब्ल्यूएचओ की आपात बैठक हुई थी जिसके बाद भी यात्रा पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश नहीं की गई। यही कहा जाता रहा कि सिर्फ यात्रियों की स्क्रीनिंग ही काफी है। यानी अगर डब्ल्यूएचओ उस दिन यह निर्णय ले लेता कि चीन की यात्रा वाली फ्लाइट बंद कर दी जाए तो दुनिया बच सकती थी
23 जनवरी के बाद से चीन में तो मामले कम हुए लेकिन बाकी दुनिया को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया।
डब्ल्यूएचओ ने 24 जनवरी को इस वायरस पर ग्लोबल इमरजेंसी की घोषणा की लेकिन यात्राओं पर प्रतिबंध की कोई सिफारिश नहीं की।
27 जनवरी को वायरस 13 देशों में फैल चुका था लेकिन डब्ल्यूएचओ का पूरा फोकस सिर्फ चीन पर था और वो इसे महामारी मानने से इनकार करता रहा।
27 जनवरी को वुहान के मेयर ने इंटरव्यू में कहा था कि कोरोना से जुड़ी जानकारी बताने में देरी नहीं करनी चाहिए। यह वक्त था जब खुद चीन के दौरे पर गए और वहां से लड़ाई में चीन के राष्ट्रपति के तारीफों के पुल बांधे नजर आए। 30 जनवरी को कोरोना को महामारी घोषित करने के बजाय ग्लोबल इमरजेसी की घोषणा की।
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डब्ल्यूएचओ और आईसीएमआर
कोरोना वायरस से लड़ने में डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर ट्रंप के अलावा भी कई लोग सवाल उठा रहे हैं। भारत में डब्ल्यूएचओ की ओर से दिए गए कई सुझावों से सरकार ने किनारा कर लिया और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की तरफ झुकाव रखा।
30 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि चीन की यात्रा पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश नहीं करेगा। भारत ने फरवरी के शुरूआत में ही अपने नागरिकों को चीन की यात्रा न करने की सलाह दे दी थी।
16 मार्च को डब्ल्यूएचओ चीफ ने कहा कोरोना से लड़ने का मंत्र टेस्ट, टेस्ट, और टेस्ट है।
21 मार्च को आईसीएमआर के डायरेक्टर ने कहा कि बिना देखे सुने टेस्ट नहीं किए जाएंगे। भारत आइसोलेशन, आइसोशन और आइसोलेशन के मंत्र के सहारे ही आगे बढ़ेगा।
डब्ल्यूएचओ ने बीमारी के लक्षण वालों, स्वास्थ्य कर्मी को ही मास्क लगाने की हिदायत दी थी।
भारत सरकार ने बाहर निकलने पर मास्क के इस्तेमाल को लेकर एडवाइजरी जारी कर दी।
WHO ने कोरोना से लड़ने के लिए किसी विशेष दवा की सिफारिश नहीं की।
भारत ने प्रयोग के तौर पर एंटीवायरल हाइड्रोक्लोरिक्वीन इस्तेमाल करने को कहा। इस दवा के प्रयोग के सफल होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के बड़े देश भारत से दवा मांग रहे हैं और निर्यात की मंजूरी पर अमेरिका ब्राजील जैसे देश भारत और पीएम मोदी के गुण गा रहे हैं।
कुल मिलाकर कोरोना वायरस से लड़ाई में डब्ल्यूएचओ ने लगातार एक के बाद एक गलत फैसले लिए जिससे चीन का तो बचाव हो गया लेकिन इससे दुनिया का बहुत नुकसान हो गया।