'शिव तांडव स्तोत्र' के पाठ से लाभ और करने का सही समय

By विंध्यवासिनी सिंह | Dec 21, 2020

यह तो हम सभी जानते हैं कि राक्षसों का राजा रावण तमाम दुर्गुणों और बुराइयों का भी राजा था। वह अत्यंत आसुरी प्रवृत्ति का था और बेहद घमंडी भी था। रावण का मानना था कि उसके समान शक्तिशाली तीनों लोकों में कोई नहीं है और यही वजह थी कि रावण के दुराचार और अत्याचार दिन-रात बढ़ते चले गए। 

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ये तो हो गए रावण के दुर्गुण, लेकिन शायद कम ही लोग यह बात जानते होंगे कि दुराचारी होने के साथ ही रावण प्रकांड पंडित, संस्कृत का महान ज्ञाता और चारों वेदों को जानने वाला था। आयुर्वेद में उसे महारत हासिल थी, तथा संगीत में भी वह उतना ही निपुण था। वह एक सुंदर वास्तुकार, शिल्पकार होने के साथ ही बेहद सक्षम राजनीतिज्ञ भी माना जाता था। इन सभी के अलावा रावण को भगवान शिव के परम भक्त के रूप में भी जाना जाता है। लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक स्तोत्र की रचना कर डाली, जिसे 'शिव तांडव स्तोत्र' के नाम से जाना जाता है। 


इस 'शिव तांडव स्तोत्र' की रचना के पीछे बेहद दिलचस्प कथा है जिसे आज हम बताएंगे...


कैसे रचा 'शिव तांडव स्तोत्र'?

बात तब की है, जब राक्षसों का राजा दशानन अपने सौतेले भाई भगवान कुबेर की नगरी लंका को हासिल करने के बाद उनके पुष्पक विमान को भी छीन चुका था और अपनी शक्ति के नशे में चूर होकर वह पुष्पक विमान पर अक्सर विहार के लिए निकलता था। 


पुष्पक विमान की खासियत यह थी कि वह 'मन की गति' से चलता था और उस पर सवार व्यक्ति की मनःस्थिति को पुष्पक विमान अच्छे से समझता था। एक बार रावण पुष्पक विमान पर सवार होकर कैलाश पर्वत की तरफ जा रहा था लेकिन कैलाश पर्वत के समीप पहुंचते ही पुष्पक विमान की गति बेहद कम हो गई जिसे देखकर रावण को बेहद आश्चर्य हुआ। रावण सोच में पड़ गया कि यह अद्भुत विमान इस पर्वत के उस पार क्यों नहीं जा रहा है। 


अपनी चिंता को दूर करने के लिए वह इधर-उधर देखने लगा, तभी उसे भगवान शिव के वाहन नंदी दिखाई दिए। रावण ने नंदी से इसका कारण पूछा तो नंदी ने बताया कि यह 'कैलाश पर्वत' है, और यहां माता पार्वती भगवान शिव के साथ रहती हैं, जिसके कारण कोई भी अज्ञात वस्तु इस पर्वत के उस पार नहीं जा सकती। रावण को यह बात सुनकर बहुत क्रोध आया और अपनी ताकत के नशे में चूर रावण ने कैलाश पर्वत को ही उठा कर लंका ले जाने की सोची। 


रावण अपने 20 हाथों का प्रयोग कर कैलाश पर्वत को उठाने लग गया!


रावण की शक्ति के कारण कैलाश पर्वत हिलने लग गया और भगवान शिव, जो कि ध्यान में बैठे थे उनका ध्यान टूट गया। भगवान शिव ने अपने आसन पर बैठे -बैठे अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया जिसके कारण कैलाश पर्वत नीचे आने लगा और रावण के हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दब गए। कैलाश पर्वत के भार से मुक्त होने के लिए रावण ने अपनी सारी शक्ति लगा दी लेकिन वह सफल ना हो सका।

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इस कृत्य के बाद रावण जोर जोर से चिल्लाने लगा और भगवान शिव से क्षमा मांगने लगा। 


लेकिन भगवान शिव ने उसकी एक बात नहीं सुनी और ऐसा करते हुए काफी समय बीत गया। तब रावण के शुभचिंतकों ने उसे यह परामर्श दिया कि भगवान शंकर को प्रसन्न किए बगैर इस कष्ट से मुक्ति नहीं पाएगा और पर्वत के नीचे उसके हाथ जो बंधन में बंधे हुए हैं, वह कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे। तब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए संस्कृत के कुछ स्त्रोत बोलने शुरू किये। ऐसा करते हुए रावण को 1000 से भी ज्यादा साल बीत गए, तब जाकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और रावण को उसके दंड से मुक्त किया, तथा पर्वत के नीचे दबी उसकी भुजाएं भी मुक्त हो गयीं। रावण द्वारा बोले गए संस्कृत के स्त्रोत 'शिव तांडव स्त्रोत' के रूप में मशहूर हो गए।


अगर वेदों की बात करें तो रावण ने जिन स्त्रोतों को गाया था वह 'सामवेद' में अंकित स्त्रोत थे, और रावण के बारे में सभी जानते हैं कि वह संस्कृत का प्रकांड विद्वान था। ऐसे में जिस रावण रचित 'शिव तांडव स्त्रोत' को हम जानते हैं वह पहले से ही सामवेद में रचा जा चुका था।


'शिव तांडव स्त्रोत' के पाठ से लाभ

भगवान शिव लेकर यह बात प्रचलित है कि उन्हें मनाना बेहद आसान है। आप जिस भी प्रकार, जिस भी व्यवस्था में भगवान शिव को सच्चे मन से याद करते हैं तो आप की भक्ति से वह बेहद जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे में अगर आप किसी कष्ट या किसी अप्रिय स्थिति में पड़े हैं, तो आप 'शिव तांडव स्त्रोत' का पाठ कर सकते हैं। 

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इस स्त्रोत में इतनी शक्ति है कि आपके सभी कष्ट भगवान शिव हर लेते हैं। कहा जाता है कि 'शिव तांडव स्त्रोत' का पाठ करने वाला कभी भी निर्धन नहीं रहता है तथा उसकी आर्थिक समस्याएं बेहद जल्दी संभल जाती हैं। इसके अलावा जो लोग साधना करते हैं, चाहे वह नृत्य, चित्रकला, योग, समाज, लेखन आदि से ही जुड़े क्यों न हों, वो अगर शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करते हैं तो उन्हें साधना में सिद्धि प्राप्त होती है। सनातन धर्म में यह भी कहा जाता है कि अगर आप 'शिव तांडव स्त्रोत' का पाठ करते हैं तो किसी भी मनोकामना को पूर्ण होने में देर नहीं लगती है। इसके साथ ही माँ लक्ष्मी हमेशा आपके साथ बनी रहती हैं। अगर आप पितृदोष और कालसर्प दोष से पीड़ित हैं, तो ऐसे में आपको नियमित तौर पर शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करना चाहिए, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा पाठ है जिसके द्वारा आप अपने कष्टों को दूर कर सकते हैं।


कब और कैसे करें 'शिव तांडव स्त्रोत' का पाठ

संपूर्ण रूप से संस्कृत में रचित शिव तांडव स्त्रोत को पढ़ना इतना आसान नहीं है। इसके शब्द और बोल बेहद कठिन हैं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि आप भक्ति और सच्चे मन से इस स्त्रोत को पढ़ना चाहें तो पढ़ सकते हैं। इस स्त्रोत को लेकर कहा जाता है कि अगर आप इसे गायन के साथ पढ़ते हैं तभी इसका मनोवांछित फल आपको मिलता है। आप इसे गाकर ही पढ़ें, क्योंकि इसके उतार-चढ़ाव में अद्भुत बैलेंस है, जिसे गाकर पढ़ने में ही आनंद आता है। 


रावण ने भी जब 'शिव तांडव स्त्रोत' गाया था, तो कहा जाता है कि उसने अपने एक सर को काटकर वीणा बनाया था और उस वीणा को बजाते हुए जोर-जोर से शिव तांडव स्त्रोत को गाया था।


कब करें 'शिव तांडव स्त्रोत' का पाठ?

शिव तांडव स्त्रोत की शुरुआत करने के लिए आपको प्रदोष काल यानी कि प्रातः काल ही उठना होगा और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान शिव के शिवलिंग को अच्छे से दूध और जल से स्नान कराना होगा। इसके पश्चात तमाम पूजन-सामग्रियों से भगवान शंकर की पूजा करनी होगी। इसके बाद आपको शिव तांडव स्त्रोत की शुरुआत करनी होगी। शिव तांडव स्रोत की समाप्ति के उपरांत सच्चे मन से भगवान से आशीर्वाद मांगें और अपनी मनोकामना उनके सामने प्रकट करें तो आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।


- विंध्यवासिनी सिंह

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