किसान आंदोलन के पीछे कौन? रिहाना और ग्रेटा के समर्थन के बाद तस्वीरे हुईं साफ

By अंकित सिंह | Feb 06, 2021

पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन की दिशा में काम करने वाली ग्रेटा थनबर्ग, अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अनेक लोगों ने केन्द्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शनों के प्रति समर्थन व्यक्त किया है। दरअसल अंतरराष्ट्रीय पॉप गायिका रिहाना ने एक खबर साझा की थी जिसमें कई इलाकों में इंटरनेट सेवा बंद करके किसानों के खिलाफ केन्द्र की कार्रवाई का जिक्र किया गया था, इसके बाद लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं। थनबर्ग ने मंगलवार को ट्वीट किया कि हम भारत में किसानों के आंदोलन के प्रति एकजुट हैं। इस बीच भारत ने किसानों के प्रदर्शन पर विदेशी हस्तियों एवं अन्य लोगों की टिप्पणियों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा कि देश के किसानों के एक छोटे वर्ग को कृषि सुधार को लेकर कुछ आशंकाएं हैं एवं प्रदर्शन को लेकर टिप्पणी करने से पहले मुद्दे की अच्छी होने की जरूरत है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रदर्शन के बारे में जल्दबाजी में टिप्पणी से पहले तथ्यों की जांच-परख की जानी चाहिए और सोशल मीडिया पर हैशटैग तथा सनसनीखेज टिप्पणियों की ललक न तो सही है और न ही जिम्मेदाराना है।


इन सबके बीच प्रभासाक्षी ने अपने साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में किसान आंदोलन को मिल रहे अंतरराष्ट्रीय समर्थन पर ही चर्चा की। प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने साफ तौर पर कहा कि अब यह स्पष्ट हो गया है कि किसान आंदोलन किसके इशारे पर चलाया जा रहा है। उन्होंने एक बार फिर से दोहराया कि अब किसान आंदोलन किसानों का आंदोलन नहीं रह गया है बल्कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने का एक नया तरीका बन गया है। संपादक ने साफ तौर पर कहा कि हमारे मामलों में दखल देने का किसी भी विदेशी नागरिकों को अधिकार नहीं है। हमारा देश अपनी समस्याओं से निपटने में पूरी तरह से सक्षम है। हम फिलहाल अर्थव्यवस्था के हिसाब से वैश्विक रूप से उभर रहे हैं। यही कारण है कि कुछ भारत विरोधी ताकतें हमारे देश की छवि खराब करने में जुटी हुई हैं।

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रिहाना, थनबर्ग बनाम मंत्री और बॉलीवुड हस्ती


किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने पर भारत ने बुधवार को पॉप गायिका रिहाना और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग जैसी वैश्विक सेलिब्रिटी की आलोचना की। वहीं, इस विषय पर छिड़ी ध्रुवीकृत अंतरराष्ट्रीय बहस में सरकार के रुख का बॉलीवुड हस्तियों, क्रिकेट खिलाड़ियों और शीर्ष मंत्रियों ने समर्थन किया। केंद्र के नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए किसानों के दो महीने से जारी प्रदर्शनों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ मशहूर हस्तियों द्वारा समर्थन किये जाने के बाद विदेश मंत्रालय ने बुधवार को तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मंत्रालय ने कहा कि प्रदर्शन के बारे में जल्दबाजी में टिप्पणी करने से पहले तथ्यों की जांच-परख की जानी चाहिए और सोशल मीडिया पर हैशटैग तथा सनसनीखेज टिप्पणियों की ललक न तो सही है और न ही जिम्मेदाराना है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि कुछ निहित स्वार्थी समूह प्रदर्शनों पर अपना एजेंडा थोपने का प्रयास कर रहे हैं और संसद में पूरी चर्चा के बाद पारित कृषि सुधारों के बारे में देश के कुछ हिस्सों में किसानों के बहुत ही छोटे वर्ग को कुछ आपत्तियां हैं। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘हम अनुरोध करेंगे कि ऐसे मामलों में जल्दबाजी में टिप्पणी करने से पहले तथ्यों की पड़ताल की जाए और मुद्दों पर यथोचित समझ विकसित की जाए।’’ दरअसल, रिहाना, स्वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, अमेरिकी अभिनेत्री अमांडा केरनी, अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस सहित कई मशहूर हस्तियों ने भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन के बारे में ट्वीट किये हैं। उल्लेखनीय है कि रिहाना ने किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए ट्वीट किया था, हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं। 


रिहाना के बाद स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने कहा, आपकी मदद के लिये कुछ चीजें। थनबर्ग ने अपने ट्वीट में कहा कि किस तरह प्रदर्शन का समर्थन किया जाए। उन्होंने आंदोलन के समर्थन में अधिक से अधिक ट्वीट करने और भारतीय दूतावासों के बाहर प्रदर्शन करने की अपील की। फिल्म द हंगरी टाइड के लेखक अमिताव घोष ने थनबर्ग के रुख के लिये उनका आभार व्यक्त किया। इसके अलावा अमेरिकी अभिनेत्री अमांडा सेरनी, अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस, सेरेन्डिपिटी स्टार कुसेक ने भी किसान आंदोलन के बारे में टिप्पणी की है। कुसेक ने यूगांडा की जलवायु कार्यकर्ता वेनेसा नाकाते के ट्वीट को रिट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा था,‘‘ हमें भारत में हो रहे किसानों के प्रदर्शनों पर आवाज उठानी चाहिए।’’ वहीं, पॉर्न फिल्म स्टार मिया खलीफा ने ट्वीट किया,“मानवाधिकार उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने नई दिल्ली के आसपास इंटनेट बंद कर दिया है। किसान आंदोलन।” इस विषय पर आई विदेश मंत्रालय की कड़ी प्रतिक्रिया का विभिन्न भारतीय हस्तियों ने समर्थन किया है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि कोई भी दुष्प्रचार देश की एकता को डिगा नहीं सकता। शाह ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘कोई भी दुष्प्रचार भारत की एकता को डिगा नहीं सकता है ! कोई भी दुष्प्रचार भारत को नयी ऊंचाइयां छूने से रोक नहीं सकता है! दुष्प्रचार भारत के भाग्य का फैसला नहीं कर सकता, सिर्फ ‘प्रगति’ ही यह कार्य कर सकती है। भारत प्रगति करने के लिए एकजुट है और एकसाथ है।’’ 


अन्य केंद्रीय मंत्रियों--पीयूष गोयल, स्मृति ईरानी, धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण, हरदीप सिंह पुरी, वीके सिंह, रमेश पोखरियाल, जी किशन रेड्डी, किरन रिजीजू-- ने भी विदेशी हस्तियों की टिप्पणियों पर आपत्ति जतायी है। बॉलीवुड हस्तियों में अक्षय कुमार, कंगना रनौत, अजय देवगन और करण जौहर ने लोगों से झूठे प्रचार से बचने का आग्रह किया है। अजय देवगन ने ट्वीट कर लोगों से आग्रह किया कि वे भारत या भारतीय नीतियों के खिलाफ झूठे प्रचार से सावधान रहें। करण जौहर ने लिखा कि किसी को भी देश विभाजित नहीं करने देना चाहिए। सुनील शेट्टी ने ट्विटर पर विदेश मंत्रालय के बयान को साझा करते हुए कहा कि आधे अधूरे सच से ज्यादा खतरनाक कुछ नहीं है। गायक कैलाश खेर ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि देश को बदनाम करने के लिए भारत विरोधी किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। इसके अलावा पूर्वक्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और अनिल कुंबले ने भी आंदोलन को लेकर विदेशी हस्तियों की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। तेंदुलकर ने ट्वीट किया, भारत की संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता। विदेशी शक्तियां दर्शक तो बन सकती हैं लेकिन प्रतिभागी नहीं। भारतीय, भारत को जानते हैं और भारत के लिये फैसला लेना चाहिये। एक देश के तौर पर एकजुट रहें। कुंबले ने ट्वीट किया, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के नाते भारत अपने आंतरिक मुद्दों का सर्वमान्य समाधान निकालने में सक्षम है। पहले भी और अब भी। वहीं, अभिनेता गायक दिलजीत दोसांझ ने रिहाना के रुख समर्थन किया है, जबकि अभिनेता अली फजल ने कहा कि यह मामला अब आंतरिक मामला नहीं रह गया है। इस बीच, गायक जैजी बी ने किसानों के समर्थन में कोई ट्वीट नहीं करने के लिये अक्षय कुमार की आलोचना की है।

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किसान आंदोलन को वैश्विक हस्तियों के समर्थन पर भाजपा ने कहा, नहीं चाहिए विदेशी ताकतों से प्रमाणपत्र


सत्ताधारी भाजपा ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन का विदेश की कुछ हस्तियों द्वारा समर्थन किए जाने को बृहस्पतिवार को देश को अस्थिर करने का प्रयास बताया और कहा कि भारतीय लोकतंत्र को विदेशी ताकतों से प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर चल रहे किसानों के आंदोलन का जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग सहित कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने समर्थन किया है। पार्टी मुख्यालय में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक है लेकिन भारत के आंतरिक मामलों में विदेशियों का हस्तक्षेप करना गलत है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत के लोकतंत्र को किसी विदेशी ताकत के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। यदि वे देश को कमजोर करने की कोशिश करेंगे तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। इन विदेशी ताकतों के खिलाफ देश एकजुट है और भारत में विदेशी ताकतों को परास्त करने की ताकत है।’’ 


थनबर्ग और अन्य के ‘टूलकिट’ साझा करने के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज


दिल्ली पुलिस ने किसानों के प्रदर्शन के मामले में ‘‘खालिस्तानी समर्थक’’ समूह द्वारा तैयार और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग तथा अन्य द्वारा ट्विटर पर साझा किए गए ‘टूलकिट’ के संबंध में बृहस्पतिवार को एक प्राथमिकी दर्ज की। पुलिस ने आरोप लगाया कि इसका मकसद ‘‘भारत सरकार के खिलाफ ‘सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जंग छेड़ना था।’’ क्या थनबर्ग के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है, यह पूछे जाने पर दिल्ली पुलिस के विशेष पुलिस आयुक्त (अपराध) प्रवीर रंजन ने कहा कि मामले में किसी को भी नामजद नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि आपराधिक साजिश, राजद्रोह और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। प्रवीर रंजन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दिल्ली पुलिस को एक अकाउंट के जरिए दस्तावेज मिला है, जो एक ‘टूलकिट’ है। इसमें देश में सामाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने की बात कही गयी थी। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरंभिक छानबीन में इस दस्तावेज का जुड़ाव ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ नामक खालिस्तानी समर्थक समूह से होने का पता चला है।


आलोचना के बाद मिया खलीफा ने किसान प्रदर्शन का फिर किया समर्थन


किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करने के बाद आलोचनाओं का सामना कर रही वयस्क फिल्मों की पूर्व कलाकार मिया खलीफा ने शुक्रवार को कहा कि वह ‘‘अब भी किसानों के साथ खड़ी हैं।’’ पॉप गायिका रिहाना के किसानों के आंदोलन की ओर ध्यान आकर्षित करने वाले ट्वीट करने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय कई कलाकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने किसानों के साथ एकजुटता दिखाई थी। खलीफा ने भी इसी संबंध में ट्वीट किया था। विदेश मंत्रालय ने इसकी निंदा करते हुए कहा था कि कुछ निहित स्वार्थी समूह प्रदर्शनों पर अपना एजेंडा थोपने का प्रयास कर रहे हैं। 


तोमर ने कृषि कानूनों का बचाव किया, कांग्रेस सांसद ने इन कानूनों को ‘मौत का फरमान’ बताया


केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को फिर से कहा कि किसानों की भावनाओं को संतुष्ट करने के लिए नये कृषि कानूनों में संशोधन के सरकार के प्रस्ताव का यह मतलब नहीं है कि इन कानूनों में कोई खामी है। वहीं, दूसरी ओर विपक्षी दलों ने नए सिरे से कानून बनाने की मांग की और कांग्रेस के एक सांसद ने मौजूदा कानूनों को किसानों के लिए ‘मौत का फरमान’ बताया। किसान आंदोलन और नये कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग के भारी दबाव के बीच तोमर ने राज्यसभा में पूरी शिद्दत से इन कानूनों का बचाव करते हुए यह भी कहा कि प्रदर्शन कर रहे किसान संघों और उनका समर्थन करने वालों में से कोई भी इनमें (नये कृषि कानूनों में) खामियां निकालने में सक्षम नहीं रहा है। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले यह बताने को इच्छुक नहीं हैं कि इन ‘काले कानूनों’ में ‘काला’ क्या है, जिसमें सरकार सुधार करे। विचार विमर्श के बाद नए कानून बनाने की मांग कर रही विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन स्थलों की नयी किलेबंदी का भी मुद्दा उठाया। कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने नये कृषि कानूनों को किसानों के लिए ‘‘मौत का फरमान’’ बताया। उन्होंने प्रदर्शन स्थलों पर बनाए गए अवरोधकों की तुलना ‘बर्लिन की दीवार’ से की, जिसका निर्माण देश (जर्मनी) को बांटने के लिए किया गया था।

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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर ध्यन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए तोमर ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के उन दावों को खारिज कर दिया कि नए कानूनों को लेकर देशभर के किसान असंतुष्ट है और कहा कि सिर्फ एक राज्य के किसानों को गलत सूचना दी जा रही है और उन्हें भड़काया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तोमर के बयान की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने कानून के सभी पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब सोमवार को शून्यकाल में देंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने तोमर के बयान का वीडियो लिंक ट्विटर पर साझा किया और कहा कि वह सभी से इस भाषण को सुनने की विनम्र विनती करते हैं। तोमर ने कहा कि विपक्षी दलों ने सरकार की आलोचना की और यहां तक कि तीनों कानूनों को ‘काला कानून’ करार दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘दो महीने तक मैं किसान यूनियनों से पूछता रहा कि कानूनों में ‘काला’ क्या है, ताकि मैं उनमें सुधार कर सकूं। लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला।’’ दिल्ली की सीमाओं पर नवंबर के अंत से जारी किसान आंदोलन के मद्देनजर गतिरोध समाप्त करने के लिए तोमर सहित कुल तीन केन्द्रीय मंत्रियों ने किसान यूनियनों के नेताओं के साथ 11 दौर की बातचीत की है। तोमर ने सदन में अलग से लिखित जवाब में कहा कि तीन नए कृषि कानून बनाने से पहले केन्द्र ने ‘‘तय प्रक्रिया’’ का पालन किया है और कृषक समुदाय को विकल्प प्रदान करने के लिए कृषि उत्पादों के मुक्त/स्वतंत्र व्यापार को संभव बनाने के लिए राज्यों और किसानों के साथ सलाह-मशविरा किया था। कांग्रेस के के.सी. वेणुगोपाल और माकपा के बिनय विस्वम ने सरकार से कहा कि वह तीनों नए कृषि कानूनों को बनाए जाने से पहले किए गए विचार-विमर्श का रिकॉर्ड और किन लोगों/संगठनों/संघों/यूनियनों से सलाह ली गई, उनकी संख्या बताएं। 


वहीं, तोमर ने जून, 2020 में तीन अधिसूचनाएं जारी करने की ‘‘आपात स्थिति’’ के कारण गिनाते हुए कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान बाजारों और आपूर्ति श्रृंखला में गड़बड़ी होने के बाद ‘‘मंडियों के बाहर मुक्त प्रत्यक्ष विपणन को मंजूरी देना बेहद जरूरी था ताकि किसानों को अपने खेतों में से उचित मूल्य पर उत्पाद बेचने का विकल्प मिल जाए।’’ लोकसभा में आज लगातार चौथे दिन भी सदन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई। राज्यसभा में तीन दिन चली चर्चा में 25 राजनीतिक दलों के 50 सदस्यों ने हिस्सा लिया। भाजपा के 18, कांग्रेस के सात और अन्य विपक्षी दलों के 25 सदस्यों ने भी अपने विचार रखे। तोमर ने सदन में कहा कि संविदा पर खेती करने का केन्द्र सरकार का कानून किसानों को व्यापारी के साथ किए गए अनुबंध से बाहर निकलने का अधिकार भी देता है। हालांकि, मंत्री के बयान से कुछ टिप्पणियों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया। कांग्रेस, शिवसेना, शिअद, राकांपा, सपा, बसपा और वाम मोर्चा ने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग दोहरायी। विपक्ष के सदस्यों ने आंदोलनकारी किसानों को कथित रूप से ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ बताने और उनके आंदोलन को ‘‘बदनाम’’ करने को लेकर सरकार पर निशाना साधा। किसान आंदोलन स्थलों और आसपास के क्षेत्रों में इंटरनेट सेवा बंद किए जाने, बिजली पानी की आपूर्ति बाधित करने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा ने कहा, ‘‘हम दुनिया में इंटरनेट सेवा बंद करने वाली राजधानी बन गए हैं। तरीका बदलने का समय आ गया है, खास तौर से संसद सत्र के दौरान।’’ कृषि कानूनों का शिद्दत से बचाव करते हुए भाजपा सदस्य विनय वी. शहस्त्रबुद्धे ने कहा कि सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और उसने पिछले छह साल में इस दिशा में तमाम कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘सभी बार-बार कह रहे हैं कि सरकार को अकड़ छोड़ देनी चाहिए लेकिन अकड़ है कहां... हम बातचीत करने को तैयार हैं। हमने उन्हें (तीनों नए कानूनों) 18 महीने के लिए निलंबित करने की भी पेशकश की है। अगर हम इतना लचीलापन दिखा रहे हैं, तो वे (आंदोलनकारी किसान) नरमी क्यों नहीं दिखा रहे.... अगर कानूनों का समर्थन करने वाले भी धरना पर बैठ जाएं, क्या वे गृह युद्ध चाहते हैं।’’ 


भाजपा सदस्य के.जे. अल्फोंस ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह सरकार के खिलाफ अविश्वास और घृणा के बीच बो रही है। विपक्षी दल शिवसेना के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने आरोप लगाया कि सच बोलने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘विश्वासघाती’ और ‘देश विरोधी’ बता दिया जा रहा है और सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ राजद्राह का मामला दर्ज किया जा रहा है। राकांपा के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि जब सरकार किसानों के कल्याण के लिए काम करने की बात कर रही है तो, वह कृषि कानूनों को मौजूदा हालात से बचने और गहर विचार के लिए प्रवर समिति के पास क्यों नहीं भेज रही है। बसपा के सतीश चन्द्र मिश्रा ने कहा कि अगर सरकार कृषि कानूनों को 18 महीने तक निलंबित करने को तैयार है तो ऐसा क्या है जो उसे इन्हें वापस लेने से रोक रहा है। उन्होंने सरकार से अपना ‘अहम’ त्यागने और किसानों की मांग मानने का अनुरोध किया। शिअद के सुखदेव सिंह ढिंडसा ने कहा कि प्रधानमंत्री को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए और किसानों की मांग सुननी चाहिए। इसबीच, दिल्ली पुलिस ने गूगल और कुछ सोशल मीडिया साइटों से ‘टूलकिट’ बनाने वालों के संबंध में ईमेल आईडी, यूआरएल और कुछ सोसाल मीडिया अकाउंटों की जानकारी मांगी है।


- अंकित सिंह

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