By अभिनय आकाश | Nov 23, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों के मामले में केंद्र सरकार से कठिन सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि 2004 के वाद से मुख्य चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल कम क्यों हो रहे हैं? हमने यूपीए ही नहीं, हालिया एनडीए सरकार में भी यह देखा है। कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों में कानून का न होना परेशान करने वाला है। संविधान में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की वात तो है, लेकिन प्रक्रिया का अभाव है। संविधान सभा ने सोचा था कि संसद इस बारे में कानून बनाएगी, लेकिन 72 वर्षों में ऐसा नहीं हुआ। यह संविधान की 'चुप्पी' के शोषण की तरह है।
एजी ने जवाब दिया कि उन्होंने पहले ही दिखाया है कि कैसे एक परंपरा का पालन किया जाता है, नियुक्ति में शामिल प्रक्रिया, और नियुक्तियां वरिष्ठता के आधार पर की जाती हैं, और हालिया ईसी नियुक्ति के पहलू पर, उन्होंने कहा कि कार्यालय मई से खाली था। एजी ने कहा, "यह चुनने की प्रणाली नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है। पीठ ने कहा कि वह समझती है कि सीईसी की नियुक्ति ईसी के बीच से की जाती है, लेकिन फिर इसका कोई आधार नहीं है और केंद्र को केवल सिविल सेवकों तक ही सीमित क्यों रखा गया है?
सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि हमें चुनाव आयोग में व्यक्ति के पूरे कार्यकाल को देखने की जरूरत है, न कि सिर्फ सीईसी के रूप में। 2-3 अलग-अलग उदाहरणों को छोड़कर पूरे बोर्ड में वह कार्यकाल 5 साल का रहा है। इसलिए कार्यकाल की सुरक्षा को लेकर कोई समस्या नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि सिस्टम में एक अंतर्निहित गारंटी भी है, जब भी राष्ट्रपति सुझाव से संतुष्ट नहीं होते हैं तो वह कार्रवाई कर सकते हैं।