By अभिनय आकाश | Dec 12, 2023
सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव हो। अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला बरकरार रहे। भारत की सर्वोच्च अदालत ने 11 दिसंबर 2023 को आर्टिकल 370 को समाप्त करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में विलय के साथ ही जम्मू कश्मीर ने अपनी संप्रभुता छोड़ दी थी। लिहाजा जम्मू कश्मीर भारत के अन्य राज्यों की तरह ही है। साथ ही सितंबर 2024 तक कश्मीर में चुनाव कराने होंगे। कश्मीर का जब भी जिक्र होता है तो इसके साथ ही पंडित नेहरू, राजा हरि सिंह, पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र का जिक्र भी सामने आने लगता है।
देश की राजधानी दिल्ली से करीब 643 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जम्मू कश्मीर का अमर पैलेस- "मैं महाराजा हरि सिंह जम्मू और कश्मीर को हिंदुस्तान में शामिल होने का ऐलान करता हूं।" इन लफ्जों के साथ महाराजा ने अपनी रियासत को हिंदुस्तान में शामिल होने के लिए एग्रीमेंट पर साइन कर दिया। इन शब्दों के साथ ही जम्मू और कश्मीर का मसला हमेशा के लिए खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और ऐसा क्यों नहीं हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इस सवाल पर कि क्या जम्मू-कश्मीर ने भारत संघ में शामिल होने पर संप्रभुता या आंतरिक संप्रभुता का एक तत्व बरकरार रखा था, सीजेआई द्वारा अदालत में पढ़े गए 'निर्णय का सार' में कहा गया कि जम्मू-कश्मीर ने संप्रभुता का एक तत्व बरकरार नहीं रखा जब यह भारत संघ में शामिल हुआ”। अदालत ने जो कारण बताए उनमें से एक इस प्रकार था:
25 नवंबर 1949 को युवराज करण सिंह द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए एक उद्घोषणा जारी की गई थी। इस उद्घोषणा में घोषणा की गई कि भारत का संविधान न केवल राज्य में अन्य सभी संवैधानिक प्रावधानों को हटा देगा जो इसके साथ असंगत थे बल्कि उन्हें निरस्त भी करेगा जो विलय के समझौते से प्राप्त होता। उद्घोषणा जारी होने के साथ, विलय पत्र के अनुच्छेद 8 का कानूनी महत्व समाप्त हो गया। 9वीं उद्घोषणा जम्मू-कश्मीर द्वारा अपने संप्रभु शासक के माध्यम से भारत को अपने संप्रभु लोगों को, संप्रभुता के पूर्ण और अंतिम समर्पण को दर्शाती है।
कर्ण सिंह की घोषणा क्या थी?
करण सिंह की उद्घोषणा में कहा गया कि भारत सरकार अधिनियम, 1935, जो तब तक जम्मू-कश्मीर और भारत के प्रभुत्व के बीच संवैधानिक संबंधों को नियंत्रित करता था, निरस्त कर दिया जाएगा। भारत का संविधान जिसे जल्द ही भारत की संविधान सभा द्वारा अपनाया जाएगा, जहां तक यह जम्मू और कश्मीर राज्य पर लागू होता है, इस राज्य और भारत के विचारित संघ के बीच संवैधानिक संबंधों को नियंत्रित करेगा और इसे लागू किया जाएगा यह राज्य मेरे, मेरे उत्तराधिकारियों और उत्तराधिकारियों द्वारा इसके प्रावधानों की अवधि के अनुसार है, उद्घोषणा में कहा गया है। इसके अलावा, उक्त संविधान के प्रावधान, इसके प्रारंभ होने की तारीख से, अन्य सभी असंगत संवैधानिक प्रावधानों को प्रतिस्थापित और निरस्त कर देंगे जो वर्तमान में इस राज्य में लागू हैं।
कर्ण सिंह ने क्यों की घोषणा?
फैसले के तुरंत बाद इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए करण सिंह कहा कि मुझे लगता है कि यह उस समय देश और राज्य के लिए आवश्यक था और इसलिए किसी भी अस्पष्टता से छुटकारा पाने के लिए मैंने जारी किया था। राजस्थान में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद धड़कनें बढ़ गई है। जयपुर में मंगलवार को विधायक दल की बैठक होनी है। इसके बाद राजस्थान में भी नए मुख्यमंत्री का ऐलान हो जाएगा। लेकिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए नए चेहरे के रुप मोहन यादव का नाम घोषित किया।
संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जनवरी 1948 में इस मामले को उठाया। न्यायविद सर जफरुल्ला खान ने पाकिस्तानी स्थिति के पक्ष में पांच घंटे तक बात की। सरदार वल्लभभाई पटेल के निजी सचिव वी शंकर ने अपने संस्मरण स्कोफिल्ड में कहा है कि भारत की तरफ से ब्रिटिश प्रतिनिधि, फिलिप नोएल-बेकर की भूमिका से नाखुश था, कहा जाता है कि परिषद को पाकिस्तान की स्थिति की ओर धकेल रहा था। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से किए गए हमले की हमारी शिकायत पर सुरक्षा परिषद में चर्चा ने बहुत प्रतिकूल मोड़ ले लिया है। जफरुल्ला खान, ब्रिटिश और अमेरिकी सदस्यों के समर्थन से, उस शिकायत से ध्यान हटाकर जम्मू-कश्मीर के प्रश्न पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की समस्या की ओर ध्यान हटाने में सफल रहा था। सरदार पटेल के निजी सचिव के अनुसार जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के हमले को उसकी आक्रामक रणनीति के कारण पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया था। मानों जैसेहमने उसका मुकाबला करने के लिए कुछ नम्र और रक्षात्मक मुद्रा अपना रखी हो। 20 जनवरी, 1948 को, सुरक्षा परिषद ने विवाद की जांच के लिए भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग (यूएनसीआईपी) की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव पारित किया और मध्यस्थता प्रभाव से कठिनाइयों को दूर करने की संभावना" को अंजाम दिया। सरदार पटेल नेहरू द्वारा मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से असहज थे, और उन्हें लगा कि यह एक गलती है। स्कोफिल्ड में उन्होंने लिखा कि न केवल विवाद लंबा चला गया है, बल्कि सत्ता की राजनीति की बातचीत में हमारे मामले की योग्यता पूरी तरह से खो गई है।
यूएन में जाने की भूल, जिसकी कीमत दशकों तक देश ने चुकाई
जाहिर तौर पर इन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों में नेहरू ने इस उम्मीद में संयुक्त राष्ट्र जाने का फैसला किया। उन्हें लगा कि ये युद्ध को समाप्त करेगा और स्थिति को स्थिर करेगा। लेकिन संयुक्त राष्ट्र में जाने के बाद, भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित जनमत संग्रह द्वारा कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की पेशकश में एक और सामरिक गलती की। इस प्रस्ताव के द्वारा, नई दिल्ली ने अपने संप्रभु अधिकार को एक बाहरी एजेंसी को सौंप दिया। एक बार में, कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया, और हमलावर पाकिस्तान को विवाद के दूसरे पक्ष के बराबर ला खड़ा कर दिया गया। भारत ने खुद को दलदल में पाया, जिससे उसे खुद को निकालना मुश्किल हो गया है।
युद्ध विराम न होता तो क्या PoK नहीं बनता
युद्द के वक्त भारत के आर्मी चीफ बुचर और नेहरू के बीच हुए पत्राचार को बुचर पेपर्स कहते हैं। बुचर पेपर्स लंदन की नेशनल आर्मी म्यूजियम के आर्काइव में डी-क्लासिफाइड है। फ्रंटलाइन के लिए आशीष रे ने इस पर रिपोर्ट की है। आशीष रे की रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध शुरू होने के 13 महीने बाद 22 नवंबर 1948 को भारत के आर्मी चीफ जनरल बुचर ने नेहरू को सैनिकों की थकान, जूनियर अधिकारियों की कम ट्रेनिंग के बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने हथियारों की कमी के बारे में भी इस खत में लिखा। नेहरू ने 2 दिन बाद 24 नवंबर 1948 को बुचर को लिखा, "मुजफ्फराबाद और मीरपुर फिलहाल पहुंच से बाहर है, लेकिन कोटली की कैटेगरी अलग है। संभव है कि हम कोटली की तरफ जाना उचित समझे। हम इस शीतकालीन अवधि का उपयोग अपनी सेनाओं को कुछ राहत देने के लिए कर सकते है जो इतने लंबे समय से बिना आराम किये लड़ रही है। इसके साथ ही 29 सितंबर को नेहरू ने बुचर को लिखा कि हमारे पास दो ही विकल्प हैं। यूएन के कहने पर युद्धविराम या पाक सेनाओं के खिलाफ सशक्त कदम उठाना। किसी भी स्थिति में हमें बाद के लिए तैयार रहना चाहिए।