RBI गवर्नर शक्तिकांत दास बोले- पूंजी खाते की परिवर्तनीयता एक प्रक्रिया के रूप में बढ़ेगी

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 26, 2020

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत पूंजी खाते की परिवर्तनीयता को ‘एक घटना के बजाए एक प्रक्रिया’ के रूप में आगे बढ़ाने के अपने दृष्टिकोण को बनाए रखेगा। उन्होंने कहा कि भारत का पूंजी खाता ‘एक बड़ी सीमा तक) परिवर्तनीतया है। उन्होंने इस संदर्भ में देश के बाहर से पूंजी लाने-ले जाने की तमाम छूट का उल्लेख किया। पूंजी परिवर्तनीयता का मामला काफी संवेदनशील मामला है क्योंकि यह देश से धन बाहर ले जाने और लाने की आजादी से जुड़ा है। भारत ने 1990 के दशक में आर्थिक सुधारों के साथ पूंजी परिवर्तनीयता की आंशिक मंजूरी दी थी। फिलहाल कुछ सीमा और पाबंदियों के साथ रुपया आंशिक रूप से परिवर्तनीय है।

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फोरेन एक्सचेंज डीलर्स एसोसएिशन ऑफ इंडिया (एफईडीएआई) के कार्यक्रम में दास ने कहा, ‘‘मौजूदा वृहत आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए पूंजी खाते की परिवर्तनीयता को लेकर एक घटना के बजाए प्रक्रिया के रूप में हमारा रुख जारी रहेगा।’’ उन्होंने कहा कि इस मामले में अल्पकालीन और मध्यम अवधि के लक्ष्यों के साथ दीर्घकालीन दृष्टिकोण रखा गया है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि देश के बांड बाजार में पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) का सोच-विचार कर युक्तिसंगत मानदंडों के आधार पर विस्तार हुआ है। उन्होंने कहा कि एफपीआईनिवेश के लिये मध्यम अवधि की रूपरेखा के तहत सीमा को बढ़ाया गया और प्रक्रियाओं को युक्तिसंगत बनाया गया है। दास ने कहा कि फिलहाल ज्यादातर क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है।

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वहीं भारतीयों इकाइयों को दूसरे देशों में निवेश की मंजूरी है। इतना ही नहीं विदेशों से वाणिज्यिक उधारी को लेकर व्यवस्था को उदार बनाया गया है ताकि पात्र कर्जदारों को इसके दायरे में लाया जा सके। उन्होंने कहा, ‘‘पिछले तीन दशकों में भारत में एक व्यापक बदलाव आया और वह एक तरह से बंद अर्थव्यवस्था से दुनिया से जुड़ी तथा एक खुली अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है जहां भारी मात्रा में अंतरराष्ट्रीय लेन-देन और पूंजी प्रवाह हो रहा है।’’ दास ने कहा कि भारत में बैंकों को विदेशों में रुपया डेरिवेटिव बाजार में कामकाज की अनुमति देना बाजार खोलने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि इससे स्थानीय और विदेशी बाजारों के बीच जो विभाजन है, उसमें कमी आएगी और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव भी कम होगा।

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