भारत और चीन के बीच का विवाद पांच साल से बढ़ता गया। किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी ये विवाद सुलझ जाएगा। यकीन इन सबमें सबसे ज्यादा फायदा किसका हो रहा था ये समझने की जरूरत है। भारत और चीन के बीच के विवाद की बात करें तो इससे सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान का हुआ। पाकिस्तान को चीन के और करीब जाने का मौका मिल गया। सबसे ज्यादा नुकसान किसी को हुआ तो वो रूस था। चीन और भारत दोनों ही रूस के अहम व महत्वपूर्ण साझेदार हैं। ऐसे में रूस के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था कि वो भारत व चीन के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाए। भारत और चीन एक पेज पर आने के लिए तैयार नहीं थे। इसलिए पुतिन ने सबसे पहले तय किया कि वो इस विवाद को सुलझाने में भूमिका निभाएंगे। लेकिन ये सब इतने गुपचुप तरीके से होगा इसका अंदाजा तो पश्चिमी देशों को था ही नहीं।
पश्चिमी देश शुरुआत से कहते आ रहे हैं कि ब्रिक्स को वेस्टर्न कंट्रीज के खिलाफ खड़ा किया है। लेकिन ब्रिक्स देश ये कहते हुए आए हैं कि भारत, चीन या रूस का मकसद वेस्टर्न वर्ल्ड के खिलाफ कोई भी लॉबी तैयार करने की नहीं है। अब इन सब के इतर विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने हाल ही में कहा था कि जी-7 हो सकता है तो ब्रिक्स क्यों नहीं।
अमेरिका समेत पूरा वेस्टर्न वर्ल्ड सकते में है। अंदाजा नहीं था कि जिस डिप्लोमेसी के तहत भारत को अपने करीब लाने की कोशिश अमेरिका कर रहा था। उसमें भारत के साथ रूस की पुरानी दोस्ती ज्यादा कारगर साबित हो जाएगी। अमेरिका भारत-चीन के बीच विवाद को चाहता था ये बात एक तरफ है और इस बात को अमेरिका ने कभी स्वीकार भी नहीं किया था। लेकिन अमेरिका को लेकर भारत चीन की भूमिका उसकी सोच पर सवाल खड़े करता है। वाशिंगटन की कई रिपोर्ट्स में कहा गया कि भारत और चीन कर बीच युद्ध होने वाला है। बल्कि भारत की तरफ से लद्दाख को लेकर जबतक ऐलान किया गया की बातचीत और समाधान निकल गया है तब भी अमेरिका में मौजूद एक्सपर्ट ये मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि भारत और चीन के बीच विवाद कम होने वाला है।