नारी भावनाओं की एक सशक्त अभिव्यक्ति थीं अभिनेत्री नूतन

By अमृता गोस्वामी | Jun 04, 2020

हिन्दी सिनेमा जगत में पारम्परिक भारतीय नारी की छवि की बात करे तो जो आकृति उभर कर सामने आती है वो अभिनेत्री थीं नूतन! सादगी की प्रतिमूर्त, चेहरे पर सौम्य मुस्कान वाली नूतन अपने दौर की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से थीं। जब भारतीय सिनेमा अपने पैरों पर खड़ा ही हुआ था एक पतिव्रता नारी, आदर्श बहू और नारी व्यथा व संघर्ष की प्रतिमूर्ति बन चुकी नूतन ने चार दशक तक अपनी उपस्थिति सफलता पूर्वक दर्ज कराई। उनका जन्म 4 जून 1936 को मुंबई में हुआ था। नूतन की पारिवारिक पृष्ठभूमि फिल्मी थी, उनके पिता कुमार सेन समर्थ फिल्मों के निर्देशक थे और मां शोभना समर्थ मशहूर अभिनेत्री। नूतन की नानी रतन बाई भी एक अभिनेत्री और गायिका थीं उन्होंने 1936 में बनीं फिल्म भारत की बेटी में अभिनय के साथ-साथ एक भजन भी गाया था जिसे उन्होंने स्वयं ही लिखा भी था। नूतन की तीन बहिनें थीं तनूजा, चतुरा और रेशमा। नूतन के साथ-साथ उनकी बहिन तनूजा भी हिन्दी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री रही है, इतना ही नहीं तनूजा की बेटी काजोल भी आज की सफल अभिनेत्री हैं और नूतन के बेटे मोहनीश बहल भी बॉलीवुड का एक जाना-पहचाना नाम है।  


नूतन ने काफी छोटी उम्र में फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। मात्र आठ साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नल-दमयंती’ में बतौर बाल कलाकार काम किया। बचपन में नूतन काफी दुबली-पतली और सांवरी थीं किन्तु कभी भी उन्होंने अपने सांवरेपन को काम्पलेक्स नहीं बनने दिया उनके सांवरेपन को लेकर कई बार उनके परिवार में कोई उन्हें कुछ कहता भी था तो उनका जवाब होता था कि कृष्ण कन्हैया भी तो सांवरे थे। 

 

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बतौर अभिनेत्री महज 14 साल की उम्र में नूतन ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरूआत कर दी थी। 1950 में बनी ‘हमारी बेटी’ उनकी पहली फिल्म थी जिसका प्रोडक्शन मां शोभना समर्थ ने किया था। इसके बाद 1951 में नूतन ने निर्देशक रवि दवे की फिल्म ‘नगीना’ में काम किया जो रोमांस और क्राइम सस्पेंस पर आधारित थी, जिसे सेंसर बोर्ड ने एडल्ट सर्टिफिकेट दिया था। इस फिल्म के साथ नूतन का एक किस्सा जुड़ा है। नूतन जब इस फिल्म को पिक्चर हॉल में देखने गईं तो वॉचमैन ने उन्हें यह कहकर बाहर ही रोक दिया कि यह एडल्ट फिल्म है, उम्र छोटी होने के चलते आप यह फिल्म नहीं देख सकती।


नूतन 1952 में मिस इंडिया बनीं। मिस इंडिया के इसी समारोह में नूतन को मिस मसूरी का ताज भी पहनाया गया था। तब वह मात्र 16 बरस की थीं। 


इस बीच हमलोग, शीशम, शवाब, और हीर जैसी उनकी कुछ फिल्में आईं जिनमें उन्हें कुछ खास पहचान नहीं मिल पाई किन्तु 1955 में बनी फिल्म ‘सीमा’ में उन्होंने अपने शानदार अभिनय से खूब वाह-वाही बटौरी। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।


फिल्मों में अभिनय की शिक्षा नूतन ने स्विटजरलैंड में ली, इसके अलावा उन्होंने कथक डांस और संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की थी। संगीत के सुरों की समझ और मीठी आवाज के चलते उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों हमारी बेटी, छबीली, और पेइंग गेस्ट में खुद की आवाज में गाने भी गाए।


फिल्म सीमा के बाद नूतन की कामयाबी का सिलसिला रूका नहीं। इस फिल्म के बाद उनकी दो और बेहतरीन फिल्में ‘पेइंगगेस्ट’ और ‘बंदिनी’ आई जिन्होंने उन्हें हिन्दी सिनेमा जगत में पुख्ता रूप से स्थापित कर दिया। 1958 में बनी ‘दिल्ली का ठग’ ने नूतन का नाम टॉप अभिनेत्रियों में ला दिया था। इस फिल्म में नूतन एक तैराक के रोल में थीं जिसमें उन्होंने स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहना था, 50 के दशक में अभिनेत्रियां जहां साड़ी में ही नजर आया करती थीं नूतन पहली एक्ट्रेस थीं जिन्होंने उस समय में स्विमिंग सूट पहनकर दर्शकों को चौंका दिया, वहीं अपनी अगली फिल्म बारिश में भी नूतन के कई बोल्ड सीन दिए किन्तु दर्शकों में इसकी आलोचना के बाद उन्होंने फिल्म बंदिनी और सुजाता में अपने मर्मस्पर्शी अभिनय से अपनी उस बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल लिया। नूतन जब कॅरियर की बुलंदियों पर थीं उन्होंने साल 1959 में नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी की। 


नूतन की सुपर हिट फिल्मों की लिस्ट लंबी है जिनमें सुजाता, पेइंग गेस्ट, सीमा, बंदिनी, सरस्वती चंद्र, मिलन, और मैं तुलसी तेरे आंगन की जैसी उनकी बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्में शामिल है। सुजाता, बंदनी और सीमा नूतन के जीवन की लीजेंड फिल्में थीं तो ‘बंदिनी’ उनके कॅरियर की मील का पत्थर थी। इनके अलावा नूतन ने ‘छलिया’, ‘भाई-बहिन’, ‘गौरी’, ‘खानदान’ ‘देवी’, सौदागर’ सहित लगभग 70 फिल्मों में काम किया। फिल्म ‘सुजाता’ में नूतन ने एक अछूत लड़की की भूमिका निभाई थी, इस फिल्म में उनके संवाद तो कम थे, लेकिन चेहरे और आंखों से उन्होंने जो भाव व्यक्त किए कि संवादों की जरूरत ही नहीं पड़ी। 

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नूतन को फिल्मों में उनकी उत्कृष्ट भूमिकाओं के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनके बेस्ट अभिनय के लिए उन्हें पांच बार फिल्म फेयर अवार्ड प्राप्त हुएा। ‘सीमा’, ‘सुजाता’, ‘बंदनी’, ‘मिलन’, और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन’ की उनकी अवार्ड विनिंग फिल्में थीं।


अस्सी के दशक में नूतन ने चरित्र भूमिकाएं निभाई। ‘मेरी जंग’ और ‘कर्मा’ में मां के रोल में उनकी काफी सराहनीय भूमिका रही। ‘मेरी जंग’ में उनके सशक्त अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 


21 फरवरी 1991 नूतन के जीवन का दुःखद दिन था जब महज 54 साल की उम्र में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। इस दुःस्साध्य बीमारी का पता नूतन को पहले ही चल गया था और उन्होंने यह बात अपने फिल्म मेकर्स से छुपाई नहीं बल्कि उनसे कहा कि अपनी शूटिंग जल्दी खत्म कर लीजिए क्योंकि मेरे पास वक्त कम है। गौरतलब है कि नूतन की कुछ फिल्में उनके निधन के बाद रिलीज हुईं।


नूतन को उनकी बेस्ट अदाकारी के लिए 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया। 


अमृता गोस्वामी

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