Bofors scandal की फाइल फिर से खुलेगी! मोदी के दोस्त के कमबैक के साथ क्या बड़ा धमाका करने वाला है अमेरिका?

By अभिनय आकाश | Dec 04, 2024

1980 के दशक का विवादित केस बोफोर्स फिर से खुल सकता है। दरअसल, सीबीआई ने अमेरिका को न्यायिक अनुरोध भेजने वाली है। इससे पहले अमेरिकी जासूस माइकल हसनन ने एक टीवी चैनल पर कहा था कि वो इस बारे में जानकारी साझा करना चाहते हैं और इसी के बाद सीबीआई की ओर से पहल की गई है। इस केस को 2011 में बंद कर दिया गया था और आरोपी राजीव गांधी व  कात्रोची को बरी कर दिया गया था। लेकिन 13 साल बाद फिर से खुलता हुआ दिखाई पड़ रहा है। जांच एजेसी सीबीआई बोफोर्स मामले मे निजी जासूस माइकल हर्शमैन से अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध भेजेगा। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। हर्शमैन ने 1980 के दशक के 64 करोड़ रुपये के कथित बोफोर्स रिश्वत कांड के बारे में अहम जानकारी भारतीय एजेंसियो के साथ साझा करने की इच्छा जताई की थी। सीबीआई ने एक विशेष अदालत को भी इस बारे में सूचित किया है, जो मामले में आगे की जांच के लिए एजेंसी की याचिका पर सुनवाई कर रही है। 

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क्या है मामला?

अधिकारियों ने बताया कि 'लेटर रोगेटरी' भेजने की प्रक्रिया इस साल अक्टूबर में शुरू की गई थी। अमेरिका को औपचारिक अनुरोध भेजने में लगभग 90 दिन लगने की संभावना है। लेटर रोगेटरी एक लिखित अनुरोध है जो एक देश की अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले की जीच में मदद करने के लिए दूसरे देश की अदालत को भेजा जाता है। 

कौन है प्राइवेट जासूस?

'फेयरफैक्स ग्रुप' के प्रमुख माइकल हर्शमैन 2017 में निजी जासूसों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे। वह कई मंचों पर दिखाई दिए और उन्होंने आरोप लगाया कि घोटाले की जांच कांग्रेस सरकार द्वारा पटरी से उतार दी गई थी। हर्शमैन ने कहा है कि वह सीबीआई के साथ ब्योरा साझा करने के लिए तैयार है। सीबीआई ने अदालत को सूचित किया कि वह जांच को फिर से खोलने की योजना बना रही है।

मामला 1980 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस

विश्वनाथ प्रताप सिंह उस समय वित्तमंत्री थे जब राजीव गांधी के साथ में उनका टकराव हुआ। मामला यह था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के पास यह सूचना थी कि कई भारतीयों द्वारा विदेशी बैंकों में अकूत धन जमा करवाया गया है। इस पर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अमेरिका की एक जासूस संस्था फ़ेयरफ़ैक्स की नियुक्ति कर दी ताकि ऐसे भारतीयों का पता लगाया जा सके। जब यह समाचार भारतीय मीडिया तक पहुँचा तो वह प्रतिदिन इसे सिरमौर बनाकर पेश करने लगा। इस 'ब्रेकिंग न्यूज' का उपयोग विपक्ष ने भी ख़ूब किया। उसने जनता तक यह संदेश पहुँचाया कि 60 करोड़ की दलाली में राजीव गांधी की सरकार जांच से भाग रही थी। वीपी सिंह लोगों से कहते थे कि सेना के जवानों ने पहली बार बोफोर्स दागा तो इसने बैक फायर किया और अपने ही कई जवानों की जान ले ली। सिंह ने अपने अंदाज में भरी गर्मी में मोटरसाइकिल पर, गले में गमछा लपेट कर, एक राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह प्रचार किया। वे गांव के लोगों से सरल सा सवाल पूछते थे, क्या आपको अंदाजा है कि राजीव गांधी ने आपके घर में सेंध लगा दी है? फिर वे अपने कुर्ते की जेब से एक माचिस निकालते थे और लोगों को दिखाते थे। इस माचिस को देखो। जब आप अपनी बीड़ी, हुक्का या चूल्हा जलाने के लिए चार आने (25 पैसे) की माचिस खरीदते हैं तो एक चौथाई टैक्स के रूप में सरकार को जाता है। सरकार इस पैसे से स्कूल। अस्पताल, सड़क और नहर बनती है और सेना के लिए हथियार खरीदती है। यह आपका पैसा है। अगर कोई सेना के लिए हथियार खरीदने के नाम पर इसका कुछ हिस्सा चुरा ले तो क्या यह आपके घर में सेंध लगाना नहीं है? यह बताने के लिए कि केवल राजीव गांधी ने ही यह घूस लिया है, वीपी सिंह एक कहानी सुनाते थे। एक सर्कस में एक शेर था, एक घोड़ा था, एक बैल और एक बिल्ली थी। वे आसपास रहते थे, एक रात किसी ने पिंजड़े खोल दिए और अगली सुबह सर्कस के मालिक को घोड़े और बैल का कंकाल मिला। क्या किसी को शक है कि उन्हें किसने खाया होगा? शेर ने या बिल्ली ने? अगर इतनी बड़ी रकम खाई गई है तो क्या किसी बेचारी बिल्ली ने खाया है? सिर्फ शेर के जैसे राजीव ही खा सकते हैं। केस 2011 में बंद कर दिया गया था।

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राजीव गांधी को बरी कर दिया गया था

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाधी को केस में बरी कर दिया था। उसने एक साल बाद राजनीतिक रूप से सवेदनशील इस मामले में हिंदुजा बंधुओ समेत बाकी आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया था। इटली के बिजनेसमैन और कथित तौर पर रिश्वत मामले में बिचौलिए ओत्तावियो क्वात्रोची को 2011 में एक अदालत ने बरी कर दिया था। कोर्ट ने सीबीआई को अभियोजन वापस लेने की अनुमति दी थी।

बोफोर्स मामले में कब क्या-क्या हुआ?

24 मार्च, 1986: भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। यह सौदा भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप की सप्लाई के लिए हुआ था।

16 अप्रैल, 1987: स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि कंपनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को घूस दिए हैं। 60 करोड़ रुपये घूस देने का दावा किया गया।

20 अप्रैल, 1987: लोकसभा में राजीव गांधी ने बताया था कि न ही कोई रिश्वत दी गई और न ही बीच में किसी बिचौलिये की भूमिका थी।

6 अगस्त, 1987: रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय कमिटी (जेपीसी) का गठन हुआ। इसका नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री बी.शंकरानंद ने किया।

फरवरी 1988: मामले की जांच के लिए भारत का एक जांच दल स्वीडन पहुंचा।

18 जुलाई, 1989: जेपीसी ने संसद को रिपोर्ट सौंपी।

26 दिसंबर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने बोफोर्स पर पाबंदी लगा दी।

22 जनवरी, 1990: सीबीआई ने आपराधिक षडयंत्र, धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया। मामला एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ दर्ज हुआ।

दिसंबर 1992: मामले में शिकायत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया।

फरवरी 1997: क्वात्रोकी के खिलाफ गैर जमानती वॉरंट (एनबीडब्ल्यू) और रेड कॉर्नर नोटिस जारी की गई।

दिसंबर 2000: क्वात्रोकी को मलयेशिया में गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाद में जमानत दे दी गई। जमानत इस शर्त पर दी गई थी कि वह शहर नहीं छोड़ेगा।

फरवरी-मार्च 2004: कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी और भटनागर को मामले से बरी कर दिया। मलयेशिया के सुप्रीम कोर्ट ने भी क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण की भारत की मांग को खारिज कर दिया।

अप्रैल 2012: स्वीडन पुलिस ने कहा कि राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन द्वारा रिश्वतखोरी का कोई साक्ष्य नहीं है।

13, जुलाई 2013: भारत से फरार हुए क्वात्रोकी की मौत हो गई। तब तक अन्य आरोपी जैसे भटनागर, चड्ढा और आर्डबो की भी मौत हो गई थी।

1 नवंबर, 2018: सीबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में बोफोर्स घोटाले की जांच फिर से शुरू किए जाने की मांग को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया है।  

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