कोरोना वायरस के खिलाफ अभी तक कोई टीका या दवा विकसित नहीं हो सकी है, जिसके लिए वैज्ञानिक लगातार प्रयास कर रहे हैं। एक नये अध्ययन में पता चला है कि कोरोना वायरस के खिलाफ दवा विकसित करने में काली मिर्च एक संभावित उम्मीदवार हो सकती है। भारतीय वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), धनबाद के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए कम्प्यूटेशनल अध्ययन में काली में मिर्च पाए जाने वाले पाइपराइन नामक तत्व नये कोरोना वायरस (सार्स-सीओवी-2) को न केवल बाँध सकते हैं, बल्कि रोक भी सकते हैं। उल्लेखनीय है कि कोविड-19 बीमारी के लिए सार्स-सीओवी-2 को जिम्मेदार माना जाता है।
शोधकर्ताओं की टीम का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर उमाकांत त्रिपाठी ने बताया कि “किसी दूसरे वायरस की तरह कोरोना वायरस भी मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए अपनी सतह पर एक विशेष प्रकार का प्रोटीन उपयोग करता है। हम ऐसे प्राकृतिक तत्वों की खोज करना चाहते थे, जो इस प्रोटीन से बंध जाए और वायरस को मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोक दे।”
कोरोना की कार्यप्रणाली को बाधित करने वाले संभावित तत्वों की पहचान के लिए शोधकर्ताओं ने कम्प्यूटर आधारित अत्याधुनिक मॉलिक्यूलर डॉकिंग एवं मॉलिक्यूलर डायनेमिक्स सिमुलेशन तकनीकों का उपयोग किया है। उन्होंने रसोई में आमतौर पर उपयोग होने वाले मसालों में पाए जाने वाले 30 अणुओं का विश्लेषण किया है और उपचारात्मक एजेंट के रूप में उनकी प्रतिक्रिया का मूल्यांकन किया गया है। इनमें से, काली मिर्च में मौजूद एल्केलॉइड और उसके तीखेपन के लिए जिम्मेदार पाइपराइन तत्वों की पहचान कोरोना वायरस प्रोटीन के खिलाफ मजबूत अवरोधक के रूप में की गई है।
इंडिया साइंस वायर से बातचीत में प्रोफेसर त्रिपाठी ने बताया कि “इस अध्ययन के परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं। यह अध्ययन कम्प्यूटर आधारित है, जिसकी पुष्टि प्रयोगशाला में किया जाना जरूरी है। हालांकि, यह शुरुआती जानकारी है, जो काफी महत्वपूर्ण है।”
ओडिशा की बायोटेक कंपनी बायोलॉजिक्स डेवेलमेंट, इम्जेनेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर इस अणु का परीक्षण प्रयोगशाला में किया जा रहा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि कम्प्यूटर आधारित अध्ययन प्रायोगिक परीक्षणों से पहले का चरण होता है। यदि प्रायोगिक परीक्षण सफल होता है तो यह एक बड़ी कामयाबी होगी, क्योंकि काली मिर्च एक प्राकृतिक उत्पाद है और रासायनिक उत्पादों के मुकाबले इसके दुष्प्रभाव की आशंका नहीं है।
शोधकर्ताओं में प्रोफेसर त्रिपाटी के पीएचडी छात्र जन्मेजेय राउत और बिकास चंद्र स्वैन शामिल हैं। उनका यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोमॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर ऐंड डायनेमिक्स में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)